सुनो मेरी बिटिया

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तुम छूना चाहती हो
सूरज को , जरूर छुओ
पर अपने पंख
बचाये रखना ।
मेरी हर नसीहत को
राह का रोड़ा समझती हो
नही दूंगा आज से
पर अपना विवेक
हर पल जगाए रखना ।

जो दिखता है खूबसूरत
बाहर से
जरूरी नही भीतर से भी हो
फिसलन पर अपने पैर
मजबूती से रखना
जिसे समझ रहे हो
बोझ संस्कारो का
चाहती हो इनसे मुक्ति
हो जाओ मुक्त
फिर इनकी किसीसे
आस न रखना ।

जाओ जिओ जीवन
उन्मुक्त ,
जैसे जीते है खग ,विहग
अरण्य मे ,
जंगल मे कोई संस्कार
नियम ,कानून नही होते
होता है वहा जाल
बहेलिए का
बस इतनी सी बात याद
रखना ।
बस इतनी सी बात याद
रखना ।

धैर्यशील येवले इंदौर ।

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