हमने इस बात पर शायद ही कभी गौर किया हो कि आपसी बातचीत या ‘गोदी चैनलों’की बहसों को देखने-सुनने के दौरान हम दिन के कितने घंटे सिर्फ़ एक ही व्यक्ति यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पिछले दस सालों से खर्च कर रहे हैं ! हमें यह भी याद करके देखना चाहिए कि ऐसा हमने पिछली बार किस प्रधानमंत्री के लिए किया होगा कि साल भर तक सिर्फ़ उसके ही बारे में सोचते और उससे डरते रहे हों ! ऐसा सिर्फ़ अधिनायकवादी व्यवस्थाओं में ही होता है।
हमें डरना चाहिए कि प्रधानमंत्री के इर्द-गिर्द एक ऐसा तंत्र विकसित हो गया है जिसने देश की एक बड़ी आबादी को सिर्फ़ मोदी की दैनंदिन की गतिविधियों और उनके व्यक्तित्व के दबदबे के साथ चौबीसों घंटों के लिए एंगेज कर रखा है। प्रधानमंत्री की उपस्थिति हवा-पानी की तरह ही नागरिकों की ज़रूरतों में शामिल कर दी गई है। पार्टी और तंत्र से परे प्रधानमंत्री की छवि एक ‘कल्ट’ के रूप में स्थापित कर दी गई है।
कुछ ऐसा कर दिया गया है कि नागरिकों को कुछ और सोचने का मौका नहीं दिया जा रहा है। बेरोज़गारी और महंगाई तो बहुत दूर की बात है। ध्यान देना चाहिए कि जिन मुल्कों में प्रजातंत्र है वहाँ लोग और भी चीजों और विषयों के बारे में सोचते हैं। जो लोग सार्वजनिक तौर पर दावे करते हैं कि वे प्रधानमंत्री को बहुत चाहते हैं हक़ीक़त में मोदी की छवि का उपयोग स्वयं के डरने में भी कर रहे हैं और दूसरों को डराने में भी ! चूँकि मोदीजी का ख़ुफ़िया तंत्र बहुत सशक्त है हो सकता है प्रधानमंत्री को भी उनकी इस खूबी की जानकारी हो।
दो साल पहले एक खबर प्रकाशित हुई थी कि एक मुस्लिम किरायेदार ने अपने मुस्लिम मकान मालिक के ख़िलाफ़ अधिकारियों से यह शिकायत की कि उसे मकान ख़ाली करने की धमकी इसलिए दी जा रही है कि उसने प्रधानमंत्री की तस्वीर अपने घर में लगा रखी है। जाँच के बाद पाया गया कि दोनों के बीच विवाद किराए के लेन-देन का था। किरायेदार को उम्मीद रही होगी कि मोदी की तस्वीर उसके लिए सुरक्षा कवच का काम कर सकती है। किरायेदार अगर बहुसंख्यक समुदाय का होता तो स्थिति जाँच पूरी होने के पहले ही कोई अलग रूप ले सकती थी।
एक यूट्यूब चैनल में बहस के दौरान जब एक पैनलिस्ट ने पहली बार कहा कि भाजपा देश पर पचास साल तक राज करने वाली है तो उसके कहे को ‘पंद्रह लाख हरेक के खाते में जमा हो जाएँगे‘ जैसा ही कोई जुमला मानकर ख़ारिज कर दिया गया। पैनलिस्ट ने जब अपने दावे को ज़ोर देकर संशोधन के साथ पेश किया कि मोदी ही अगले पचास सालों तक राज करने वाले हैं तो उसकी बात पर नए सिरे से सोचना पड़ा।उन्होंने अपने दावे के समर्थन में कुछ तर्क भी पेश किए। उनके दावे का खंडन प्रधानमंत्री की उम्र के बारे में जानकारी होते हुए भी नहीं किया जा सकता था।
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की पूर्व संध्या पर 8 अगस्त 1942 के दिन बम्बई में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में गांधी जी ने जब घोषणा की होगी कि वे पूर्ण जीवन जीना चाहते हैं और उनके अनुसार पूर्ण जीवन का अर्थ एक सौ पच्चीस वर्ष होता है तो कई लोग आश्चर्यचकित रह गए होंगे। गांधी ने आगे यह भी जोड़ा कि तब तक सिर्फ़ भारत ही नहीं बल्कि सारी दुनिया भी आज़ाद हो जाएगी।(गांधी जी की उम्र उस समय 73 वर्ष थी।)। गांधी जी दृढ़ इच्छा-शक्ति के व्यक्ति थे अतः उन्हें अपने आप पर पूरा विश्वास रहा होगा कि वे सवा सौ वर्ष तक जीवित भी रह सकते हैं और देश के लिए काम भी कर सकते हैं।उन्होंने डेढ़ सौ वर्ष जीवित रहने जैसी असम्भव-सी बात नहीं कही।
(पूरे देश ने टीवी चैनलों के पर्दों पर दो साल पहले देखा था कि किस तरह से 126 वर्ष के स्वामी शिवानंद नंगे पैर चलते हुए पद्मश्री अलंकरण प्राप्त करने राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में पहुँचे थे और बिना किसी सहारे के उन्होंने प्रधानमंत्री के समक्ष झुककर प्रणाम किया था।)
चीन और रूस के राष्ट्रपतियों ने अपने देशवासियों को बता रखा है कि वे और कितने सालों तक अपने पदों पर बने रहकर उनकी ‘सेवा’ करने वाले हैं।राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीनी संविधान में संशोधन के ज़रिए राष्ट्रपतियों के दो बार से अधिक पद पर बने रहने की समय-सीमा को ख़त्म कर दिया गया है।यानी 2003 से राष्ट्रपति जिनपिंग अब जब तक चाहेंगे सत्ता में बने रह सकेंगे।उन्होंने अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों को सत्ता की होड़ से बाहर कर दिया है।
अपने लिए बनाए गए क़ानून के अनुसार,रूसी राष्ट्रपति पुतिन भी अब 2036 तक सत्ता में रह सकेंगे।वे तब 83 वर्ष के हो जाएँगे।पुतिन 1999 से सत्ता में हैं।1999 से 2008 तक वे देश के प्रधानमंत्री थे।बाद में राष्ट्रपति बन गए।चीन और रूस दोनों में आने वाले कई वर्षों तक इस बात की कोई चर्चा नहीं होने वाली है कि जिनपिंग के बाद कौन ? या ‘हू आफ़्टर पुतिन ?’ नेहरू के जमाने से भारत की राजनीति में चर्चा होती रही है कि ‘हू आफ़्टर नेहरू ? इंदिरा ? या वाजपेयी ? वाजपेयी जी के मामले में तो मानकर चला जाता था कि आडवाणी ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। हमारे यहाँ भी रूस जैसी व्यवस्था क़ायम होने का भय व्यक्त किया जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने हाल ही इशारों में इस भय को व्यक्त भी किया था।
प्रधानमंत्री ने जनता और भाजपा दोनों को इतने ज़बरदस्त तरीक़े से 24 घंटे एंगेज कर रखा है कि ‘हू आफ़्टर मोदी ?’ का विचार भी कोई अपने मन में नहीं ला सकता। मोदी ने अपनी ओर से भी ‘मन की बात’ कभी ज़ाहिर भी नहीं की कि वे कब तक पद पर बने रहना चाहते हैं ।उनकी नज़र में निश्चित ही ऐसे कई बड़े काम अभी बाक़ी हैं जिन्हें उनके ही द्वारा पूरा किया जाना है।
वर्तमान जिम्मेदारियों के साथ मोदी ने अपने आपको इतना एकाकार कर लिया है कि तिहत्तर वर्ष की आयु में भी वे ज़बरदस्त तरीक़े से काम करते हुए नज़र आते हैं। कहा जाता है कि उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी जब सुबह उठकर आँखें ही मल रहे होते हैं, मोदी कैबिनेट की मीटिंग बुला लेते हैं।प्रधानमंत्री की असीमित ऊर्जा में यह भी शामिल है कि वे प्रशंसकों के साथ-साथ विरोधियों को भी पूरे समय एंगेज किए रहते हैं।कहा जाता है कि प्रधानमंत्री के रूप में मोदी उस क्षण से कमजोर होने लगेंगे जिस क्षण से विपक्षी उनके बारे में सोचना बंद कर देंगे।
मोदी की दिनचर्या को लेकर एक पुरानी जानकारी के अनुसार वे सिर्फ़ साढ़े तीन घंटे की ही नींद लेते हैं।मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि ‘उनके डॉक्टर मित्र उन्हें लगातार सलाह देते रहते हैं कि कम से कम पाँच घंटे की नींद लेनी चाहिए पर मैं सिर्फ़ साढ़े तीन घंटे ही सो पाता हूँ।’ मोदी का यह इंटरव्यू तेरह साल पहले (2011) का है जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे, प्रधानमंत्री नहीं बने थे। उनकी नींद को लेकर महाराष्ट्र भाजपा के बड़े नेता ने कहा था कि :’पीएम सिर्फ़ दो घंटे सोते हैं और बाईस घंटे काम करते हैं। वे प्रयोग कर रहे हैं कि सोने की ज़रूरत ही नहीं पड़े । वे हरेक मिनट देश के लिए काम करते हैं।’ अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा देर रात तक काम करते थे पर पाँच घंटे की नींद लेते थे।
सार यह है कि विपक्षी इंडिया गठबंधन सहित वे तमाम दल जो मोदी को सत्ता से हटाना चाहते हैं उन्हें अपनी नींद के घंटे कम करना पड़ेंगे। अपनी बात हमने एक पैनलिस्ट के इस दावे से प्रारम्भ की थी कि मोदी और पचास साल हुकूमत में रहने वाले हैं। 126 साल तक सक्रिय रहने का फ़ार्मूला स्वामी शिवानंद से प्राप्त किया जा सकता है। विपक्षी दल और मोदी-विरोधी आरोप लगा जा सकते हैं कि उन्हें डराया जा रहा है ! तय भी उन्हें और देश की जनता को ही करना है कि वह इस तरह से डर कर कब तक रहना चाहती है ? क्या डर से मुक्त होने का यही ठीक अवसर नहीं है ?
-श्रवण गर्ग