हरीश फतेहचंदानी
कोरोना संक्रमण की मार ने किसी को नहीं छोड़ा, लेकिन सबसे ज्यादा मध्यमवर्गीय आदमी ने कमर ही टूटी। गरीब को जो चाहिए, वह सरकार ने दे दिया और उच्च वर्ग जैसा पहले जीवन जी रहा था, वैसा ही आज भी जी रहा है। फर्क पड़ा, तो मध्यमवर्गीय को। किसी का व्यवसाय डूब गया, तो किसी की नौकरी चली गई। इन सबके बावजूद जो इस संक्रमण काल से बिल्कुल भी नहीं डरा या कह लें कि जिसे बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ा, वह वर्ग है नेताओं का, फिर चाहे पक्ष हो या विपक्ष। वह लोग जो कोरोना वायरस से बचने का संदेश देने वाले थे, वह खुद एक के बाद एक कोरोना वायरस की चपेट में आते गए और आते जा रहे हैं।
कारण इनकी लापरवाही और जनता की अनदेखी। सांवेर उपचुनाव के कांग्रेस के होने वाले प्रत्याशी प्रेमचंद गुड्डू हो, चाहे विधायक कुणाल चौधरी। उसके बाद प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान हो या सांवेर के भाजपा प्रत्याशी और मंत्री तुलसीराम सिलावट, यह भी कोरोना वायरस से अछूते नहीं रहे। इन सबके लिए, तो प्रदेशभर में अच्छे होने की दुआएं तुरंत सोशल मीडिया पर दौड़ने लगी, लेकिन उस आम आदमी का क्या जो कोरोना संक्रमित होने के बाद अपने घर-परिवार से अलग रहकर पूरे इलाज के दौरान अपने आप को बिल्कुल अकेला और असहाय महसूस करता है।
इंदौर और प्रदेशभर में रोज कोरोना वायरस बढ़ते आंकड़े तनाव देते हैं। लोगों को डर बना रहता है कि ना जाने कब एक बार फिर लॉकडाउन की स्थिति का हमें सामना करना पड़े, लेकिन नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता, उन्हें जो करना है वह करते हैं। उन्हें सिर्फ उपचुनाव की परवाह है। ऐसे दौर में जब आम जनता घरों में कैद होती है हम राजनीतिक आयोजन करते हैं। राजनीतिक रैलियां करते हैं और भीड़ इकट्ठा करते हैं और उन हजारों आम कार्यकर्ताओं की जान से भी खिलवाड़ करते हैं। सारे नियम अधिकारियों द्वारा जनता पर ही थोपे जाते हैं। आखिर अधिकारी नेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं कर पाते ?
अगर कुछ होता है, तो दोष जनता पर जाता है कि जनता बाहर निकलकर लापरवाही कर रही है। जब प्रदेश में कोरोना वायरस की दस्तक हो रही थी, तो हमारे प्रदेश की सरकार में खरीद-बिक्री का दौर चल रहा था और सरकार गिराने और बनाने की कवायद चल रही थी। तब जब यह चिंता करना चाहिए थी कि प्रदेश में कोरोना से बचाव कैसे हो। हमारे नेताओं को सिर्फ सरकार बनाने की और बचाने की पड़ी थी और अब जब कोरोना वायरस चरम पर है, तो नेताओं को उपचुनाव की पड़ी है, क्योंकि इससे इन नेताओं का भविष्य तय होना है। बेरोजगारी बढ़ रही है। व्यापार व्यवसाय पर फर्क पड़ रहा है। प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था चरमरा रही है, लेकिन कोई देखने वाला नहीं, क्योंकि नेताओं को तो बस उपचुनाव की पड़ी है।