LAC पर चरम पर तनाव, एस. जयशंकर बोले- स्थिति बेहद नाजुक

Akanksha
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S jaishankar

 

लद्दाख: लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर सोमवार आधी रात को हुई फायरिंग के बाद तनाव चरम पर पहुंच गया है। 15 जून को 20 जवानों की शाहदर के बाद दोनों देशों के बीच शांति के लिए लगातार बातचीत जारी है लेकिन कोई हल नहीं निकला है। इसी बीच कल की घटना के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि एलएसी पर स्थिति बेहद नाजुक है।

LAC पर नाजुक हालातों के बीच एस. जयशंकर रूस का दौरा करने वाले हैं जहां सीमा विवाद को लेकर वह चीन के विदेश मंत्री वांग यी से भी मुलाकात कर सकते हैं। जयशंकर ने माना कि एलएसी पर मौजूदा हालात बेहद गंभीर हैं और दोनों देशों के बीच राजनीतिक स्तर पर बेहद गंभीर और गहरी बातचीत की जरूरत है।

जयशंकर ने कहा, द्विपक्षीय वार्ता में सरहद के हालात से अलग हटकर दोनों देशों के बीच रिश्तों को नहीं देखा जा सकता है। जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन की विदेश मंत्रियों की स्तर की बैठक में शामिल होने के लिए रूस के दौरे पर जा रहे हैं। यह दौरा 9 सितंबर से 11 सितंबर के बीच होगा। मई महीने में लद्दाख में हुए संघर्ष के बाद से रूस में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से जयशंकर की ये पहली मुलाकात हो सकती है।

जयशंकर ने कहा कि अगर सरहद पर शांति और स्थिरता नहीं है तो रिश्ते के बाकी पहलू भी सामान्य नहीं हो सकते हैं। उन्होंने कहा, “अगर आप पिछले 30 सालों को देखेंगे तो सीमा पर शांति और स्थिरता थी…समस्याएं भी थीं, मैं उन्हें खारिज नहीं कर रहा हूं लेकिन रिश्तों में प्रगति की गुंजाइश बनी हुई थी। नतीजतन, चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया..स्पष्ट रूप से शांति और स्थिरता रिश्ते की बुनियाद है।”

साल 1993 के बाद से ही चीन के साथ सीमा प्रबंधन को लेकर कई समझौते हुए हैं जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दोनों देश सीमा पर न्यूनतम सेना रखेंगे। बाकी समझौतों में सेना के बर्ताव और उन्हें संयमित करने को लेकर थे। अगर इन समझौतों का पालन नहीं किया जाता है तो फिर कई बेहद अहम सवाल खड़े होते हैं। मई महीने की शुरुआत से ही हालात गंभीर बने हुए हैं। ऐसे में दोनों पक्षों के बीच राजनीतिक स्तर पर गहरी बातचीत होनी चाहिए।

भारत-चीन के रिश्ते के भविष्य को लेकर जयशंकर ने कहा, ये एक ऐसा क्षेत्र है जहां मेरी क्रिस्टल बॉल में थोड़े बादल छाए दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों को पारस्परिक सहयोग बढ़ाना चाहिए क्योंकि दोनों की क्षमता ही तय करेगी कि ये एशिया की सदी है या नहीं।