तमिलनाडु के हाई कोर्ट से एक दिलचस्प सवाल खड़े किये है। दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट की मदुरई पीठ ने एक जनहित याचिका पर केंद्र सरकार और राजनीतिक दलों को एक नोटिस जारी किया है। साथ ही उनसे पूछा है कि 1965 के बाद से तमिलनाडु में आबादी घटने की वजह से 2 लोकसभा सीटें कम कर दी गई थी। अदालत ने कहा है कि राज्य को इसका आर्थिक मुआवजा क्यों न दिया जाए? साथ ही अदालत ने यह बुनियादी बात उठाई है कि तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश ने क्योंकि अपनी आबादी काबू में रखी और बाकी देश के मुकाबले कम की, इसलिए आबादी के अनुपात में लोकसभा की सीटें तय करते हुए इन दो राज्यों में 1967 के चुनाव से सीटें घटा दी गई थी।
हाईकोर्ट ने यह सवाल उठाया है कि किसी राज्य को परिवार नियोजन और आबादी नियंत्रण को कामयाबी से लागू करने की वजह से क्या इस तरह की सजा दी जा सकती है कि लोकसभा में उसकी सीटें कम हो जाए? अदालत ने इस बात को भी याद दिलाया है कि किस तरह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट की वजह से गिर गई थी, तो ऐसे एक सांसद का महत्व कितना होता है यह उस समय सामने आ चुका है। अदालत ने कहा है कि एक सांसद का 5 वर्ष के कार्यकाल में राज्य के लिए 200 करोड़ का योगदान माना जाना चाहिए इस हिसाब से केंद्र सरकार तमिलनाडु को 14 चुनावों में 2-2 सांसद कम होने का मुआवजा 5600 करोड़ रुपए क्यों न दे?
गौरतलब है कि यह मामला काफी दिलचस्प है हालांकि बहुत से लोगों को यह बात याद भी नहीं होगी कि आबादी के अनुपात में लोकसभा क्षेत्र तय करने का मामला इमरजेंसी के दौरान एक संविधान संशोधन करके रोक दिया गया था। क्योंकि उत्तर भारत के बड़े-बड़े राज्य लगातार अपनी आबादी बढ़ाते चल रहे थे, और केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिण भारतीय राज्य अपनी अधिक जागरूकता की वजह से आबादी घटा रहे थे। जिसके नाते उनकी सीटें भी कम होने जा रही थी।
आपको बता दें कि, यह बुनियादी सवाल मदुरई हाई कोर्ट से पहले भी पहले उठाया जा चुका है कि क्या किसी राज्य को उसकी जिम्मेदारी और जागरूकता के लिए सजा दिया जाना जायज है? लोगों को यह ठीक से याद नहीं होगा कि हिंदुस्तान में हर जनगणना के बाद लोकसभा सीटों में फेरबदल की एक नीति थी लेकिन बाद में जब यह पाया गया कि उत्तर और दक्षिण का एक बड़ा विभाजन इन राज्यों की जागरूकता और जिम्मेदारी को लेकर हो रहा है। अधिक जिम्मेदार राज्य को सजा मिल रही है तो फिर आपातकाल के दौरान 1976 में 42 वें संविधान संशोधन से लोकसभा सीटों में घट बढ़ की इस नीति को रोक दिया गया, और इसे 2001 तक न छेडऩा तय किया गया।
वहीं अमरीका में काम कर रहे एक हिंदुस्तानी पत्रकार ने अभी लिखा कि, ‘अमरीकी संसद के उच्च सदन सेनेट (राज्यसभा) में सौ सदस्य होते हैं। अमेरिका में पचास राज्य हैं। हर राज्य से दो सदस्य सेनेट में चुनकर आते हैं। भारत में राज्यसभा सदस्य चुनने के लिए राज्यों के विधायक भी वोट डालते हैं, जबकि अमेरिकी सेनेट के सदस्य हर राज्य की पूरी जनता चुनती है। हर राज्य से दो सेनेटर होने का नियम बहुत ही जबरदस्त है। चार करोड़ की आबादी वाले कैलिफोर्निया के भी दो सेनेटर हैं और पौने छह लाख की आबादी वाले वायोमिंग राज्य के भी दो ही हैं। भारत में ऐसा होता तो राज्यसभा में मणिपुर और यूपी के बराबर सदस्य होते। इस तरह अमेरिकी सेनेट में कोई भी राज्य किसी से ऊपर या नीचे नहीं है।’