अजय बोकिल
मध्यप्रदेश देश का ऐसा पहला राज्य बनने जा रहा है, जहां मेडिकल और इंजीनियरिंग ( चिकित्सा और अभियांत्रिकी) विषयों की पढ़ाई अब हिंदी भाषा में भी होगी। मप्र में अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय हिंदी में मेडिकल व इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम चला रहा है। लेकिन उसे अभी तक इने गिने छात्र ही मिले हैं। विस्तार हिंदी के हक में यह बड़ी खबर है कि मध्यप्रदेश देश का ऐसा पहला राज्य बनने जा रहा है, जहां मेडिकल और इंजीनियरिंग (चिकित्सा और अभियांत्रिकी) विषयों की पढ़ाई अब हिंदी भाषा में भी होगी। इसके लिए सरकार ने इन दोनों विषयों की किताबों का हिंदी अनुवाद कराया है, जिसका विमोचन देश के गृहमंत्री अमित शाह 16 अक्टूबर को भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में आयोजित भव्य समारोह में करेंगे।
हालांकि इस अच्छी पहल के बाद भी लोगों के मन में कई शंकाएं हैं, जैसे कि कितने विद्यार्थी ये विषय जो परंपरागत रूप से अंग्रेजी में ही पढ़े और पढ़ाए जाते रहे हैं, को हिंदी में पढ़ना चाहेंगे? इन विषयों को हिंदी माध्यम में पढ़कर निकले डाॅक्टरों और इंजीनियरों का क्या भविष्य है? उन्हें कौन नौकरियां देगा? खुद उनका समुदाय उन्हें किस तरह स्वीकार करेगा और यह भी कि मेडिकल व इंजीनियरिंग विषयों की हिंदी में पढ़ाई किस तरह होगी?
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यह समूची तकनीकी शब्दावली का हिंदी अनुवाद होगा या फिर अंग्रेजी शब्दों के साथ केवल हिंदी की वाक्य रचना होगी? ये सवाल भी हैं और कौतुहल भी है। इतना तय है कि मेडिकल और इंजीनियरिंग विषयों की हिंदी माध्यम से पढ़ाई का औचित्य इसके परिणामों से तय होगा।
बहरहाल राज्य की शिवराजसिंह सरकार इसे अपनी उपलब्धि के रूप पेश कर रही है। मुख्यमंत्री ने इसकी घोषणा इस वर्ष 26 जनवरी को की थी। हालांकि इस बारे में मंथन तो 8 साल से ही हो रहा था। यह काम वाकई चुनौती भरा है। यह तर्क दिया जाता रहा है कि जब चीन, रूस, फ्रांस आदि देशों में उनकी अपनी भाषा में मेडिकल व इंजीनियरिंग की पढ़ाई हो सकती है तो भारत में हिंदी में क्यों नहीं? क्या सिर्फ इसलिए कि हम मानसिक रूप से भी अंग्रेजी के गुलाम हो चुके हैं और अंग्रेजी जानना ही कुलीनता का लक्षण है?
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हिंदी और उसकी अनुवादिक भाषा यकीनन ऐसा नहीं है, लेकिन इसमें सबसे कमजोर कड़ी खुद हिंदी और उसकी अनुवाद की भाषा है। मेडिकल और इंजीनियरिंग की किताबों के हिंदी अनुवाद कितने सरल और सटीक हैं, यह तो पुस्तकें सामने आने और उनकी स्वीकार्यता के बाद ही पता चलेगा। लेकिन साहित्य और मानविकी के विषयों को छोड़ दें तो बाकी जगह जिस तरह की हिंदी इस्तेमाल की जा रही है, उससे तो लोगों को अंग्रेजी ज्यादा सरल लगने लगती है।
बताया जा रहा है कि हिंदी में चिकित्साशास्त्र की किताबें तैयार करवाने के लिए काफी मेहनत की गई है। इसे मोदी सरकार की मातृ भाषा में शिक्षा देने सम्बन्धी नई शिक्षा नीति की रोशनी में भी देखा जा रहा है। मेडिकल की किताबें हिंदी में अनुवादित करने के लिए भोपाल के गांधी मेडिकल काॅलेज में ‘मंदार’ नामक वाॅर रूम तैयार किया गया था। यह कई मेडिकल काॅलेजों के 97 एक्सपर्ट डाॅक्टरों की टीम ने 5568 घंटे मंथन कर 3410 पेज की किताबें तैयार की हैं। ये किताबें एनाटाॅमी (शरीर रचना शास्त्र),फिजियोलाॅजी (शरीर क्रिया शास्त्र)तथा बायोकेमिस्ट्री (जीवरसायन शास्त्र) की हैं।
मेडिकल की हिंदी में तैयार किताबों को लेकर डाॅक्टरों की शंकाओं को लेकर ‘मंदार’ में जवाब भी दिए गए। इसके पहले गांधी मेडिकल काॅलेज के पूर्व डीन डाॅ जितेन्द्र शुक्ला की अध्यक्षता में एक 14 सदस्यीय समिति गठित की गई थी। इस पहल में राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग की भी अहम भूमिका रही है। सारंग स्वयं सिविल इंजीनियर हैं।
आयुर्वेद की पढ़ाई हिंदी में लेकिन इस पहल को लेकर छात्रों और शिक्षकों के मन में अभी भी कई सवाल हैं। ये सवाल हिंदी में आयुर्वेद की पढ़ाई को लेकर नहीं उठे, क्योंकि आयुर्वेद भारतीय चिकित्सा पद्धति है और उसकी शब्दावली संस्कृत की है। इसलिए आयुर्वेद के विद्यार्थियों को संस्कृत का ज्ञान होना आवश्यक है। जबकि एलोपैथी का जन्म पश्चिम में हुआ है और इसकी शब्दावली लैटिन, ग्रीक, अंग्रेजी आदि भाषाओं से तैयार हुई है। इन्हें हिंदी में किस तरह अनूदित किया गया है, इसको लेकर गहरी जिज्ञासा है।
माना जा रहा है कि मेडिकल व इंजीनियरिंग की यह पढ़ाई हकीकत में उस हिंग्लिश भाषा में होगी, जो मोबाइल पीढ़ी के लिए ज्यादा स्वीकार्य और सहज भाषा है। वैसे भी 21वीं सदी की हिंदी असल में हिंग्लिश ही है। भले ही शुद्धतावादी इसकी कितनी ही आलोचना करें।
मप्र में अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय, हिंदी में मेडिकल व इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम चला रहा है। लेकिन उसे अभी तक गिने-चुने छात्र ही मिले हैं। खुद इस विवि की हालत ऐसी है कि वहां छात्रों और शिक्षकों से ज्यादा पाठ्यक्रम हैं। मजे की बात यह है कि वहां हिंदी में मेडिकल व इंजीनियरिंग के कोर्स तो बहुत पहले शुरू कर दिए गए, हिंदी में पाठ्य पुस्तकें अब तैयार हो रही हैं। ऐसा क्यों है, इसका ठोस जवाब किसी के पास नहीं है।
ग्रामीण क्षेत्रों से मिल सकते हैं अधिक छात्र
अब हिंदी माध्यम से मेडिकल व इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए कितने छात्र तैयार होंगे, यह देखने की बात है। फिर भी माना जा रहा है कि हिंदी माध्यम से मेडिकल व इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा विद्यार्थी मिल सकते हैं। यह भी सच्चाई है कि ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले और समाज के कमजोर वर्ग के छात्रों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई और उसमें निपुणता पाना कठिन कार्य होता है।
हालांकि यह आशा जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाती है। क्योंकि इंग्लिश मीडियम से पढ़ाई का रोग अब गांवों तक पहुंच चुका है। ऐसे में जो विद्यार्थी स्कूलों में अंग्रेजी पढ़कर आ रहे हैं, उन्हें वैसे भी हिंदी ठीक से नहीं आती ( आती तो ठीक अंग्रेजी भी नहीं है), वो भला तकनीकी उच्च शिक्षा हिंदी में क्यों लेना चाहेंगे? यह भी अपने आप में विरोधाभास है कि सरकार प्राइमरी स्तर पर अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा दे रही है, दूसरी तरफ तकनीकी विषयों को हिंदी में पढ़ाने का आग्रह है।
अगर हिंदी में पढ़े छात्रों को समुचित काम या नौकरियां नहीं मिली तो उनमें कुंठा पैदा हो सकती है। सारी तकनीकी किताबें हिंदी में अनुवादित हो जाएं, यह भी आसान नहीं है। व्यावहारिक दृष्टि से हिंदी के क्या हाल हैं, यह संघ लोक सेवा आयोग में हिंदी माध्यम से परीक्षा देने और उसमे उत्तीर्ण होने वालों की संख्या को देखकर समझा जा सकता है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान इसे राज्य में देश की तकनीकी शिक्षा जगत में एक नए युग की शुरुआत मानते हैं। उनका कहना है कि अभी एमबीबीएस के पहले वर्ष के पाठ्यक्रम की किताबों का अनुवाद किया गया है आगे और भी किताबों का होगा।जरूरत हमें अपने मानस और धारणा को बदलने की है। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इसकी शुरुआत भोपाल के गांधी मेडिकल काॅलेज से होगी। बाद में राज्य के अन्य 13 सरकारी मेडिकल काॅलेजों में इसे लागू किया जाएगा।
ऐलोपैथी की शब्दावली हिंदी में
इस पहल के पीछे भावना अच्छी है, लेकिन चुनौतियां उससे कहीं बड़ी हैं। विशेषज्ञों का सवाल है कि ऐलोपैथी की शब्दावली अनूदित करने से हिंदी माध्यम में पढ़े डाॅक्टरों की ‘ग्रोथ’ कैसे होगी ? कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि यह सिर्फ चुनावी चाल है। हिंदी माध्यम में पढ़े डाॅक्टर विदेशी डाॅक्टरों के साथ कैसे समन्वय बना पाएंगे? यही समस्या इंजीनियरिंग छात्रों के सामने भी आ सकती है।
दूसरे, ऐसे डाॅक्टरों को दूसरे राज्यों में मान्यता कैसे मिलेगी? अंग्रजी दवाओं के नाम हिंदी में कैसे किए जाएंगे? इससे भी बड़ी समस्या होगी कि मेडिकल टर्मिनोलॉजी को छात्र हिंदी में कैसे एक्सेस करेंगे, प्राइवेट मेडिकल काॅलेज इसे कितना स्वीकारेंगे? और देश भी भले ही शिक्षा आप हिंदी में दें, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर तो अंग्रेजी का ही बोलबाला है। जो हो रहा है, वो हिंदी को आगे बढ़ाने के दिशा में निश्चय ही एक महत्वपूर्ण पहल है, लेकिन हिंदी के इस विस्तार का राजनीतिक पहलू भी है। भारतीय जनता पार्टी हिंदी के उपयोग की हामी है।
हाल में राजभाषा हिंदी को लेकर संसदीय समिति की जो रिपोर्ट गृहमंत्री अमित शाह ने राष्ट्रपति को सौंपी है, उसका दक्षिण में अभी से विरोध शुरू हो गया है। इस रिपोर्ट में देश के सभी स्कूलों में हिंदी शिक्षा पर जोर दिया गया है। तमिलनाडु और केरल के मुख्यमंत्रियों ने ‘हिंदी थोपे जाने’ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इसमें उनके राजनीतिक स्वार्थ भी हैं। लेकिन इस विवाद के दौरान मेडिकल व इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी हिंदी में होने की मुहिम से विवाद और बढ़ सकता है।