जीवनसंगिनी

Akanksha
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कौन हो तुम
नीले आसमान में
गुलाबी शफ़क़ सी
गुलाब की पंखुरी पर
ठहरे बारिश की बूंद सी
सरगोशी करती
चंचल हवाओं सी
अभी अभी जो
चलना सीखा हैं
उस मासूम बच्चे की
मुस्कान सी
तुलसी वृन्दावन
पर जल रहे दीये सी
झगड़ने के बाद
दो ऊँगली एक दूजे की
छूते अल्हड़ लड़कियों की
पवित्र निगाहों सी
बगीचे में सुबह सुबह
चहल कदमी करते
दादा ,पोती के
झगड़े सी
बिदा ले रही दुल्हन
के आँसुओ सी
भोर में महकते
हरसिंगार सी
रात में
रजनीगंधा सी
मंदिर में हो रही
अर्चना सी
स्वाति नक्षत्र में
वर्षा की पहली बून्द सी
शरद की कुनकुनी
धूप सी
मेरे जिस्म
में चल रही जो सांस हैं
वही हो तुम
वही हो तुम
ईश्वर के
अनमोल
उपहार सी

धैर्यशील येवले, इंदौर.