शशिकान्त गुप्ते
हाथी को बाजार में चलते हुए देखा। हजार तो नही लेकिन,दोचार स्ट्रीट डागों को हाथी पर भौंकते हुए जरूर देखा।हाथी पर सवार महावत को भीख मागंते भी देखा है।हाथी की सूंड पर धर्मभीरुओं को पैसे रखते हुए देखा है।सूंड पर रखे पैसों को हाथी अपनी सूंड से उछाल कर महावत को देता है।यह हाथी प्रशिक्षित स्वामिभक्त होता हैं।
जब भी मैं हाथी को बाजार में चलते हुए देखता हूँ,उसकी चाल से समझ जाता हूँ,वह स्वयं नही चल रहा है,उसे महावत चलाता है।सच में महावत ही हाथी को चलाता है।सोचता हूँ कि, महावत को बता दूं,देखना मेनकाजी से बच के रहना।
यह सब देखते हुए मुझे अचानक सफेद हाथियों का स्मरण हुआ।सफेद हाथियों का क्या?
यह शारीरिक रूप से मनुष्य ही होते हैं। इनकी खुराख मात्र हाथियों से अधिक होती है।इन हाथियों की मादा भी होती है।
यह सफेद हाथी शासन द्वारा पाले पोसे जाते हैं।यह हाथी प्रशासनिक व्यवस्था में अधिकांश एडिशनल डिप्टी,जॉइंट,असिस्टन्ट ऐसे पदों पर होते हैं।यह ओरिजनल हाथी जैसी सूंड नहीं रखते,हाथों में थाम कर रुपयों को अपने ऊपर महावत नहीं,जिनके मातहत होते हैं,उनको पहुँचाते हैं। ऊपर वालों को पहुचाने के पूर्व अपने हक़ का ईमानदारी से ध्यान रखते हैं।इस किस्म के हाथी सरकारी महकमों के अलावा निजी प्रतिष्ठानों में भी पाए जाते हैं। सरकारी महकमे वाले हाथी,मंत्रियों के लिए उपयोगी प्राणी है।इनके बगैर मंत्रियों का पत्ता भी नहीं हिलता।पत्ता नहीं हिलना तो एक कहावत है।असल मे यह इतने निष्ठावान होते हैं कि,मंत्रियों के पेट का पानी भी हिलने नहीं देते।कितना भी कठीन कार्य हो निपटाने में समर्थ होते है।सफेद हाथियों का लालन पालन बहुत महंगा होता है।
शासकीय तंत्र का पुरज़ोर इस्तेमाल किस तरह किया जाता है,यह हाथियों से ज्यादा इनके परिजन समझते हैं।एक खास बात इन हाथियों की मादाओं के नाज नखरे किसी अप्सरा से कम नहीं होते।इन्हें मेमसाब कहा जाता है।अपने पति के कार्यो में यह बहुत सहयोगी होती हैं।इनसे जिन लोगो की पहचान होती है, उनके किसी तरह के कितने भी पेचीदा काम हो,गारंटी के साथ हो जाते हैं।कैसे होते हैं यह अंडरस्तुड होता है।हॉ इतना जरूर है कि कार्य करवाने वाले विशेष प्रकार की मिठाइयों से भरे बॉक्स जिसमे मिठाई की जगह कनक होता है,इन्हें भेट स्वरूप देते हैं।यह सब गोपनीय होता है।यह घर पहुँच सेवा होती है।
इन हाथियों की शारीरिक बनावट कैसी भी हो,पाचन शक्ति एकदम मजबूत होती है।
सफेद हाथी सारा काम व्हाइट में करते हैं, ऐसा कहा जता है।
इनका लेखाजोखा निपुण लिपिक लिखते हैं।इनके मातहत अधिकारी भी पूर्ण दक्षता के साथ हर कार्य मे सहयोग करते हैं।यह सारा टीम वर्क होता है।यह सब लोग आपस में कहावत वाले मौसेरे भाई होते हैं।
यह सब देख कर कोई दावे के साथ कह सकता है,
“न मैं खाऊंगा, न ही खाने दूंगा।”
यह कहने साहस, हर कोई कर ही नहीं सकता है।इसीलिए दो हजार चौदह के बाद नई व्यवस्था लागू हो गई है।सारी जांच एजेंसीज मौन हो गई हैं,या मौन कर दी गई है।