राजनैतिक विश्लेषण-महेश दीक्षित
भोपाल। आखिरकार छह महीने के लंबे इंतजार के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने सांगठनिक गतिविधियों को गति देने के लिए जैसे-तैसे महामंत्री के नामों का ऐलान कर दिया… प्रदेश कार्यकारिणी में पांच महामंत्री बनाए गए हैं, जिन चेहरों को महामंत्री बनाया गया है उनमें रणवीर रावत, हरिशंकर खटीक, शरदेन्दु तिवारी, भगवानदास सबनानी और कविता पाटीदार के नाम शामिल हैं…इन पांच महामंत्रियों के चेहरों को देखकर लगता है कि, वीडी खरीदने तो गए थे तेजतर्रार घोड़े और उठा लाए खच्चर…वीडी अब इन्ही के कंधों के भरोसे और सहारे प्रदेश भर में पार्टी और सांगठनिक गतिविधियों का रथ दौड़ाएंगे…खास बात यह कि, वीडी पार्टी का रथ सिर्फ हांकते ही दिखाई देंगे, लेकिन पार्टी के रथ की असल बागडोर एक बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों में ही रहेगी…जैसा कि नंदूभैय्या और राकेश सिंह के पार्टी अध्यक्ष रहते हुआ करती थी…ये दोनों सिर्फ नाम के ही अध्यक्ष रहे थे…और अपने पूरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री की इच्छानुसार ही हिलते-डुलते रहे…न अपनी मनमर्जी से संगठन चलाए पाए…और न ही अपने अनुसार कार्यकारिणी का गठन कर पाए…अब टीम वीडी में कार्यकारिणी के 200 लोगों में से जिन पांच चेहरों को बतौर महामंत्री शामिल किया गया है…उनके गले में शिवराजजी के फोटो वाला का बिल्ला लटका हुआ है…साफ है वीडी भी अब पिछले अध्यक्षों की तरह अपना अंदाज एक तरफ रखकर शिवराज शरणम गच्छामि हो गए हैं…। उनका छह महीने पहले दिखाई देने वाला ओज और तेज अब शिवराज की राजनीतिक चमक के सामने निस्तेज हो चुका है…वे संगठन चलाने के लिए शिव सत्ता के आश्रय को स्वीकार कर चुके हैं..।
भाजपा संगठन का ढांचा इस तरह का है कि, उसमें सत्ता कैसे चलेगी यह संगठन तय करता है….और ऐसे अनुभवी, सिद्ध और जमीनी कार्यकर्ताओं को पदाधिकारी का जिम्मा दिया जाता रहा है, खासतौर से महामंत्री का, जिसे कि हर स्थिति-परिस्थिति में संगठन का काम करने और उसे सुसंगठित करने गहरा अनुभव हो…और जो अध्यक्ष के विजन और आइडियाज को मूर्तरुप देने की समझ और क्षमता रखते हों..और जिनका पूरे प्रदेश में न सही, कम से कम अपने जिले में तो असर हो… और जो 25-50 हजार कार्यकर्ताओं का पार्टी के लिए जमावड़ा जुटाने की ताकत रखता हो…लेकिन अभी टीम वीडी में जिन पंच प्यारों को शामिल किया गया है…उनमें से एक भी पदाधिकारी ऐसा नहीं है, जिसका पूरे प्रदेश में प्रभाव हो…इन्हें जिला तो छोड़ो विधानसभा का भी सर्व स्वीकार नेता नहीं माना जा सकता है…ऐसे में संगठन के पुराने नेता सवाल उठा रहे हैं कि, पार्टी और संगठन की कसौटी पर वीडी के ये पंच प्यारे खरे उतर सकेंगे इसमें संशय ही है…और फिर ये कांग्रेस नहीं है कि, जिसको भी थोपा जाएगा, सहज सिर पर बिठा लिया जाएगा…संगठन को चलाने के लिए तेज दौड़ सकने वाले घोड़ों की जरूरत होती…और फिर पांच महामंत्री बनाए थे, तो संगठन कार्यकारिणी की आवश्यकता के बाकी पदाधिकारी- दस उपाध्यक्षों और नौ प्रदेश मंत्रियों का ऐलान भी लगे हाथ कर दिया जाता, तो कौनसा आफत-खिलाफत का पहाड़ टूट पड़ता…? कहा जा रहा है कि संगठन में पंच प्यारों के चयन में क्षेत्रीय और जातीय संतुलन का पूरा ख्याल रखा गया है…जबकि प्रदेश की 47 अजा-जजा विधानसभा सीटों को प्रभावित करने वाले आदिवासियों के नेतृत्व को खूंटी पर टांग दिया गया है…संगठन में आदिवासियों की उपेक्षा क्यों की गई… चूकवश हुई या जानबूझकर की गई…ये वीडी ही बता सकते हैं… ।
क्यों उठ रहे सवाल
-यदि जतारा (टीकमगढ़) के विधायक, नवनियुक्त महामंत्री हरिशंकर खटिक की बात करें, तो वे अनभुवी नेता जरूर हैं। पिछली सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। लेकिन उन्हें संगठन में काम करने का कोई अनुभव नहीं है। न ही उनका इतना राजनीतिक प्रभाव है कि, वे बुंदेलखंड क्षेत्र में बतौर महामंत्री पार्टी के लिए बड़ी ताकत दे पाएं…।
-महू (इंदौर) की कविता पाटीदार की सिर्फ इतनी ही राजनीतिक पहचान है कि, वे पूर्वमंत्री भेरूलाल पाटीदार की सुपुत्री हैं। हालांकि वे इंदौर जिला पंचायत की अध्यक्ष और प्रदेश भाजपा मंत्री रह चुकी हैं…लेकिन उन्हें संगठन में काम करने का लंबा अनुभव नहीं है…ऐसे में सवाल है कि बतौर महामंत्री वे मालवा-निमाड़ में पार्टी की मजबूती के लिए कितनी मुफिद साबित होंगी…?
–भोपाल के भगवानदास सबनानी को महामंत्री बनाए जाने पर इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि, सबनानी दो बार भाजपा छोड़ चुके हैं…विधानसभा चुनाव हार चुके हैं…जब उनका अपने विधानसभा क्षेत्र में ही कोई खास प्रभाव नहीं है, तो ऐसे में वे मध्यभारत में पार्टी के लिए कितनी शक्ति जुटा पाएंगे, यह बड़ा सवाल है।
-विंध्य के शरदेन्दु तिवारी चुरहट से विधायक हैं। उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में अजय सिंह को पराजित किया था…लेकिन उन्हें संगठन में काम करने का कोई अनुभव नहीं है…और रीवा-सतना क्षेत्र में उनका कोई खास प्रभाव भी नहीं है…ऐसे सवाल है कि क्या वे पूरे विंध्य-महाकौशल क्षेत्र में पार्टी को दम दे पाएंगे…।
-करैरा (शिवपुरी) के रणवीर सिंह रावत विधायक और भाजपा किसान मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके हैं…लेकिन मोर्चा अध्यक्ष रहते कोई खास भूमिका नहीं दिखा पाए हैं…न ही ग्वालियर -चंबल संभाग में उनको कोई प्रभाव है…इसके बावजूद उनको प्रदेश महामंत्री क्यों बनाया गया…यह सवाल पूछा जा रहा है…।