शिवलिंग और वास्तु विज्ञान में जल का महत्व

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डॉ. तुषार खंडेलवाल

सावन चल रहा है , सब और शिव की गूंज है , कांवड़िए दूर-दूर से जल लेकर शिव जी का अभिषेक करने निकल पड़े है . लेकिन क्या कभी हमने सोचा है की शिवलिंग पर जल चडाने का इतना महत्व क्यों है . आप सब जानते हैं कि सृष्टि का क्रम है उत्पत्ति , पालन और संहार यानी प्रकृति में वापस मिल जाना. हम जानते हैं सृजन ब्रह्माजी, पालन विष्णु जी और संहार शिव जी करते हैं . शिवलिंग में ब्रह्मा, विष्णु ओर महेश तीनों समाए हैं अतः यह शाश्वत पूर्ण उर्जावान सृष्टि है

परमाणु शक्ति को हम सब मानते है आप इन्टरनेट पर देख सकते है : –  भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन शिवलिंग की तरह ही है, विश्व के अन्य एटॉमिक सेन्टर को भी देखिये आप को शिवलिंग का आकार और जल दिखाई दे जायेगा ।

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ज्योतिर्लिंग एवं  भारत का रेडियोएक्टिविटी मैप

12 ज्योतिर्लिंग एवं उनका स्थान अद्भुत है , भारत का रेडियोएक्टिविटी मैप उठा लें, तब हैरान हो जायेगें

भारत सरकार के न्यूक्लिअर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन शक्ति पाई गई है।महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे  बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले है।

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पॉजिटिव एनर्जी नेगेटिव एनर्जी से रक्षा करती है

केदारनाथ में त्रासदी के वक्त भी मंदिर को कुछ नहीं हुआ यह ज्योतिर्लिंग की शक्ति को साबित करता है .

प्रकृति से वाईफाई कनेक्शन

शिवलिंग पर जल मंत्र के साथ चढ़ाया जाएं तो वह हमें उस ऊर्जा से पूर्ण रूप से कनेक्ट कर देता है , क्योंकि जल में उर्जा को ग्रहण और ट्रान्सफर करने का विशेष गुण होता है. (शक्ति ट्रान्सफर को बिजली के स्विच बोर्ड को गीले हाथ से छूने से महसूस किया जा सकता है, कृपया यह प्रयास न करे) . पृथ्वी पर और हमारे शरीर में लगभग 70 % जल होता है .

एक रिसर्च

एक जैसा पानी दो अलग-अलग गिलास में भर कर रख दिया , उनको इंस्ट्रूमेंट की मदद से देखा तो उसमें जो क्रिस्टल थे उनको नोट कर लिया गया , उसके बाद एक गिलास पानी को खूब अपशब्द बोले गए तथा दूसरे गिलास को बहुत अच्छे शब्दों से पुकारा गया,  तत्पश्चात जब पानी के अन्दर वापस इंस्ट्रूमेंट से देखा गया तो जिस पानी के गिलास को अपशब्द कहे गए थे उस गिलास के पानी के क्रिस्टल्स बिखर गए और जिन्हें अच्छे शब्दों से पुकारा गया उन क्रिस्टल की बहुत अच्छी बोन्डिंग होकर वे पास पास आ गए.

इसीलिए हमारे पूजा स्थान में भी हम चांदी, तांबे जैसी शुभ धातु के बर्तन में जल भरकर उर्जावान तुलसा जी की पत्ती उसमे डालकर पूजा स्थान में रखते हैं ताकि पूजा स्थान में बोले गए मंत्र की ऊर्जा को जल ग्रहण कर ले और जब हम जल घर में छिडकते हैं और ग्रहण करते हैं तो वह ऊर्जा घर को और हमें मिल जाए . यह सर्वविदित है कि स्वस्थ और ऊर्जावान रहना हो तो हमे प्रकृति के साथ जुड़कर रहना होगा .

शिवलिंग पर जब हम जल चढ़ाते हैं तब हम प्रकृति से सीधे जुड़ अर्थात कनेक्ट हो जाते हैं . जल का जीवन से गहरा सम्बन्ध है। सृष्टि के पंच तत्वों में जल का महत्वपूर्ण स्थान है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन की उत्पत्ति जल के द्वारा ही हुई है। शरीर में जैविक क्रियाएं जल के द्वारा सम्पन्न होती है। जल शरीर के तापमान को बनाए रखता है। साथ ही अनुपयोगी, विषैले अवयवों को शरीर से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इसी प्रकार घर में जल स्थान ( कुआ , बोरिंग , अंडर ग्राउंड पानी की टंकी ) ईशान्य जोकि वास्तुशास्त्रानुसार  शिव का स्थान है वहां पर हो तो सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि वह सूर्य की सबसे शक्तिशाली किरणों को सबसे पहले ग्रहण करेगा और वही जल जब हम उपयोग करेंगे चाहे पीने में , नहाने में तब वह एनर्जी हमारे शरीर को मिल जाएगी और हम एनर्जेटिक रहेंगे. इसी तरह किचन जहा है तो अग्नि प्रधान , किन्तु परिंडा भी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यूंकि वहा रखा जल ही हम पीते है और हमारे भोज़न में भी वही जल मिलाया जाता है इसीलिए उसका स्थान किचन के ईशान्य यानि उत्तर पूर्व में है और मटके की पूजा और दीपक का महत्व भी जल के उर्जा ग्रहण के सिद्धांत पर आधारित है . ध्यान दें, कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है।