राजेंद्र माथुर पत्रकारिता के पुरोधा कैसे बन गए थे

Ayushi
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अर्जुन राठौर

देश के जाने-माने पत्रकार स्वर्गीय श्री राजेंद्र माथुर जी का आज जन्म दिवस है और इस मौके पर उन्हें याद करना लाजमी है राजेंद्र माथुर से जुड़ी हुई कई यादें हैं राजेंद्र माथुर से मेरी मुलाकात उन दिनों हुई जब मैं नई दुनिया में पत्र संपादक के नाम लिखा करता था और अक्सर मेरे पत्र उस में छपा करते थे इन दिनों नईदुनिया में पत्र संपादक के नाम कालम बेहद लोकप्रिय था बाद में इसमें पत्र लिखने वाले पत्रकार तथा लेखक के रूप में स्थापित भी हो गए।

मैं उत्सुकतावश राजेंद्र माथुर से मिलने के लिए नई दुनिया गया तब उन्होंने मुझसे कहा कि पत्र के साथ-साथ लेख भी लिखना शुरू करो उस दौरान मेरे कई लेख नईदुनिया में माथुर जी ने प्रकाशित किए ।

कुल मिलाकर माथुर जी ऐसे संपादक थे जो नए पत्रकारों को न केवल प्रोत्साहित करते थे बल्कि उन्हें विषय भी सुझा देते थे वे सचमुच पत्रकारिता के एक बहुत बड़े विश्वविद्यालय थे आजकल के संपादक तो अपने टुच्चेपन और दरिद्र सोच के लिए कुख्यात हो रहे हैं सांप की तरह कुंडली मार कर बैठना और फिर उस पद को बचाने के लिए तरह तरह के षड्यंत्र रचते हुए अपने सहयोगियों के सर कलम करना उनकी रोजी-रोटी छीनना संपादकों का मुख्य व्यवसाय बन गया है ।

राजेंद्र माथुर को इसलिए भी याद किया जाना चाहिए कि उन्होंने नए लेखकों और पत्रकारों की एक बहुत बड़ी फौज खड़ी कर दी जो बाद में देशभर के बड़े अखबारों में काम करती हुई दिखी और यह सब उन्होंने बगैर अहंकार के किया वे एक बहुत ही सादा सरल इंसान थे जो अपने स्कूटर को सुधरवाते हुए रामकिशन मैकेनिक के यहां श्रीमाया होटल के पास दिख जाया करते थे । प्रोफेसर सरोज कुमार उनके खास दोस्त थे और सरोज कुमार जी के घर जब भी मैं जाता तो मुझे मथुरजी मिल जाते ।

उन दिनों सरोज कुमार जी अकेले रहते थे और वे गाजर मूली तथा अन्य सब्जियों को मिलाकर एक विशेष आहार तैयार करते जो बेहद स्वादिष्ट होता कई बार मुझे भी उसका सेवन करने का आनंद मिल जाता था। राजेंद्र माथुर जब नवभारत टाइम्स में संपादक बने तब भी मैं दिल्ली में उनसे कई बार मिला एक बार उन्होंने मेरा पीएचडी को गाइड बनने के लिए भी हां भर दी थी वे मेरे को गाइड बनने के लिए राजी हो गए थे उन दिनों मैं खोजी पत्रकारिता पर पीएचडी करना चाहता था राजेंद्र माथुर की पाठशाला से निकले उनके कई सहयोगी अपने आपको राजेंद्र माथुर से कम नहीं समझते थे और आज भी ऐसा ही है राजेंद्र माथुर बेहद विनम्र इंसान थे वे जीवन भर पत्रकार और लेखक रहे उन्होंने जीवन भर किसी से समझौता नहीं किया