महिला आबादी का लगभग आधा हिस्सा – यानि वैश्विक जनसंख्या का लगभग 26 प्रतिशत – प्रजनन आयुवस्था में है । हर रोज़ तकरीबन 800 मिलियन से अधिक महिलाओं का मासिक धर्म होता है । औसतन एक महिला का मासिक धर्म उसके जीवनकाल में लगभग 7 वर्षों तक होता है । वैश्विक स्तर पर, 2.3 बिलियन लोगों के पास बुनियादी स्वच्छता सेवाओं का अभाव है और न्यूनतम विकसित देशों में केवल 27 प्रतिशत लोगों के पास घर पर पानी और साबुन से साथ हाथ धोने की सुविधा है ।
‘पीरियड्स’ के बारे में बात करना या सार्वजनिक स्थान पर सैनिटरी नैपकिन हाथ में लेना आज भी वर्जित ही है । आईआईएम इंदौर के वार्षिक सांस्कृतिक और प्रबंधन उत्सव आईरिस ने इस साल ने अपनी पहल #LetsTalkPeriods के जरिए मासिक धर्म स्वच्छता और इस प्राकृतिक प्रक्रिया के बारे में जागरूकता पैदा करने और इस वर्जना को तोड़ने का निर्णय लिया । टीम ने सैनिटरी पैड पकड़े हुए 1000 से अधिक प्रतिभागियों की वीडियो श्रृंखला तैयार करके एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया, और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड से प्रमाण पत्र प्राप्त किया । टीम ने एक पैड वितरण अभियान भी चलाया, जो इंदौर स्थित एनजीओ मनसा के साथ आयोजित किया गया ।
आईरिस टीम की इसी पहल की सराहने करते हुए आईआईएम इंदौर के निदेशक प्रोफेसर हिमाँशु राय ने अपने एनजीओ समागत के माध्यम से; और आईआईएम इंदौर की विज़िटिंग फैकल्टी और एनजीओ अर्थसंगिनी की संस्थापक सुश्री शानू मेहता ने 18,200 सेनेटरी पैड दान किए ।
प्रोफेसर राय ने कहा कि मासिक धर्म आंतरिक रूप से मानवाधिकारों से संबंधित है- जब महिलाएं सुरक्षित स्नान सुविधाओं का उपयोग नहीं कर पाती हैं और अपने मासिक धर्म स्वच्छता के प्रबंधन के सुरक्षित और प्रभावी उपाय नहीं खोज पाती हैं, तो वे गरिमा के साथ मासिक धर्म का प्रबंधन करने में सक्षम भी नहीं होतीं । मासिक धर्म से संबंधित वर्जनाएं, बहिष्कार और इससे जुड़ी शर्म भी गरिमा को कमजोर करती है । उन्होंने कहा, ‘मैं अपने छात्रों को इस वर्जना को तोड़ने के लिए साहसिक कदम उठाने के लिए बधाई देता हूं । लैंगिक समानता, गरीबी, मानवीय संकट और हानिकारक परंपराएं मासिक धर्म जैसी प्राकृतिक प्रक्रिया को अभाव और कलंक के रूप में बदल सकती हैं और महिला स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं । सेनेटरी पैड मासिक धर्म स्वच्छता की दिशा में पहला कदम है।’
सुश्री मेहता ने कहा कि मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता की कमी के कारण महिलाओं के स्वास्थ्य को भी खतरा है । उन्होंने कहा, ‘हम एक सैनिटरी पैड का उपयोग करने के बारे में जागरूकता पैदा करना चाहते हैं और इसी उद्देश्य से इंदौर में 1800 से अधिक वंचित महिलाओं को पैड वितरित करेंगे।’ सुश्री मेहता का एनजीओ अर्थसंगिनी महिलाओं को उद्यमशीलता के लिए प्रोत्साहित करके आत्मनिर्भर बनने में मदद करता है और उन्हें आर्थिक रूप से साक्षर होने में भी मदद करता है ताकि वे अपने व्यवसाय को और बढ़ा सकें ।
आईरिस टीम के स्टूडेंट कोऑर्डिनेटर प्रिया अरोरा और तोशेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि सार्वजनिक रूप से पैड पकड़ना हमेशा से वर्जित रहा है । ‘किशोरवस्था से ही एक लड़की को सार्वजनिक तौर पर ‘पीरियड्स’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने से बचने के लिए सिखाया जाता है, उन्हें पीरियड्स के दौरान किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने की मनाही होती है और इस दौरान उन्हें अपवित्र समझा जाता है’, उन्होंने कहा । माइलस्टोन कोऑर्डिनेटर अंजलि साहनी और अश्वनी कुमार ने कहा कि आईरिस का उद्देश्य इसी सोच को बदलना है ।