चैतन्य भट्ट
अपने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जी की इज्जत इन दिनों दमोह के उपचुनाव को लेकर दांव पर लगी है, पिछले दिनों दमोह पंहुच कर उन्होंने पुलिस और प्रशासन के अफसरों को घुड़की दी कि वे अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन करें वे ये भी बोले कि आज उनका है कल परसों हमारा भी होगा l “हुजूरे आला” जनता ने आपको मौका तो दिया था, कुर्सी पर भी बैठा दिया था कि इन अफसरों को अपने हिसाब से चलाओ पर आप चला ही नहीं पाए तो इन अफसरों का क्या गुनाह है, वे तो बने ही इसलिए हैं कि “जंहा दम वंहा हम” जब आप कुर्सी पर थे तो आपकी जी हुजूरी करते रहे और जैसी ही आपने सिंहासन खाली किया वे “मामाजी” की जी हुजूरी में लग गए l
वे तो “महाभारत” के “भीष्म पितामह” की भांति प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी से बधें हैं, कुर्सी पर जो बैठेगा वे उसके हो जाएंगे, और फिर आपको तो उनकी इस रंग बदलने की कला का अच्छा खासा अनुभव होगा, सत्ता बदलते ही वे इतनी फुर्ती से अपना रंग बदलते हैं कि उनकी इस कलाकारी के सामने “गिरगिट” भी पनाह मांगने लगता है, वैसे भी उन्हें तो ट्रेनिंग ही इस बात की दी जाती है कि अपने को सत्ता के साथ रहना है और क्यों न रहें, सत्ता के साथ रहते है तो “मलाईदार पोस्टिंग” मिलती है, अच्छा ख़ासा माल जेब में आता है जलवा अलग से रहता है,
वरना यदि ज्यादा ही “सिद्धांत” ईमानदारी” “शुचिता” दिखाई तो गए “लूप लाइन” में, दिन भर आफिस में बैठ कर मक्खी मारते रहो और पांच बजे अपने घर चल जाओ, अब ऐसा कौन चाहेगा, वे भी तो आखिर इंसान ही हैं लोभ, क्रोध, मोह ये सारी कमजोरियां उनमें ही है जैसे आप सत्ता पर फिर से काबिज होना चाहते हो वैसे ही वे भी सत्ता पर अपनी पकड़ बनाये रखना चाहते है जब आप मुख़्यमंत्री थे तो ये ही अफसर आपके आगे पीछे घूमते थे आपकी एक आवाज पर “साष्टांग” करने तैयार रहते थे पर अब आप “भूत” हो गए हो और ये लोग “भूत” में नहीं “भविष्य” में नहीं बल्कि “वर्तमान” में जीना चाहते है इसलिए तत्काल से पेश्तर मामाजी के ख़ास हो गए, आप उनसे कह रहे हो कि कल परसों हमारा भी होगा वे भी कह रहे है जब होगा तब देखा जाएगा अभी तो जिसका है उसके साथ रहने में ही फायदा हैl
वे मशहूर उपन्यासकार “मन्नू भंडारी” के उपन्यास जिस पर अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा अभिनीत फिल्म “रजनीगंधा” बनी थी उस उपन्यास “यही सच हैं” यानी जो सामने हैं वही सच हैं पर पूरी तरह यकीन करते हैं l चलो एक बार मान भी लेते हैं कि “खुदाना खास्ता” कल या परसों आपका हो भी गया वैसे इसकी उम्मीद कम ही लगती है तो इन तमाम पुलिस और प्रशासन के अफसरों को “कुलाटी” खाते वक्त नहीं लगेगा “सर्कस” में काम करने वाले लोग भी इनकी कुलटियाँ देख देख कर हैरान हो जाएंगे, अपना मानना तो ये है कि इन पुलिस और प्रशासन के अफसरों को कुछ कहने से पहले आप कुर्सी तो पा लें, सेकेण्ड का सौवा हिस्सा भी नहीं लगेगा इन्हें आपकी जय जय कार करने में l
तुमने पुकारा और हम चले आये
पथरिया की विधायक राम बाई के पति गोविन्द सिंह जी एक हत्या के मामले में लगभग तीन महीने से फरारी काट रहे थे पूरे प्रदेश की पुलिस अपना सारा काम धाम छोड़कर उन्हें ढूंढने में लगी थी, हर पुलिस अफसर सुबह पांच बजे से घर से ये गाना गाते हुए निकल जाता था “गोविन्द गोविन्द पुकारू गलियों में, कभी खेतों में ढूँढू कभी सड़कों में, गोविन्द गोविन्द पुकारूँ गलियों में” जितने भी आदमी दिखते थे उनसे एक ही सवाल करता था कि क्या अपने गोविंद सिंह जी को देखा हैं पर हर बार इन्हे निराशा ही हाथ लगती थी न जाने कितने अफसर अपनी असली ड्यूटी छोड़कर गोविन्द सिंह की तलाश में जंगल जंगल भटक रहे थे, लेकिन गोविन्द सिंह तो जैसे “डॉन” हो गए थे
जिसे पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन थाl उधर सुप्रीम कोर्ट का डंडा प्रदेश की पुलिस पर चल रहा था कि आपकी इतनी बड़ी इतनी बड़ी फ़ोर्स क्या “घुइयाँ छीलने” के लिए हैं एक आदमी को नहीं पकड़ पा रहें हो, वो तो भला हो राम बाई का जो उन्होंने अपील कर दी अपने पति देव से कि “ठाकुर साहेब” आप सरेंडर कर दो, कुछ भी हो पत्नि आखिर पत्नि ही होती है पत्नि की कातर पुकार ने पति देव के कलेजे पर चोट पंहुचा दी और उन्होंने भिंड में आखिरकार सरेंडर कर ही दिया, वैसे पुलिस कह रही है कि उसने उन्हें गिरफ्तार किया है पर गोविन्द सिंह ने तो खुद ही वीडियो जारी कर पुलिस की पोल खोल दीl प्रदेश की पुलिस को रामबाई जी का धन्यवाद अदा करना चाहिए कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के “हंटर” से उनकी रक्षा कर ली, अब अपने को उस मशहूर गाने का मर्म समझ में आ रहा हैं जिसके बोल हैं “तुमने पुकारा और हम चले आये l
सुपर हिट ऑफ़ द वीक
“कभी कभी तुम आदमी मालूम पड़ते हो और कभी कभी तुम्हारी हरकतें और व्यवहार औरतों जैसा हो जाता है” श्रीमती जी ने श्रीमान जी से कहा
मैं क्या करूँ ये सब मेरे पूर्वजों का दोष है मेरे आधे पूर्वज मर्द थे और आधे औरत” श्रीमान जी समझाया