यहां है भगवान शिव का 10वां ज्योतिर्लिंग नागेश्वर, ऐसी है यहां की रोचक कथा

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सावन में भगवान शिव जी पूजा अर्चाना की जाती है। हिन्दू मान्यताओं में इसका काफी ज्यादा महत्त्व माना गया है। ये पावन महीना हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। वहीं सावन के महीने में भोले अपने भक्तों से प्रसन्न रहते हैं। वहीं सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना का दिन होता है। ऐसे में श्रद्धालु कई मंदिरों में भोलेनाथ ने दर्शन के लिए जाते हैं। लेकिन अभी कोरोना काल के चलते सभी मंदिरों में दर्शन और पूजा करने की अनुमति नहीं दी गई है। आज हम आपको उनकी मंदिरों में से एक ज्योतिर्लिंग के बारे में बताने जा रहे हैं। आपको बता दे, सावन के चलते यदि आप 12 में से किसी भी एक ज्योतिर्लंग की भी पूजा क्र लेते है तो उसका काफी ज्यादा फल मिलता है। वहीं आज हम आपको 10वें ज्योतिर्लिंग के बारे में बताने जा रहे है जो कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के नए से प्रसिद्ध है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात में द्वारिकापुरी से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की मान्यता काफी ज्यादा मानी जाती है। कई दूर दूर से लोग भगवान के दर्शन और पूजा के लिए आते है। यहां जो भी सच्चे मन से मन्नत लेता है वो जरुरी पूरी होती है। अब आपको बता दे, यहां के ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर कैसे पड़ा। जानकारी के मुताबिक, भगवान शिव को नागों का देव भी कहा जाता है। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को नागेश्वर कहा जाता है जिसका अर्थ होता है नागों का ईश्वर। वहीं बताया जाता है कि सावन के महीने में यहां पर भगवान शिव की विधि- विधान से पूजा-अर्चना करने से लोगों को पापों से मुक्ति मिलती है।

ऐसी मान्यता भी है कि यहां पर भगवान शिव ने प्रसन्न होकर सुप्रिय नाम के एक व्यापारी को दर्शन दिया था। यह व्यापारी भगवान शिव का परम भक्त था। भगवान शिव पर इस व्यापारी की अकाट्य आस्था थी। नगर में चारों ओर यह बात फैल चुकी थी कि व्यापारी शिव का बहुत बड़ा भक्त है, जिस पर कई राक्षसों ने व्यापारी को नुकसान पहुंचाने की बात सोची। उसके बाद एक दिन व्यापारी अपनी नाव से व्यापार के लिए दूसरे स्थान पर जा रहा था, तभी राक्षस ने उसकी नाव पर हमला कर दिया। फिर इसके बाद राक्षस ने व्यापारी और उसके सभी सहयोगियों को बंदी बना लिया। राक्षस व्यापारी को यातनाएं देने लगा। पर व्यापारी चुपचाप यातनाएं सहते हुए भगवान शिव की भक्ति में लीन रहने लगा। इसके बाद व्यापारी के सहयोगी भी शिव की भक्ति करने लगे।

इस बात का पता जब राक्षस को हुआ तो वह उसे बहुत गुस्सा आया। फिर उसके बाद राक्षस कारागार में व्यापारी से मिलने पहुंचा। यहां देखा तो व्यापारी और उसके साथी शिवजी की भक्ति में लीन था। ये सब देखकर उसे और भी गुस्सा आ गया। गुस्से में आने के बाद राक्षस ने सैनिकों को व्यापारी को मार डालने का आदेश दिया। व्यापारी तभी भयभीत नहीं हुआ और शिवजी से अपने साथियों की रक्षा की प्रार्थना करने लगा। फिर जब राक्षस के सैनिकों ने व्यापारी पर तलवार से हमला करने की कोशिश की तो भगवान शिव कारागार में ही जमीन फाड़कर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए। भगवान शिव ने व्यापारी को पाशुपत अस्त्र दिया और कहा कि इससे अपनी रक्षा करना। इस अस्त्र से ही व्यापारी ने राक्षस का वध कर दिया।