अतिक्रमण हटाना कितनी टेढ़ी खीर हैं? समझिये आनंद शर्मा से

Piru lal kumbhkaar
Published on:
encroachment removal

राजस्व विभाग में एक बड़ा पेचीदा लेकिन महत्वपूर्ण कार्य जो हर अधिकारी को करना पड़ता है वो है अतिक्रमण हटाना(encroachment removal)। सबके अनुभव अलग अलग होते हैं , पर कुछ वाक़ये याद रह जाते हैं। वर्ष 1990 से 1992 के दौरान मेरी पदस्थापना नरसिंहपुर जिले में नजूल अधिकारी के पद पर थी। उन दिनों बाबूलाल गौर साहब मध्यप्रदेश शासन के नगरीय शासन विभाग के मंत्री हुआ करते थे और एक अभियान के तहत पूरे प्रदेश में शासकीय भूमि पर से अतिक्रमण हटाने की मुहिम आरम्भ की गयी थी।

नरसिंहपुर शहर के लिए भी अतिक्रमण हटाने की योजना बनी लेकिन संयोग ये हुआ, कि जिस दिन अतिक्रमण हटाने का अभियान शुरू होना था, उसी दिन स्थानीय एस.डी.एम., नगरपालिका प्रशासक और कलेक्टर तीनो शहर से बाहर किसी न किसी काम से चले गए, सो इस अभियान की कमान पूरी तरह मेरे हाथ में आ गयी। उन दिनों नरसिंहपुर में एक ही मुख्य सड़क थी , जो शहर से रेलवे स्टेशन को जोड़ा करती थी, इसलिए तय किया गया कि यहीं से अतिक्रमण हटेगा|

अतिक्रमण हटाने का दस्ता लेकर हम स्थल पर पहुँचे ही थे कि कठल पेट्रोल पम्प चौराहे के पास भीड़ के रूप में कुछ लोग , जिनमे कुछ नेता भी थे, हमारे समीप आ गए| भीड़ थी तो जल्द ही नारे भी लगने लगे। हमने उनमें से कुछ प्रतिनिधियों को पास बुला कर समझाया कि सड़क पर से अतिक्रमण हटाना तो जनता के हित में ही है। प्रतिनिधियों ने कहा हम भी चाहते हैं कि अतिक्रमण हटे , पर इसी जगह से शुरुवात करने की क्या जरूरत? क्यों नहीं स्टेशन से शुरू करते ? एक सज्जन बोले चलो ठीक है , सरकारी जगह हम छोड़ेंगे पर आपके पास नाप कहाँ है कि कितनी सड़क की जगह पर हमारा अतिक्रमण है ? बाक़ी तो सब ठीक था , पर अंतिम तर्क महत्वपूर्ण था।

must read: अजब है गोवा की राजनीति, यहां हर कोई रियल एस्टेट वाला ही नेता

मैंने पूछताछ की तो पता चला कि सड़क के दोनों ओर कुछ निर्धारित दुरी चिन्हित कर नगर पालिका ने निशान बना दिए गए हैं, पर सड़क का वास्तविक माप क्या है, इसका कोई विवरण न तो लोक निर्माण विभाग के पास था, न नगरपालिका के पास| मैंने सोचा अब क्या करूँ? कोई वरिष्ठ अधिकारी मार्गदर्शन के लिए था नहीं, चौराहे पर पहुँच वापस आने से भी नाक नीची होती और बिना तर्क काम करने का मेरा स्वभाव नहीं था, कानून व्यवस्था निर्मित होती सो अलग। मैं इस पशोपेश में डूबा हुआ था कि मेरे पास अधीक्षक भू अभिलेख श्री ब्योहार आये और बोले इनको नापजोख चाहिए तो हम दे देंगे आप बस पंद्रह मिनट रुक जाओ और दल के साथ मौजूद मुख्यालय राजस्व निरीक्षक को बोले, जाकर रिकार्ड रूम से 1935 की इस क्षेत्र की फील्ड बुक लेकर आओ|

फील्ड बुक वो माप-पुस्तिका है जिसमे नाप करने के दौरान स्थल की लम्बाई चौड़ाई सहित सारे विवरण रहते हैं। नरसिंहपुर ज़िला महाकौशल का भाग था जो रिकार्ड के क़ायदे से संधारण के लिए प्रसिद्ध था। थोड़ी ही देर में , सन 1935 का रिकार्ड आ गया जिसमे ये अंकन था कि ये सड़क कितनी चौड़ी है। रिकार्ड आने के बाद नजूल आर.आइ. और ब्योहार साहब ने उसे ध्यान पूर्वक देखा, स्थाई अंकित चिन्ह से जरीब डाली और चौराहे के समीप बने एक मकान के पास खड़े होकर बोले साहब इसके सहन की दिवार तुड़वा दें, इसका कमरा सड़क पर अतिक्रमण कर बनाया गया है। लोग फिर हल्ला करने लगे, अरे ऐसे कैसे ? क्या सबूत ? ब्योहार मुझसे कहने लगे आप तो तुड़वा दो इसके नीचे चांदा पत्थर निकलेगा जो सरकारी नाप करने का चिन्ह होता है। मैंने कहा ब्योहर साहब सोच लो , अन्दर पत्थर न निकला तो ये लोग बुरी तरह भड़क जायेंगे। ब्योहार बोले आप मेरी नौकरी ले लेना यदि पत्थर न निकले |

मैंने पुलिस कर्मियों को लगा कर लोगों की भीड़ दूर की और मजदूरों ने दिवार तोड़ कर खोदना चालू किया । थोड़ी ही देर में अतिक्रमित करके बनाये गए कमरे के अन्दर ही सरकारी चांदा पत्थर नीचे से निकल गया , मैंने भीड़ और भीड़ के नेताओं से कहा कि आ जाओ , देख लो सरकारी जगह का सबूत और वो भी 1935 का| थोड़ी ही देर में भीड़ अपने नेताओं समेत गायब हो गयी और फिर पूरी मुहिम में हमें कहीं परेशानी नहीं आयी |

must read: कर्नाटक हिजाब विवाद: मुस्कान पर लगी सम्मानों की झड़ी, अब मालेगांव में उर्दू घर का नाम होगा ‘मुस्कान’

नरसिंहपुर में दाना पानी समाप्त होने के बाद मैं सिहोर और फिर सागर होते हुए उज्जैन पदस्थ हो गया । श्री आर सी सिन्हा उज्जैन के कलेक्टर थे , उन्होंने मुझे उज्जैन के घट्टिया अनुविभाग के एस.डी.एम. और ज़िले के प्रोटोकाल आफ़िसर का चार्ज दे दिया । चार्ज मिले दो-चार दिन ही हुए होंगे कि म. प्र. शासन के खाद्य मंत्री श्री सत्येंद्र पाठक के उज्जैन दौरे पर आने की सूचना मिली । प्रोटोकाल तो था ही पर वे मेरे शहर कटनी के निवासी थे तो मैं उनके आने के पूर्व ही सर्किट हाउस में पहुँच गया । मंत्री जी आए और औपचारिक अभिवादन के बाद अंदर कमरे में चले गए । उनके साथ कार से उतरे एक सज्जन बाहर ही खड़े थे और मुझे ध्यान से देख रहे थे । थोड़ी देर बाद वे मेरे पास आकर बोले , आप को कहीं देखा है । मैंने उनसे कहा “मुझे तो उज्जैन आए ही एक-आध सप्ताह हुआ है , मुझे कहाँ आपने देखा होगा”। उन्होंने पूछा इसके पहले आप कहाँ थे । मैंने उत्तर दिया सागर । वे कुछ देर सोचते रहे फिर बोले आप नरसिंहपुर भी रहे हो क्या ? मैंने कहाँ जी हाँ , इस पर वे बोले अब याद आया , नरसिंहपुर में मेन रोड पर हमारी आइल मिल है , अतिक्रमण अभियान के दौरान जब हमारी दिवार टूट नहीं रही थी तो आप जे.सी.बी. मशीन लेकर आए थे और खुद खड़े होकर दिवार तुड़वाई थी । मैंने सोचा ये क्या पंगा है , जुम्मा जुम्मा पंद्रह दिन भी नहीं हुए हैं और ये मंत्री के दोस्त का ही ऐसा तजुर्बा सामने आ गया । मैंने उन सज्जन से कहा देखो भाई , वो सब सरकारी काम था , मेरी कोई व्यक्तिगत रंजिश तो थी नहीं , वरना मुझे भी आप याद रहते । वो शख़्स धीमे से मुस्कुराया और बोला आप सही कह रहे हो , अतिक्रमण तो आपने सबका ही हटाया था , मुझे उसका कोई गिला नहीं , वो तो आपको देख पुरानी याद आ गयी और कुछ नहीं ।
लेखक – आनंद शर्मा