नफरत कीजिए, ड्राइवर नाम की इस आधी प्रजाति से, नहीं करेंगे तो इसी तरह बच्चों को खोते जाएंगे

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दिनेश जोशी

नागदा में हुए हादसे में चार मासूम बच्चों की मौत। 3 माह में 15 बस हादसों में 59 मौतें। हर बार ड्राइवर की लापरवाही और आपराधिक गलती ही मौतों की वजह बन रही है। ड्राइवर। एक ऐसा शब्द, जिसे सुनते ही मन में यह धारणा बन जाती है कि..ड्राइवर यानी एक ऐसा शख्स जो खुद जागकर, खुद बिना आराम किए हमें हमारी मंजिल तक पहुंचाता है। लेकिन माफ कीजिए अब वह छवि बदल रही है।

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क्योंकि अब अब बस, ट्रैक, टैंकर, डंपर और कार के आधे से ज्यादा ड्राइवर अंकल अपनी तेज रफ्तार के कहर में मद मस्त हैं। अब वे नशे में धुत्त हैं। अब वे ज्यादा सवारी बैठाने की होड़ और नियम तोड़ने में ही शान समझते हैं।
ड्राइवरों ने खुद को कितना बदल दिया है कि अब वे मासूम बच्चों, बूढ़ी काकी और ऐसी किसी सवारी की जिंदगी से मतलब नहीं रखते। वे बगल की सीट पर बैठे बच्चे मजाकिया लहजे में बात नहीं करते। बल्कि उसे रफ्तार के कहर से डराते हैं।

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पिछले 6 माह में ड्राइवर प्रजाति की ऐसी घोर आपराधिक लापरवाही का नतीजा सैकड़ों मासूमों की मौत के रूप में देख चुके हैं। अब भी नहीं जागे तो अगला नंबर किसी का भी हो सकता है। इसलिए अब भी वक्त है जागिये और रफ्तार के कहर से डरा रहे हर ड्राइवर से नफरत कीजिए। करना ही पड़ेगी। सब मिलकर सख्ती से इनकी शिकायत कीजिए। गाड़ी नंबर नोट कीजिए और पुलिस को दीजिए। और नहीं तो तमाशा देखते रहिए, तब तक जब तक की अपना कोई इनके आतंक का शिकार न हो जाए। और हां अच्छे और सही ड्राइवरो का सम्मान भी कीजिए।