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जयपुरिया इंस्टिट्यूट ने मनाया aइंटरनेशनल डे ऑफ़ हैप्पीनेस

जयपुरिया इंस्टिट्यूट ने मनाया aइंटरनेशनल डे ऑफ़ हैप्पीनेस

इंदौर: 20 मार्च 2023 को इंटरनेशनल डे ऑफ़ हैप्पीनेस मनाते हुए, जयपुरिया प्रबंधन संस्थान, इंदौर ने “इक्वैनिमिटी ऑफ माइंड, बॉडी एण्ड सोल” विषय के तहत हैप्पीनेस एंड वेल-बीइंग पर एक पैनल चर्चा का आयोजन किया। पैनलिस्ट के रूप में शामिल होने वाले प्रतिष्ठित विशेषज्ञ थे। अखिलेश अर्गल, सीईओ, राज्य आनंद संस्थान, भोपाल, आनंदम मंत्रालय, मध्य प्रदेश; डॉ. आशीष पांडे, एसोसिएट प्रोफेसर, आईआईटी, बॉम्बे, और डॉ. प्रभात पंकज, निदेशक, जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, जयपुर। कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना से हुई, जिसके बाद डॉ. रोमी सैनी, डीन एकेडमिक्स ने सभी का अभिवादन किया।

अखिलेश अर्गल ने तब आनंद संस्थान की स्थापना के पीछे के महत्व और आवश्यकता को साझा किया और म.प्र. के नागरिकों के जीवन में खुशहाली लाने के लिए विभाग के तहत नियमित रूप से आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों और गतिविधियों से अवगत कराया। जैसे आनंद उत्सव -संस्कृति और स्थानीय खेलों को बढ़ावा देने के लिए; अल्पविराम – जीवन जीने की कला को विकसित करता है; आनंदम केंद्र-एक ऐसी पहल जिसमें कई सेंटर्स बनाये गए है जहाँ कोई भी व्यक्ति अतिरिक्त संसाधनों का दान कर सकता है और एक जरूरतमंद व्यक्ति इसे वहां से एकत्र कर सकता है, जिससे की संसाधनों का पुन: उपयोग, पुनर्चक्रण भी हो सके एवं पर्यावरण व समाज को भी संरक्षण व समर्थन मिल सके। अर्गल ने पैसे और खुशी के आर्थिक संबंध के कुछ रोचक तथ्य साझा किए और बताया की रिसर्च से यह पता चला हैं की दोनों के मध्य कोई ख़ास कनेक्शन नहीं है। उन्होंने आंतरिक आत्म पर ध्यान केंद्रित करने और बाहर खुशी की तलाश करने के बजाय आत्म-देखभाल का अभ्यास करने के संदेश के साथ समापन किया। दिन के दूसरे वक्ता, डॉ. आशीष पांडे ने वेल बीइंग की स्थिति, विशेष रूप से युवाओं के संदर्भ में खुशी और उसके कारकों पर कुछ शोधों का अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया धन, परिवार आदि जैसे कोई भी चर खुशी को प्रभावित नहीं करते हैं, बल्कि आत्म-दिशा की भावना और सामाजिक- जुड़ाव, खुशी की सबसे समृद्ध स्थिति को प्रभावित करते हैं।

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डॉ. प्रभात पंकज ने फिर उन एल्गोरिदम के बारे में बात की, जिन हमारा दिमाग चलता है। उन्होंने माइंडफुल्नेस की अवधारणा को समझाने के लिए मानव और मन के साथ घोड़े और घुड़सवार के बीच एक समानता भी बनाई। सर ने ऑटोपायलट अवस्था के कारन हमारा दिमाग स्वतः ही चलता रहता है| दिमाग को माइंडफुल्नेस द्वारा हम अपने विचारो और खुशियों को संभाल सकते है। इन प्रारंभिक टिप्पणियों के बाद, डॉ. दीपांकर चक्रवर्ती द्वारा परिचय और संदर्भ स्थापित करने के साथ पैनल चर्चा शुरू हुई।

उन्होंने भागवत गीता के कुछ श्लोक सुनाए जो समभाव की व्याख्या करते हैं। आनंद के अर्थ, खुशी से सांस्कृतिक संबंध, छात्रों को चिंता से निपटने में चुनौतियों का सामना, उम्मीदों और चिंता के बीच हर दिन कैसे खुश रह सकते हैं – इन बातों पर गहन चर्चा हुई। डॉ. पांडे ने कुछ और शोध अध्ययनों पर चर्चा की। श्री अर्गल जी ने खुशी के लिए ग्राफ(GRAF) यानी कृतज्ञता, उत्तरदायित्व, स्वीकृति और क्षमा का उल्लेख किया। डॉ. प्रभात ने यह भी समझाया कि खुशी प्राकृतिक है और हीरा हमारे भीतर है और हमें इसे बाहरी दुनिया में खोजने की जरूरत नहीं है। एनजीओ ग्रीन हेवन व आभाकुंज के प्रतिनिधियों ने भी अपने अनुभव साझा किए और समग्र चर्चा को समृद्ध बनाया। कार्यक्रम के संकाय समन्वयक डॉ. गौरव माथुर, डॉ. मेघा जैन और डॉ. रोमी सैनी थे।

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