कहो तो कह दूँ – ‘दरुओं’ के साथ इज्जत से पेश आना, हो सके तो उन्हें ‘कलारी’ तक भी छोड़ कर आना

Mohit
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चैतन्य भट्ट

लोगों को भी हर बात में ऐतराज करने की आदत सी पड़ गयी हैl रविवार को पूरे शहर में जबरदस्त लॉकडाउन था ‘कलेक्टर साहेब’ के आदेश थे कि हमें कोरोना की चैन तोडना है, इसलिए खबरदार जो कोई घर से बाहर निकला, सारी दुकाने बंद, लोगों का सड़क पर निकलना गैर कानूनी करार, न सब्जी बिक रही थी, न बीमारों को फल मिल पा आहे थे, पर अपने ‘दरुओं’ के लिए ‘संजीवनी बूटी’ यानि ‘शराब की दुकाने’ बिंदास खुली थी, लोगो को इस पर भयानक ऐतराज हो गया की शराब की दुकाने कैसे खुली हैं जब सब कुछ बंद है तो ‘शराब’ कैसे बिक रही हैl

अब इन ऐतराज कर्ताओं को कौन समझाए कि हुजूर कल ‘छुट्टी’ का दिन था और ‘छुट्टी’ में आदमी क्या करता है ‘ऐश’ करता है और ‘दरुओं’ के लिये तो ‘दारू पीने’ से ज्यादा बड़ा ‘ऐश’ कोई हो ही नहीं सकता, वैसे भी हर सरकार के लिए अपने हर नागरिक की चिंता करना उसका कर्तव्य होता है और आखिर ये ‘दरुये’ भी तो उसकी ही ‘रियाया’ है सो उनकी चिंता सरकार नहीं करेगी तो और कौन करेगा? इसलिए सरकार ने कलेक्टरों को आदेश दे दिए थे कि आप सब कुछ बंद कर देना, कर्फ्यू लगा देना लेकिन इन ‘दरुओ’ को ‘दारू’ आसानी से मिल सके इस बात का पूरा ध्यान रखनाl कंही से कोई ‘कम्पलेंट’ नहीं आनी चाहिए की हमें दारू नहीं मिली, एक भी ‘कम्प्लेन्ट’ आई तो समझ लेना सीधे ‘मंत्रालय’ में अटैच कर दिए जाओगे, इसलिए सारे के सारे कलेक्टर अपना सारा काम धाम छोड़कर दारू की दुकानो कें ‘इंस्पेक्शन’ के लिए निकल पड़े थे कि ‘दरुओं’ को ‘दारू’ आसानी से मिल पा रही है या नहींl

पुलिस को भी आदेश थे कि सड़क पर कोई कितने भी जरूरी काम से जा रहा हो, उसे रोको, और उसका जुर्माना करो, लेकिन अगर कोई ये कहे की हम तो ‘दारू’ लेने का रहे है तो उसके साथ बाकायदा ‘इज्जत’ के साथ पेश आना, अगर हो सके तो अंगरेजी पीने वाले को पूरे सम्मान के साथ दारू की दूकान और ‘देसी’ पीता हो तो ‘कलारी’ तक छोड़ कर भी आना, क्योकि इनकी ही बदौलत तो अपन सब को वेतन मिल पा रहा है अगर ये न होंगे तो सरकार का खजाना कौन भरेगा? और खजाना खाली रहेगा तो हमें वेतन के लाले पड़ जायेंगेl वैसे तो इन ‘शूरवीरो’ की तो आरती उतारना चाहिए जो न कोरोना से डर रहे है न मरने से, दारू की दूकान में सोशल डिस्टेंसिंग की ‘ऐसी की तैसी’ करते हुये एक के ऊपर एक चढ़े जा रहे हैंl

उनके लिए तो अगर कुछ है तो ‘दारू’ है वैसे ‘दारू’ को लोग बाग़ बेवजह बदनाम करते है सोचो ‘दारू’ पीकर इंसान अपने सारे गम भुला देता है, न उसे ‘सड़क’ दिखती है न ‘नाली’, भले ही दरुआ ‘एक हड्डी’ का हो, ‘सींकिया पहलवान’ हो पर जब लग जाती है तो ‘टुन्नी’ में वो बड़े से बड़े ‘जोधा’ से अकेला भिड़ जाने की हिम्मत रखता है अंग्रेज लोग दारू को ‘स्वास्थ वर्धक’ मान कर रोजाना एक दो पेग सटका लेते हैं, बड़े बड़े लोगों की पार्टियों में भी ‘दारू शारू’ परोसी जाती है, कई लोग तो सरकारी काम अफसरों को दारू पिला पिला कर निकाल लेते है अब ऐसी इंपोर्टेंट चीज लॉक डाउन में मुहय्या करवाने के आदेश सरकार और प्रशासन ने दे दिए हैं तो इस पर किसी को एतराज नहीं करना चाहिए और अब तो दारू का ‘इम्पोर्टेंस’ इसलिए भी और बढ़ गया हैं क्योकि जिस ‘सेनिटाइजर’ में जितना ज्यादा ‘अल्कोहल’ यानि दारू होगी वो उतना ही ज्यादा असरदार होगा समझ गए न आप जैसे लोग l