Election Commission (ECI) ने आधार कार्ड को लेकर उठ रहे सवालों पर स्थिति स्पष्ट की है। आयोग के एक वरिष्ठ सूत्र के अनुसार, विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision-SIR) दस्तावेज़ के पृष्ठ 16 में यह स्पष्ट उल्लेख है कि आधार कार्ड को पहचान के एक दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार किया जाता है। आयोग का यह स्पष्टीकरण ऐसे समय पर आया है जब कुछ राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने मतदाता सूची और मतदान प्रक्रिया में आधार की भूमिका को लेकर शंका जाहिर की थी। सूत्रों ने यह भी कहा कि मतदाता पहचान पत्र (EPIC) की संख्या पहले से ही उन गणना प्रपत्रों (enumeration forms) पर मुद्रित होती है, जो मतदाता संबंधी आंकड़ों के संकलन के लिए उपयोग किए जाते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि EPIC नंबर को छिपाया या मनमाने ढंग से हटाया नहीं जाता, बल्कि वह प्रक्रिया का अंग है।
EPIC नंबर और आधार लिंकिंग, वैकल्पिक लेकिन उपयोगी
ECI ने कई बार स्पष्ट किया है कि आधार और EPIC को लिंक करना पूर्णतः वैकल्पिक है, न कि अनिवार्य। चुनाव आयोग द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, आधार विवरण सिर्फ यह सत्यापित करने के लिए मांगा जाता है कि कोई व्यक्ति एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में पंजीकृत न हो। यह मतदाता की विशिष्टता सुनिश्चित करने की एक तकनीकी और प्रशासनिक कोशिश है। आयोग के अधिकारी ने बताया, “हम मतदाता की निजता और स्वायत्तता का पूर्ण सम्मान करते हैं। किसी भी मतदाता को आधार देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। साथ ही, जिन्होंने आधार नहीं दिया है, उनका नाम भी मतदाता सूची से नहीं हटाया जा सकता।”
राजनीतिक बहस: विपक्ष का आरोप, आयोग की सफाई
इस विषय पर राजनीतिक बहस भी तेज है। कुछ विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि EPIC और आधार की लिंकिंग से मतदाता की गोपनीयता को खतरा हो सकता है और यह डिजिटल निगरानी का माध्यम बन सकता है। खासकर उन इलाकों में जहां सामाजिक या धार्मिक आधार पर विभाजन की राजनीति की जाती है, वहां यह मुद्दा अधिक संवेदनशील बन जाता है। हालांकि ECI का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी, तकनीकी रूप से संरक्षित और पूरी तरह वैकल्पिक है। चुनाव आयोग पहले ही सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का पालन कर रहा है जिसमें आधार को वोट देने के अधिकार से जोड़ना असंवैधानिक बताया गया था।
SIR दस्तावेज़ का हवाला क्यों महत्वपूर्ण है?
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) रिपोर्ट चुनाव आयोग की एक वार्षिक प्रक्रिया का हिस्सा होती है, जिसमें प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या, उनकी आयु, लिंग, पंजीकरण की स्थिति, और अन्य विवरणों का आकलन किया जाता है। पृष्ठ 16 का उल्लेख इस बात का प्रमाण है कि आधार कार्ड की वैधता आयोग के अंदरूनी दस्तावेज़ों में पहले से ही शामिल रही है। SIR के इस दस्तावेज़ में मतदाता सत्यापन के लिए पहचान के जिन दस्तावेजों की सूची दी गई है, उसमें आधार कार्ड को स्पष्ट रूप से स्वीकार्य दस्तावेज के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि आयोग की नीति में कोई नया बदलाव नहीं हुआ है, बल्कि जो प्रक्रिया पहले से अपनाई जा रही थी, उसी की पुनः पुष्टि की गई है।
तकनीक के उपयोग पर पारदर्शिता की मांग
भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वास अत्यंत आवश्यक है। तकनीकी उपाय जैसे आधार-EPIC लिंकिंग प्रशासनिक रूप से कारगर हो सकते हैं, लेकिन इसमें निजता और पारदर्शिता के संतुलन को बनाए रखना अत्यंत जरूरी है। चुनाव आयोग की ओर से बार-बार दी जा रही सफाई इस बात को स्पष्ट करती है कि आधार कार्ड को सिर्फ एक वैकल्पिक पहचान पत्र के रूप में देखा जा रहा है, न कि मतदान के लिए अनिवार्य दस्तावेज़ के रूप में। EPIC नंबर की गणना फॉर्म पर छपाई भी इसी पारदर्शी व्यवस्था का हिस्सा है, जिसे गलत ढंग से प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए।