चीन अब अमेरिका की तरह विश्व की अग्रणी शक्तियों में से एक बन गया है। भारत भी अब इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए तैयार है। चीन की जीडीपी भारत से ढाई गुना ज्यादा है। चीन विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अनुसंधान सबसे आगे हैं। अमेरिका भी चीन को एक कड़े प्रतिस्पर्धी के तौर पर देखता है। सवाल ये है कि क्या भारत चीन से आगे निकल सकता है। इंफोसिस के चेयरमैन एनआर नारायणमूर्ति के मुताबिक, भारत में चीन की अर्थव्यवस्था को मात देने की क्षमता है। इकोनॉमिक टाइम्स अखबार के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने कुछ ऐसे कारकों का खुलासा किया जो उन्हें औद्योगिक क्षेत्र में चीन से आगे निकलने में सक्षम बनाएंगे।
किस फॉर्मूले से चीन को हरा सकता है भारत?
इंफोसिस के सह-संस्थापक:
उद्यमियों के लिए अनुकूल कारोबारी माहौल उपलब्ध कराया जाए।
लोगों की आय बढ़ाई जानी चाहिए।
हर साल लाखों नौकरियाँ पैदा की जानी चाहिए।
मानव संसाधनों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जेनेरिक एआई का पर्याप्त उपयोग किया जाना चाहिए
उद्योगपतियों एवं उद्यमियों को परेशानी मुक्त वातावरण उपलब्ध कराया जाए। उनके उद्यम को सुविधाजनक बनाने और तेज करने के लिए नीतियां तैयार की जानी चाहिए। यदि यह संभव हुआ तो हम न केवल चीन की बराबरी कर सकते हैं बल्कि उससे पार भी पा सकते हैं।
‘1990 के दशक में भारत में वैश्वीकरण लागु किया गया’
चीन ने पिछले चार से पांच दशकों में उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीति लागू की है। और आर्थिक विकास के उच्च स्तर को कायम रखा हैं। परिणामस्वरूप यह संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 1990 के दशक में भारत में वैश्वीकरण लागु किया गया। मुक्त बाज़ार दृष्टिकोण अपनाया गया। वैश्वीकरण लागु करने के बाद से भारत की जीडीपी में वृद्धि हुई हैं, लेकिन प्रतिस्पर्धा में चीन भारत से कहीं आगे है। चीन ने सभी क्षेत्रों में अद्वितीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं।
‘भारत चीन से आगे निकल सकता है’
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में चीन की आर्थिक वृद्धि धीमी हो जाएगी जबकि भारत की जीडीपी में वृद्धि होगी। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दशक के अंत तक भारत की सालाना जीडीपी ग्रोथ 9 फीसदी तक पहुंच सकती है। चीन की विकास दर गिरकर 3.5 फीसदी रह सकती है। अगर आने वाले वर्षों में यही गति जारी रही तो भारत चीन से आगे निकल सकता है।