इन्दौर : संसार में मनुष्य जीवन में समस्याओं का कोई अंत नहीं है। एक को हल करेंगे तो दूसरी सामने आ जाएगी। संसार का दूसरा नाम समस्या है। आधि, व्याधि व उपाधि अगर समस्या है तो इनका एकमात्र समाधान समाधि ही है। समाधि का एक ही ध्येय वाक्य होता है क्या फर्क पड़ता है। चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, समस्या हो उसमें समान भाव रखना ही समाधि है। आधि, व्याधि, उपाधि तो हमारे पास हैं पर क्या हमारे पास समाधि है।
उक्त विचार रविवार को श्वेताम्बर जैन आचार्य विजय कुलबोधि सूरीरश्वरजी मसा ने पश्चिमी रिंग रोड़ स्थित अक्षत गार्डन में युवाओं के लिए आयोजित किए गए एक दिवसीय शिविर में समस्या अनेक-समाधान एक विषय पर संबोधित करते हुए व्यक्त किए। आचार्यश्री ने सभी युवाओं के साथ-साथ श्रावक-श्राविकाओं को जिनशासन का महत्व भी इस दौरान बताया।
श्री नीलवर्णा पाश्र्वनाथ मूर्तिपूजक ट्रस्ट अध्यक्ष विजय मेहता एवं कल्पक गांधी ने बताया कि रविवार को हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने उपस्थित होकर समस्या व उनके समाधान के बारे में जाना। विशेष शिविर के दौरान महिलाएं लाल परिधान एवं पुरूष श्वेत वस्त्र धारण कर प्रवचन श्रवण करने पहुंचे थे। आचार्यश्री ने प्रवचनों के दौरान सभी श्रावक-श्राविकाओं की जिज्ञासाओं का भी समाधान किया। चातुर्मास समिति संयोजक कल्पक गांधी ने बताया कि सोमवार 3 जून को द्वारकापुरी स्थित नार्मदीय ब्राह्मण धर्मशाला में आचार्यश्री सूरि प्रेम का पंचामृत विषय पर प्रात: 9.15 से 10.15 बजे तक प्रवचनों की अमृत वर्षा करेंगे। वहीं 1600 से अधिक श्रवणों के सर्जक पू. आचार्यदेव श्री प्रेमसूरीश्वरजी मसा की 56 वीं पुण्यतिथि निमित्त भव्य गुणानुवाद सभा भी आयोजित होगी। जिसमें सभी जैन धर्मावंलबी श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे। नार्मदीय ब्राह्मण धर्मशाला में आयोजित होने वाली गुणानुवाद सभा में श्री शीतलनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ का भी विशेष सहयोग रहेगा।
जो है उससे प्रसन्न नहीं, जो नहीं है उससे परेशान
आचार्यश्री विजय कुलबोधि ने सभी श्रावक-श्राविकाओं को प्रवचनों में कहा कि हमारे जीवन में तीन समस्याएं हैं। पहली है आधि। जिसमें मनुष्य जो है उसे देख प्रसन्न नहीं होता बल्कि जो नहीं है उसे देख परेशान होता है। दूसरी है व्याधि यानी शरीर का रोग। रोग भी दो प्रकार के एक आया हुआ रोग जो पिछले जन्म के कर्मों के कारण आते है। दूसरा लाया हुआ रोग जो हम जंक व फ़ास्ट फूड के सेवन से होता है। आज जिओ और जीने दो, अस्पताल जाते रहो सी स्थिति हो गई है। तीसरी है उपाधि। आधि व व्याधि के साथ ही उपाधि एक चाबी है जो हर ताले को खोलती है।