अब वक्त आ गया है, जब पूरा देश इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए जोर शोर से लगा है। हमारे पास में तकनीकी ज्ञान की कमी कह ले,या मेन पावर की कमी कह लें,हे। एक साथ इतने कंसलटेंट मिलना ओर बनना असंभव सा है।तब हमें सोचना होगा कि इतने सारे काम एक साथ खोलने का माद्दा हम में है या नहीं।
हमने बहुत से इंजीनियरिंग कॉलेज खोल दिए, इंजीनियरिंग कॉलेज को पढ़ाने के लिए/ चलाने के लिए जितने प्रोफेसर चाहिए, जिसकी पीएचडी होना जरूरी है ।हिंदुस्तान मे अनुमान के मुताबिक करीब करीब 90000 से ज्यादा पीएचडी इंजीनियर चाहिए कॉलेज में पढ़ाने के लिए। वही देश में आज 40,000 से ज्यादा अभी पीएचडी करे हुए इंजीनियर उपलब्ध नहीं है पढाने के लिए।
यह छोटा सा उदाहरण है। आज अधिकतर सरकारी विभागों में इंजीनियरों की भर्ती सालों से बंद है अधिकतर जगह एडहोक इंजीनियरो पर काम चल रहा है।आने वाले 5-8सालों में वरिष्ठ इंजीनियर इन विभागों में कोई बचेगा ही नहीं। सिर्फ चाहने भर से कुछ नहीं होता है,चाहने से शुरुआत हो सकती है।और एक योजनाबद्ध तरीके से सारा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा हो सकता है।
दूसरी बात यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर एक कोड ऑफ कंडक्ट बनना चाहिए हम इंजीनियरों के लिए तकनीकी लोगों के लिए। जिसमें यदि कोई तकनीकी आदमी ऐसा काम करता है, जो उसके टेक्निक के सहारे उससे अपेक्षित हो, और वह न्यूनतम काम भी नहीं कर पाए ।तो उसकी डिग्री वापस लेकर उसे आर्थिक और कारावास की सजा का प्रावधान होना चाहिए। ऐसे प्रावधान रशिया में और चाइना में मौजूद है।
तो ही जनता के पैसों और समय का सदुपयोग हो पाएगा। अन्यथा अकल्पनीय पैसे सरकारों से आते रहेंगे ,बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती रहेगी,जिसके बारे में कुछ चंद लोगों को ही जानकारी होगी। अंत में काम पूरा हो कर,जिसको पैसा मिलना हो उसको पैसा मिल जाएगा, जिसको यश मिलना हो यश और फोटो मिल जाएंगे। अन्त मेंआम जनता खाली हाथ ही रहेगी।अतुल शेठ।