विपिन नीमा
इंदौर। मप्र के नए मुखिया की टीम कैसी होगी, कौन कौन होगा, कितने नए चेहरे होंगे और कितने पुराने मंत्री होंगे , इसको लेकर राजनैतिक विशेषज्ञ फिर से नए नामों पर कयास लगा रहे है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के मंत्रीमंडल बनने के बाद पहली केबिनेट उन्हीं के गृह नगर महाकाल की नगरी उज्जैन में होगी। बैठक की तिथि अभी तय नहीं हुई है, क्योंकि मंगलवार को पार्टी हाईकमान ने बैठक बुलाई है।
इसी बैठक में मंत्रीमंडल के सदस्यों के नामों की मुहर लगाई जाएंगी। मंगलवार को सब कुछ तय होने के बाद बुधवार को मंत्रीमंडल का गठन कर दिया जाएंगा। उधर 7 सालों से प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाल रहे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के स्थान पर जीतू पटवारी मंगलवार को नए प्रदेश अध्यक्ष के रुप में कार्यभार ग्रहण करेंगे। इस मौके पर वे लोकसभा चुनाव के लिए अपनी टीम का चयन भी करेंगे ।
कितने सदस्यों की केबिनेट होगी और कितने नए चेहरे होंगे
प्रदेश के नवागत मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव धीरे धीरे पैर जमा रहे है। उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण पारी की शुरूआत कर दी है। मुख्यमंत्री बनने के बाद अभी उन्हें पूरी टीम नहीं मिली है। क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण के साथ ही सीनियर विधायकों को लेकर पेंच फंसा हुआ है इस कारण से मंत्रिमंडल के गठन होने में देरी हो रही है। मंत्री बनने के लिए कई दावेदार है। इसी को देखते हुए पार्टी हाईकमान ने मंगलवार को दिल्ली में बैठक बुलाई है।
इस बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को विशेषरुप से बुलाया गया है ताकि वे भी दावेदार नामों पर अपने विचार रख सके। बताया गया है की डॉ मोहन यादव की केबिनेट में कितने मंत्री होंगे, कौन कौन होगा, कितने नए चेहरे शामिल होंगे, कितने पुरानें मंत्रियों को रखा जाएंगा, तथा सीनियर विधायकों को कैसे शामिल किया जाएंगा इन तमाम बिंदुओं पर बैठक में चर्चा होगी।
मोहन कैबिनेट की पहली बैठक में होगा बड़ा एलान
महाकाल की नगरी उज्जैन के लोकल नेता से प्रदेश के मुुखिया बने डॉ मोहन यादव अपने कार्यकाल की पहली केबिनेट की बैठक अपने गृह नगर उज्जैन में करेंगे। उज्जैन में पिछले साल 27 सितम्बर 2022 को केबिनेट की बैठक हुई थी। यह बैठक महाकाल के भव्य नवनिर्मित कॉरिडोर के लोकार्पण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उज्जैन आगमन की तैयारियों को लेकर हुई थी। 16 माह बाद केबिनेट की बैठक महाकाल की नगरी में होगी। बैठक की फाइनल तिथि अभी तय नहीं हुई है, लेकिन ऐसा बताया जा रहा है की बैठक मकर संक्रांति के दिन होगी। इस दिन उज्जैन में भव्य मेला लगने के साथ पवित्र स्नान भी होता है। सीएम मोहन यादव के कार्यकाल की पहली केबिनेट की बैठक होगी। इसी बैठक में उज्जैन को तीर्थ नगरी घोषित करने का ऐलान भी होगा।
पीसीसी प्रमुख जीतू पटवारी आज से नई जिम्मेदारी में दिखेंगे
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक पराजय के साथ कमलनाथ को भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से मुक्त कर दिया है। उन्होंने 7 सालों से प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान संभाल रखी थी। 2018 के चुनाव में उन्हीं के कार्यकाल में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। 15 माह तक वे प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे । इसके बाद पार्टी में अंदरुनी बगावत होने के बाद कमलनाथ की सत्ता हाथ से चली गई। 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी शिकस्त के बाद कमलनाथ से अध्यक्ष पद वापस ले लिया गया है।
उनके स्थान पर पार्टी हाईकमान ने कांग्रेस ने पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस के युवा नेता जीतू पटवारी को पीसीसी चीफ बनाया है। वे मंगलवार को अध्यक्ष पद ग्रहण कर अपनी नई पारी की शुरूआत करेंगे। कमलनाथ को हटाने तथा जीतू पटवारी को अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे यह कारण बताया जा रहा है की भाजपा ने युवा नेता को नेतृत्व सौंपा है उसी को देखते हुए पार्टी हाईकमान ने भी अपनी पार्टी का नेतृत्व युवा नेता को सौंपा है। अध्यक्ष का पद ग्रहण करने के बाद जीतू पटवारी सबसे पहले आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अपनी टीम को चुनेंगे।
लोकसभा में जीतू के साथ नाथ – सिंह की भी अग्नि परीक्षा
लोकसभा चुनाव की तैयारी धीरे-धीरे शुरू होती जा रही है। इस बार लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश कांग्रेस की कमान नियुक्त अध्यक्ष जीतू पटवारी के हाथ में होगी। यह उनकी पहली अग्नि परीक्षा होगी। पार्टी हाई कमाने जीतू पटवारी का साथ देने के लिए पूर्व पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ भोजपुरी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भी जिम्मेदारी होती है। तीनों को बड़ी दमदारी के साथ काम करना होगा, क्योंकि अभी हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के क्या हाल हुए ये सभी को पता ही। सात साल पीसीसी प्रमुख रहे कमलन की सबसे बड़ी सफलता यही थी की 2018 में उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस ने भाजपा की लगातार जीत का सिलसिला तोड़कर 15 साल बाद विधानसभा चुनाव जीता था।
इसके साथ ही उनके नेतृत्व में ही मध्य प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस ने वापसी की थी, लेकिन कांग्रेस लम्बे समय तक सत्ता का सुख नहीं भोग पाई और 15 माह के भीतर ही पार्टी में आपसी टकराव के कारण सत्ता हाथों से चली गई। सरकार गिरने बाद कांग्रेस की हालत और खराब हो गई। कई नेता पार्टी छोड़कर चले गए। इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कितनी बुरीगत हुई ये सबके सामने है। अब लोकसभा चुनाव सामने है और ऐसे में पार्टी को एक जूट होकर काम करने की आवश्यकता है।