पटना के प्रसिद्ध पारस अस्पताल में बुधवार सुबह हुई गोलीबारी की घटना ने पूरे शहर को दहला दिया। दिनदहाड़े हुई इस फायरिंग में एक विचाराधीन कैदी चंदन मिश्रा को गोली मारी गई, जिससे अस्पताल परिसर में अफरा-तफरी मच गई। बताया जा रहा है कि चंदन, बक्सर में एक पुराने गोलीकांड में आरोपी था और पटना की बेउर जेल में बंद था। हाल ही में तबीयत बिगड़ने पर उसे अदालत से इलाज के लिए पैरोल मिला था। लेकिन अस्पताल पहुंचने के कुछ ही समय बाद उस पर जानलेवा हमला हो गया। घटना के बाद घायल चंदन मिश्रा को अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया, जहां उसकी हालत गंभीर बताई जा रही है। हमले के तरीके से अंदाजा लगाया जा रहा है कि हमलावरों ने पहले से पूरी प्लानिंग कर रखी थी।
जेलबंदी को बनाया गया निशाना
जिस तरह से हथियारबंद हमलावर पारस अस्पताल में बेधड़क घुसे और फायरिंग कर फरार हो गए, उसने न केवल अस्पताल की सुरक्षा बल्कि पटना पुलिस की तत्परता और खुफिया तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला इसलिए और संवेदनशील है क्योंकि अस्पताल जैसे स्थान को आमतौर पर “सुरक्षित क्षेत्र” माना जाता है। लेकिन अब ऐसे स्थलों पर भी अपराधी बेखौफ होकर अपने मंसूबों को अंजाम दे रहे हैं। पुलिस के अनुसार, हमला करने वाले दो से तीन लोग थे, जो पहले से अस्पताल परिसर में मौजूद प्रतीत होते हैं। घटना के तुरंत बाद पुलिस ने मौके पर पहुंचकर इलाके को घेर लिया और CCTV फुटेज खंगालने की प्रक्रिया शुरू की।
कानून-व्यवस्था पर फिर उठे सवाल
यह घटना बिहार में बढ़ते अपराध और गिरती कानून-व्यवस्था की एक और कड़ी बन गई है। हाल के महीनों में पटना समेत कई जिलों में लगातार फायरिंग, हत्या, लूट और गैंगवार जैसी घटनाएं सामने आई हैं। विपक्षी दलों ने इस मामले को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। राजद और कांग्रेस के नेताओं ने कहा है कि अगर अपराधी अस्पतालों में भी लोगों को गोली मारने लगे हैं, तो आम जनता खुद को कहीं भी सुरक्षित नहीं महसूस कर सकती। यह कोई पहली घटना नहीं है, हाल ही में गोपाल खेमका की हत्या भी दिनदहाड़े हुई थी, जिसमें अब तक ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई है।
सिर्फ जांच नहीं, ठोस एक्शन की जरूरत
पुलिस सूत्रों का कहना है कि यह मामला पुरानी रंजिश या गैंगवार से जुड़ा हो सकता है। चंदन मिश्रा पर पहले भी कई संगीन मामले दर्ज हैं, और संभव है कि जेल के बाहर आते ही उस पर हमला सुनियोजित तरीके से किया गया हो।
इस घटना ने प्रशासन को एक बार फिर चेताया है कि अब सिर्फ बयान या प्रेस कॉन्फ्रेंस से हालात नहीं सुधरने वाले। यदि अपराधियों को इस तरह सार्वजनिक स्थानों पर हमलों की छूट मिलती रही, तो यह सीधे तौर पर आम जनता के विश्वास को तोड़ने वाला संकेत है। पटना पुलिस के लिए यह समय केवल जांच करने का नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई दिखाने का है। यह देखा जाना बाकी है कि हमलावरों को कितनी तेजी से पकड़ा जाता है और क्या ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए पुलिस व्यवस्था में जरूरी बदलाव लाए जाते हैं।
अस्पतालों तक पहुंची हिंसा, सिस्टम पर सवाल
पारस अस्पताल में हुई यह घटना केवल एक फायरिंग नहीं, बल्कि एक व्यवस्था की विफलता का आइना है। जब अपराधी इस कदर निडर हो जाएं कि अस्पतालों में गोली चलाने लगें, तो फिर यह मानना गलत नहीं होगा कि कानून का डर कमज़ोर हो चुका है। अब वक्त है कि सरकार और पुलिस मिलकर न केवल इस मामले को हल करें, बल्कि पूरे प्रदेश में अपराध पर सख्त नियंत्रण के लिए रणनीति बनाएं, क्योंकि जनता अब केवल आश्वासन नहीं, सुरक्षा चाहती है।