आज विश्व को आनंदित करने वाले ,रणक्षेत्र में धैर्य को धारण करने वाले कमलवत नेत्र वाले ,दयामूर्ति ,करुणाकर, रघुकुलमणि भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव है |जन्मोत्सव है तो सोचा कि आज मित्रों से रामकथा पर ही चर्चा करली जाए ,राजनीति पर तो मित्रों से अपनी भिडंत होती ही रहती है |वैसे राजनीति की शुरुआत भी रा..शब्द से ही होती है | मित्रों ,मैंने आज रामकथा पर बात करना इसलिए भी उचित समझा कि आज का ही दिन एक ऐसा दिन है जब समूचा राष्ट्र राम का गुणगान करता है |ऐसा नहीं कि कल राम पर चर्चा करना गुनाह हो जाता पर आज का दिन शास्त्रों में भी सबसे श्रेष्ठ माना जाता है | इसी कारण आज का दिन चुना और विषय रखा रामकथा…जिसमें श्रोता भी होता है और वक्ता भी |तुलसीदासजी ने भी तो कभी श्रोता-वक्ता की बात कहते हुए श्रोता को प्रधानता दी है , श्रोता-वक्ता ग्याननिधि दोनों ही ज्ञान निधि हैं |
उल्लेखनीय है कि उन्होंने पह्ला नाम श्रोता का लिया है और हमारे रामायण –रामकथा के कथाकार लोग बहुत सुन्दर बात कहते हैं कि भाई जो पाट पर बैठते हैं उसे चौकी कहते हैं |चौकी पर जो बैठता है उसको चौकीदार कहा जाता है ,जो रामकथा के लिए जमींन पर बैठते हैं , वो सब जमींदार होते हैं |चौकी पर बैठने वाला तो केवल चौकीदार है , शास्त्र की चौकी ही करता है |जो ठीक से समझकर- समझकर उसका गान करता , वो भेद नहीं करता ! भेद देश के साधु-समाज ने भी कभी नहीं किया ,राम कथाकारों ने नहीं किया, भेद की बात तो राजनीति कर रही है, ये राजनीति की ही देन है | हमारे देश के अध्यात्म ने कभी भेद नहीं किया ,इस देश में भेद होता तो राम शबरी के बेर कभी नहीं खाते |इस देश में भेद आया ही नहीं,ये राजनीति की देन है कि आज देश के टुकड़े –टुकड़े ,जातिवाद ,धर्मवाद ,वर्णवाद के कारण हो रहे हैं ! ये काम राजनीति का है, साधुनीति का नहीं,कथाकारों का नहीं !
मित्रों ,रामकथा मर्यादा की बात करती है ,कर्तव्यों का बोध कराती है और जमीन -जायदाद भूलकर कुल की मर्यादा और राज्य के लिए त्याग सिखाती है, समरसता का पाठ पढ़ाती है |आपने भी रामकथा का श्रवण किया ही होगा, ना भी किया होगा तो यह तो सुना ही होगा कथा हमेशा चरित्रवान की ही होती है | धरती पर राम सा ना तो कोई चरित्र है ना ही रामकथा से श्रेष्ठ कोई कथा | मित्रों, रामजी की कृपा से पुरातन भारतीय संस्कृति में कभी भी किसी के साथ भेदभाव स्वीकार नहीं किया गया | रामकथा में जनकपुर में जब धनुष भंग मतलब धनुष तोड़ने का प्रसंग आता है तो माताएं अपनी अपनी जगह पर ,राजे –महाराजे जो धनुष तोड़ने के लिए आते हैं ,वे अपनी अपनी जगह पर ,ऋषि- मुनि अपनी जगह पर ,जनक अपनी जगह पर, सुनयना अपनी सखियों संग अपनी जगह पर और माता जानकी अपनी विशिष्ट जगह पर और राघवेन्द्र अपनी जगह पर होते हैं | यह व्यवस्था थी ,भेद नहीं था | राम –रावण युद्ध में वानरों का राम के साथ जुड़ना भी यही दर्शाता है कि रामकथा में कहीं भेद नहीं था,यदि ऐसा होता तो हनुमान भी राम भक्त नहीं कहलाते |
रामकथा बताती है राम ने पिता के वचन के लिए राज्य छोड़ा तो भरत ने भी अपने नाम के आगे कभी राजा नहीं जोड़ा | बड़े भाई १४ साल कैसे अकेले वन में गुजारेंगे यह सोचकर लक्ष्मण ने राम का साथ नहीं छोड़ा, क्यों ? यह समझने वाली बात है |रामकथा में राज्य के लिए महाभारत नहीं हुई, यही रामकथा की खासियत है| रामकथा में विरह की पीड़ा है ,बिछड़ने का दुःख है तो मिलाप भी है,सीता से राम का तो भरत से राम –लखन का | राम -भरत मिलाप पर क्या कहूँ सुनों तो भी ,देखों तो भी आँखें नम कर जाता है | रामकथा में राम जन्म से लेकर रावण से युद्ध तक में मर्यादा का सन्देश है,शत्रु यदि ज्ञानी है तो उससे भी कुछ सिखों यह चित्रण है वर्णन है |रामकथा में समाज शास्त्र है ,प्रबंधन है ,समरसता का संदेश है ,बस कुछ नहीं है तो वह है भेद,पूर्ण रूप से भेद से मुक्त है रामकथा |
लेकिन मित्रों आज के बदलते भारत में हम राम के अनुयायी भी समरसता के भाव को भूलकर राजनीति में उलझ रहे हैं,एक दुसरे से भीड़ रहे हैं ! जबकि हमने तो जन्म से रामकथा को पढ़ा है ,समझा है ,अपनाया है उसके मर्म को आत्मसात किया है | मित्रों सदियों से यह देश भी रामजी की कृपा से ही चल रहा है, किसी एक की कृपा से नहीं , यह समझना होगा |कई आए कई चले गए, आगे भी आते – जाते रहेंगे लेकिन राम का नाम देश में अजर –अमर है उन्हें ही अपना भगवान माने ,राम नाम का भरोसा रखिए, उसका गुणगान करिए| बस अंत में एक आग्रह है कभी रामकथा सुनिए एक अच्छे चौकीदार से वो भी जमींदार बनकर ,यदि कहीं जाकर नहीं सुननी है तो घर पर ही सुनिए ,जमीन पर बैठकर खुदको जमींदार समझते हुए वास्तव में खूब आनंद की अनुभूति होगी | एक राम भक्त ,मर्मज्ञ कथाकार कहते हैं ,सारे भेद भूलकर …अपने आचरण में रखिए राम …जपते रहिए…जय श्रीराम …सुबह और शाम … अपन उनसे खासे प्रभावित है … आज का लिखा उन्हें समर्पित ….जय रणजीत
ब्रजेश जोशी ,श्री पवनपुत्र मासिक पत्रिका, इंदौर