कहो तो कह दूं – सारा ‘लफड़ा’ तो ‘मलाई’ का है पर क्या करें ‘मलाई’ चीज ही ऐसी है

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चैतन्य भट्ट

इन्तजार करते करते ‘आँखें पथरा’ गईं थीं , कान ‘सुन्न’ पड़ गए थे, टांगें ‘थरथराने’ लगी थीं , पेट में ‘खलबली’ मची थी, ‘हलक’ से थूक गुटकने तक में तकलीफ हो रही थी, तब लम्बे इन्तजार के बाद आखिर अपने ‘मामा’ अपने मंत्रीमंडल का विस्तार कर पाए, पर अब गाड़ी अटकी है इन मंत्रियों को विभाग आवंटित करने की।  यानि गाडी ‘स्टार्ट’ तो हो गयी है पर ‘गेयर’ नहीं लग पा रहा है।  ‘मामा’ पिछले एक हफ्ते से ‘वर्कआउट’ कर रहे हैं रोज पसीना बहा रहे है कि आखिर किसके हाथों में कौन से विभाग की बागडोर सौप दें पर निबटारा हो नहीं पा रहा है।  दरअसल पहले प्रदेश में ‘मामा’ एक अकेले ‘टाइगर’ थे तो एकछत्र राज था उनका, पर अब एक ‘नया टाइगर’ बाहर से आ गया है, जाहिर है अब दोनों ही ‘टाइगर’ सत्ता रूपी ‘टाइग्रेस’ यानि शेरनी को अपनी ‘अंकशायनी’ बनाना चाहते हैं तो द्वंद तो होगा।

असल में सारा लफड़ा है ‘मलाई दार’ विभागों का, पुराना टाइगर चाहता है कि सारी ‘मलाई’ उनके ‘चेले चपटियों’ के हाथ में आ जाये और दूसरा ‘टाइगर’ कह रहा है कि तुम्हें ‘मलाई’ हमारे कारण मिली है तो ‘मलाई’ का सबसे ज्यादा हकदार हमारा कुनबा होगा।  वैसे एक बात तो है ‘मलाई’ चीज ही ऐसी है, अब देखो न ‘मलाई’ से ‘मख्खन’ बनता है और ये मख्खन ऐसी अद्भुत चीज है कि जिसे लगा दो वो आपका मुरीद हो जाता है।  इस ‘मख्खन’ की बदौलत न जाने कितने कितने कठिन से कठिन काम आसान हो जाते हैं फिर ‘मख्खन’ से ‘घी’ भी निकलता है, ‘घी’ खाने से शरीर तंदरुस्त रहता है ‘घी’ की जरूरत हर चीज में पड़ती है।  मिठाई में भी ‘मलाई’ का बड़ा ‘इंपोर्टेस’ है रसगुल्ला, जलेबी, इमरती, घी में ही तली जाती है ‘मिश्री मलाई’ नाम की मिठाई सारी मिठाइयों से ज्यादा दाम में बिकती है।  मलाई से ‘रबड़ी’ भी बनती है।  ‘छल्लेदार रबड़ी’ जिसे ‘खुरचन’ भी कहा जाता है खाने का मजा ही कुछ और है। ‘रस मलाई’ जिसने न खाई हो ऐसा कोई इंसान इस दुनिया में नहीं है।  होटल जाओ और ‘मलाई कोफ्ता’ न खाओ तो जीवन जैसे अधूरा सा लगता है ‘मैथी मटर मलाई’ के स्वाद की तो बात ही कुछ और है।

पुराने जमाने में जब चेहरे को ‘चमकाने’ वाली ‘क्रीमें’ बाजार में नहीं आई थी तब घर के बड़े बूढ़े रात को सोते वक्त बच्चों के चेहरे और होंठो पर मलाई घिस देते थे और सुबह चेहरा ‘चमकदार’ और ‘चिकना’ हो जाता था।  ठण्ड में ‘होंठ फटने’ के ‘प्रॉब्लम’ को यही मलाई रोक देती थी, अब भले ही दस तरह की क्रीमें बाजार में आ गयी हो पर ‘ओरिजिनल ख़ूबसूरती’ के लिए महिलायें आज भी ‘मलाई’ ही चेहरे पर घिस घिस कर अपने चहरे को ‘हसीन’ बनाती हैं।  अब आप खुद ही सोचो जब ‘मलाई’ में इतने गुण है तो हर मंत्री चाहेगा कि ज्यादा से ज्यादा ‘मलाई’ उसके हिस्से में आ जाए, पर इधर अपने नेता ‘अजय विश्नोई’ ने एक बयान जारी कर करके ‘दूसरे टाइगर’ के कुनबे में हड़कंप मचा दिया।

उन्होंने ‘मामाजी’ को सलाह दे दी कि चुनाव तक इन मंत्रियों को विभाग न दिए जाएँ, अरे नेताजी अभी उन्हें चुनाव लड़ना है और आप तो बेहतर तरीके से जानते हो कि चुनाव जीतने के लिए कितना माल खर्चना पड़ता है ‘चुनाव आयोग’ को छोड़ कर देश के हर एक ‘नवजात शिशु’ तक को पता है कि चुनाव लड़ने में खर्च करने की जितनी सीमा है उससे दस बीस गुना माल लगता है तब कंही जाकर चुनाव जीता जाता है, ऐसे में यदि उनको विभाग नहीं मिला तो उन बेचारों की तो ‘लाई ही लुट’ जायेगी ऐसा ‘जुलुम’ मत करो नेताजी, आप भी उसी नाव में सवार हो।  अपना ख़याल तो ये है कि ‘पुराने टाइगर’ को मलाई से भरी ‘कढ़ाही’ सबके सामने रख देना चाहिए जिसमें जितनी ‘ताकत’ होगी वो उतनी ‘मलाई लूट’ कर ले जाएगा इसके अलावा और कोई चारा बचा नहीं है अपने ‘मामा’ के पास।