उनकी फोन की घंटी अब खामोश हो गई !

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-अन्ना दुराई

रोज शाम को फोन की घंटी बजती थी। इधर से पापा यानि कल्याण जैन आशीर्वाद बोलते और उधर से आवाज आती, दादा आप सौ बरस तक ऐसे ही मुझे आशीर्वाद देते रहो। यह आवाज हीरा दादा पाटोदी की होती थी। यहीं से फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू होता। देश और दुनिया की बातें होती। कहानी क़िस्सों का दौर होता। बीच बीच में हंसी और ठहाके की गुंज दोनों ही ओर से सुनाई देती। छोटी मोटी बीमारियों का ईलाज तो घरेलू नूस्खों से फोन पर ही हो जाया करता था। लंबे समय तक चलने वाला यह सिलसिला पापा के जाने से थम गया। सौ बरस न पापा के हुए और अब हीरा दादा भी दुनिया से रूखसत हो गए। दोनों की प्रगाढ़ता के चर्चे पूरे जैन एवं पाटोदी परिवार में होते रहते।

हीरा दादा ने जिस जीवटता से अपना जीवन जिया वो सभी को प्रेरित करता है। एक बार पापा अस्पताल में उपचार के लिए दाखिल हुए। सब आश्चर्य में पड़ गए जब एक शख्स को व्हील चेयर पर आता देखा। वे हीरा दादा थे जो पापा का हालचाल जानने के लिए इस स्थिति में भी अस्पताल आ पहुँचे थे। यहाँ तक कि नहीं पहचान पाने वाले हास्पीटल के स्टाफ ने यह सोचकर तुरत फुरत आयसीयू के गेट खोल दिए थे मानों कोई पेशेंट भर्ती होने आया हो। जब व्हील चेयर पर आए हीरा दादा ने अंदर पहुँच कर ड्यूटी डाक्टर से पापा से मिलने की इच्छा जाहिर की तो सभी चौक गए।

आखिर पापा से मिलकर वे लौटे। ऐसे ही पापा कुछ ठीक हुए तो उन्हें गोपूर चौराहे तक ले जाकर हीरा दादा से भी मिलवाया। दोनों का मिलन भी बेहद रोचक था। वाकई हीरा दादा की जीवन शैली में जीवटता परिलक्षित होती थी। छोटे मोटे दुख तो वे हंसी की फुहारों के बीच उड़ा दिए करते थे। बातचीत में उनका मनमौजीपन वातावरण को हल्का कर देता था। उनकी छोटी छोटी चुटकियाँ बेबाक होती थी। पापा के जाने के बाद भी उनका फोन दो चार दिन में मम्मी के पास आ जाया करता था। फोन की वो घंटी तो खामोश हो गई लेकिन उनका खास अंदाज दोनों ही परिवार को मौके बेमौके गुदगुदाता रहेगा। पूज्य दादा को विनम्र श्रद्धांजलि।