साध्वी उमा के लिए प्रदेश की राजनीति में वापसी कितनी आसान!

Mohit
Published on:

भाजपा की फायरब्रांड नेत्री साध्वी उमा भारती एक बार फिर चर्चा में हैं। प्रयास वे लंबे समय से कर रही हैं लेकिन सोलह साल बाद पहली बार उन्होंने खुलकर इस बात का इजहार किया है कि वे लोकसभा चुनाव लड़कर फिर प्रदेश की सक्रिय राजनीति में वापसी चाहती हैं और इससे पहले संगठन में काम करना चाहती हैं। बता दें, उमा के पास इस समय कोई दायित्व नहीं है। गंगा यात्रा के नाम पर उन्होंने घोषणा कर रखी थी, इसलिए 2019 में लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ीं। संगठन में भी उनके पास कोई पद नहीं है। लोकसभा चुनाव न लड़ने के पीछे उनकी मंशा यही थी कि इसके बाद अगला चुनाव वे अपने गृह प्रदेश मप्र से लड़ेंगी और सक्रिय राजनीति में वापसी करेंगी। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या उमा प्रदेश की सक्रिय राजनीति में वापसी कर पाएंगी, क्योंकि 16 साल बाद भी प्रदेश भाजपा की राजनीति में कोई खास बदलाव नहीं आया है। उन्हें प्रदेश की राजनीति से बाहर भेजने में भूमिका निभाने वाले नेता अब भी पॉवरफुल हैं।

तीन साल से प्रदेश में ही सक्रिय है उमा भारती 2019 में लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ीं लेकिन लगभग तीन साल से प्रदेश में ही सक्रिय हैं। इससे उनकी मंशा का पता चलता है। 2018 के विधानसभा और इसके बाद लोकसभा चुनाव में पार्टी के निर्देश पर उन्होंने प्रचार अभियान में हिस्सा लिया। इसके बाद प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के लिए उप चुनाव हुए तो उसमें भी उनका उपयोग हुआ। हाल ही में दमोह विधानसभा सीट के उप चुनाव में भी उन्होंने ताकत झोंकी। सबसे ज्यादा चर्चा में वे शराबबंदी अभियान को लेकर दिए गए अपने बयान के कारण रहीं। उन्होंने घोषणा की थी कि वे शराबबंदी के खिलाफ अभियान चलाएंगी लेकिन फिर पीछे हट गर्इं। दरअसल, वे नहीं चाहतीं कि उनके किसी कदम से पार्टी नेतृत्व नाराज हो, ताकि उनके प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने में अड़चन आए।

भाजपा नेतृत्व की जमकर कर रहीं तारीफ

शराबबंदी अभियान सहित कुछ बयान अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो उमा पिछले कुछ समय से भाजपा के केंद्रीय एवं प्रदेश नेतृत्व की जमकर तारीफ कर रही हैं। जितनी तारीफ वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करती हैं, उतनी ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की। उमा को लगता है कि उनका कोई बयान नुकसान पहुंचा सकता है तो वे उसे संशोधित करने में देर नहीं करतीं। बावजूद इसके पार्टी में उन्हें कोई खास तवज्जो नहीं मिल रही। उन्हें ट्वीट के जरिए अपनी बात पार्टी नेतृत्व तक पहुंचाना पड़ रही है। इसीलिए जब उन्होंने चुनाव लड़ने एवं संगठन में सक्रिय रहने की बात कही तो लगातार लगभग तीस ट्वीट किए। इससे पार्टी में उनकी स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

प्रचंड जीत के बावजूद 8 माह रह सकीं मुख्यमंत्रीं

वर्ष 2003 का विधानसभा चुनाव पार्टी ने पहली बार उमा भारती को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर लड़ा था। इस चुनाव में भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज की थी। मप्र में इतनी सीटें भाजपा फिर कभी नहीं जीती। बावजूद इसके उमा सिर्फ 8 माह ही मुख्यमंत्री रह सकीं। कर्नाटक के हुबली की एक अदालत द्वारा दस साल पुराने मामले में गैर जमानती वारंट जारी किए जाने के कारण अगस्त 2004 में उमा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उमा मुख्यमंत्री का पद छोड़कर देशव्यापी तिरंगा यात्रा पर निकल पड़ी थी। पहले पार्टी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी बाबूलाल गौर को सौंपी, इसके बाद शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने। इससे नाराज होकर उमा ने अलग भारतीय जनशक्ति पार्टी बना ली थी, लेकिन वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में पार्टी कोई चमत्कार नहीं कर सकी। भाजपा में उन्हें अपनी पार्टी का विलय करना पड़ा।

 मोदी के रुख पर निर्भर उमा का भविष्य

उमा प्रदेश की राजनीति में वापसी की कोशिश भले कर रही हैं लेकिन उनका भविष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रुख पर निर्भर करता है। वे चाह लें तो पार्टी के अंदर उमा के किसी विरोधी में बोलने की हिम्मत नहीं। लेकिन यह इतना आसान भी नहीं। शिवराज सिंह चौहान एवं नरेंद्र सिंह तोमर तो अपनी जगह हैं ही, अब प्रदेश में कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा वीडी शर्मा मुख्यमंत्री के नए दावेदार के रूप में सामने हैं। वैसे भी उमा की भाजपा में वापसी इसी शर्त पर हुई थी कि वे मप्र की राजनीति में सक्रिय नहीं होंगी। इसीलिए एक दशक से भी अधिक समय तक वे उत्तर प्रदेश में सक्रिय थीं। 2014 का लोकसभा चुनाव उप्र की झांसी लोकसभा सीट से लड़ा था। वे उप्र के महोबा जिले की चरखारी विधानसभा सीट से विधायक बनीं। 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी नेतृत्व ने उमा भारती के नेतृत्व में उप्र विधानसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन सफलता नहीं मिली। यदि सफल हो जातीं तो आज पार्टी में उनकी स्थिति कुछ और ही होती। फिलहाल तो वे प्रदेश की राजनीति में वापसी के लिए हाथ – पैर, दिमाग सब चला रही हैं।