रंगों-उमंगों की बारात लेकर आया होली का त्यौहार, गोरी के गाल, गुलाल से होंगे लालम लाल

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नितिनमोहन शर्मा

होली खेलूंगी श्याम संग जाय,
सखी री बड़े भागन से यो फ़ागन आयो..
फ़ागन आयो, फ़ागन आयो, फ़ागन आयो रे सखी
वो भिजवे मेरी सुरंग चुनरियां
में भिजवू वाकी पाग
सखी री भागन से फ़ागन आयो
चोवा, चंदन और अरगजा
रंग की परत फुहार
सखी री भागन से फ़ागन आयो
लाज निगोड़ी, रहे चाहे जावे
मेरे हियरा भरयो अनुराग
सखीरी भागन से फ़ागन आयो
आनंदघन खेलो, सुघड़ बलम सो
मेरो रहियो भाग सुहाग…
सखी री…
बड़े भागन से फ़ागन आयो..!!

कुंवर कन्हाई ही इस पर्व के प्रणेता हैं। ब्रज भूमि ही इस त्यौहार की जन्मदात्री हैं। होरी के रसिया के संग रंगों के संग लाड़ लड़ाने का ये अवसर बड़े भाग्य से आता हैं। तभी तो गुजरिया, ग्वालिनें और बृज वनिताये अपनी अपनी सखी से कह रहीं है कि होली तो में श्याम संग ही खेलूंगी, बड़े भाग्य से ये फ़ागुण आया हैं। आप हम सबके भाग्य से भी ये फ़ागन आया हैं। तो खेलिए रंग अपने अपने बनवारी के संग। परस्पर हिलमिल खेले होली। कोई गाल गुलाल से बच न पाए न कोई देह तरबतर होने से। ऐसे मारो पिचकारी के रंग की जीवन का सारा क्लेश रंगों की बारिश में धूल जाए और घर-आँगन से लेकर मन आँगन तक रंग बिछोना बिछ जाए।

अहिल्या नगरी के आँगन में होली आई रे कन्हाई का शोर गूंज उठा हैं। सब तरफ रंगों की बहार छा गई हैं। नीला, पीला, हरा, ग़ुलाबी और कच्चे पक्के रंगों का संसार सज गया हैं। बस इंतजार है अब इन रंगों का चेहरों पर सजने का। कही गोरी के गाल गुलालन से लालम लाल होंगे तो कही सुंदर चुनरिया पिचकारी की मार से भीजेगी। बाल गोपालो का उत्साह तो देखते ही बन रहा हैं। हाथों में उनके पिचकारी आ गई हैं और मुट्ठी में रंग-पानी से भरे ग़ुब्बारे जमा हो गए हैं। गुब्बारों के संग एक दिन पहले से बच्चो की धमाचौकड़ी शुरू हो गई है और बुराँ न मानो होली के शोर के संग हर आते जाते की पीठ पर छपाक से गुब्बारे पड़ने लगे हैं। बड़े भी पीछे नही हैं। तेयारी उनकी भी पूरी हैं। बस धुलेंडी का इंतजार हैं।

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शहर के सेकड़ो स्थानों पर होलिका भी सज संवरकर तैयार हो गई हैं। डांडा फिर से लहरा गया हैं और उस पर ‘बरगुले’ की मालाएं पहना दी गई हैं। साज श्रंगार तो होलिका माता भी किया गया हैं। किसी ने चुनरी के संग सजाया है तो कोई चँवरी फेरे की सजावट के साथ होलिका दहन की तैयारी में हैं। दिन ढलने के बाद सुहागनों के कदम होलिका की तरफ बढ़ चलेंगे। बनी ठनी सुहागनों के पूजन के बाद होलिका दहन होगा। इस बार मुहूर्त के कारण होलिका दहन आज मध्य रात्रि तक तो होगा ही, 7 मार्च की अलसुबह भी अनेक स्थानों पर होलिका अग्नि को समर्पित की जाएगी। राजबाड़ा की सरकारी होली आज शाम सवा सात बजे के आसपास अपने परम्परागत स्वरूप में प्रज्वलित होगी। महाँकाल राजा के दरबार मे भी आज रात्रि को ही होलिका दहन होगा।

ग़मज़दा परिवारों में बरसेंगे रंग

परम्परा के तहत होली का त्यौहार उन परिवारों के जीवन में फिर से रंग लेकर आता है, जिन्होंने इस बरस अपने किसी सगे को खोया हैं। ऐसे ग़मज़दा परिवारों में समाजबंधु रंग बरसायेंगे। विभिन्न समाज की गैर धुलेंडी के दिन गमी का रंग डालने के निमित्त निकलेगी। इस बार धुलेंडी को लेकर असमंजस होली का त्योहार के जाने के बाद भी बरकरार हैं। लेकिन अधिकांश जगह धुलेंडी 8 मार्च को ही मानी गई हैं।

आज कल, दोनो दिन दहन

आज होली पूजन एवं प्रदोष काल व रात्रि में होलिका दहन करें। आज होली पूजन अपनी कुल परम्परा अनुसार करें। होली पूजन में भद्राकाल नहीं देखा जाता है। आज होली दहन* सायं 6:44 बजे से 7:20 बजे के बीच (प्रदोष काल में) कर सकते हैं। आज सोमवार की रात्रि (तड़के) 5:17:15 बजे से स्थानीय सूर्योदय के पूर्व होली दहन कर सकते हैं।कल 7 मार्च मङ्गलवार को धूलंडी पर्व है। आज भद्रा सायं 4:44 बजे से प्रारम्भ होगी। भद्रा काल का मुख भाग 2 घंटे छोड़कर होलिका दहन किया जा सकता है।होली दण्ड का पूजन कर असृक्पाभय संत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै। अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव।। मन्त्र का उच्चारण करते हुए तीन परिक्रमा*करें और अर्घ्य प्रदान करें। होली दण्ड को शीतल जल से अभिषिक्त कर उसे निकाल दें, फिर होली दहन करना चाहिए।दिनांक 6 मार्च 2023, सोमवार फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी सायं 4:44 बजे तक, पश्चात् पूर्णिमा तिथि।