स्वयंवर में रानी ने महाराजा अग्रसेन को किया था पसंद, इंद्र ने लिया था बदला

Share on:

देवेंद्र बंसल

महाराजा अग्रसेन का जन्म क्षत्रिय वंश के राजा बल्लभ सेन के घर में द्वापर युग के अंतिम काल में 5176 साल पहले हुआ था।हरियाणा राज्य के हिसार में अग्रोहा समाज के शासक होने कारण इनके वंशजों को अग्रवाल कहा जाने लगा। अग्रसेन बचपन से ही तेज-तर्रार दिमाग के थे। जब पिता ने आज्ञा दी तभी नागराज कुमुट की बेटी माधवी से स्वयंवर रचाने पहुंचे। इस स्वयंवर में बहुत से देवता और बाहुबली राजा पहुंचे थे।

राजकुमारी माधवी ने सभा में मौजूद लोगों में युवराज अग्रसेन को अपने पति के रूप में चुना। देवराज इंद्र ने इसे अपना अपमान समझा और वह महाराज अग्रसेन पर क्रोधित हो गए। इंद्र भगवान के क्रोधित होने का परिणाम यह हुआ कि राज्य में सूखा पड़ गया। राज्य में हाहाकार मच गया। जनता का कष्ट देखकर राजा अग्रसेन ने भगवान शिव की तपस्या शुरू की। राजा अग्रसेन की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने वरदान दिया और राज्य में फिर से खुशहाली सुख-समृद्धि वापस आई। प्रतापगढ़ के इस राजा ने धन और वैभव लाने के लिए महालक्ष्मी की आराधना की और उन्हें प्रसन्न किया। देवी के आशीर्वाद से राज्य में समृद्धता बढ़ती गई। देवी ने सभी सिद्धियां और धन प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया।

Also Read – भगवान श्री अग्रसेन जी का ऐतिहासिक इतिहास – देवेंद्र बंसल

इसके साथ ही देवी ने यह भी वरदान दिया कि तुम अपने गृहस्थ जीवन का पालन करो और अपना वंश आगे बढ़ाओ। और यही वंश आगे चलकर तुम्हारे नाम से जाना जाएगा।उनके आशीर्वाद से राजा ने राज्य को शक्तिशाली करने के लिए कोलपुर के नाग राजाओं से सम्बन्ध स्थापित करने की अपनी इच्छा जाहिर की। कोलपुर के राजा महिस्थ ने अपनी पुत्री सुंदरावती की शादी राजा अग्रसेन से कर दी। नागराज महिस्थ के 18 पुत्र थे इसलिए उन्होने 18 यज्ञ करना चाहते थे। 17 यज्ञ पूरे हो चुके थे।

अंतिम यज्ञ में जब पशुओं की बलि दी जा रही थी तो उस दृश्य को देखकर महारजा अग्रसेन के अन्दर घृणा हो गई और यज्ञ बीच में ही रोक दिया गया। राजा ने कहा कि अबसे उनके राज्य में पशु बलि नहीं होगी, ना तो कोई पशुओं को मारेगा और ना तो कोई मांस खाएगा। राज्य का हर व्यक्ति सभी प्राणियों की रक्षा करेगा। इस घटना ने उन्हें अन्दर तक हिला दिया और उन्होने क्षत्रिय धर्म छोड़ कर वैश्य धर्म को अपना लिया। राजा अग्रसेन के शासनकाल में अनुशासन का पालन होता था। जनता को अपने कर्तव्य पालन की स्वतंत्रता थी।