हिंदी पत्रकारिता का संकट -3
अर्जुन राठौर
क्या वास्तव में हिंदी पत्रकारिता को यूट्यूब ने एक नई दिशा दी है इस पूरे मामले का अगर विश्लेषण करें तो पता चलता है कि यूट्यूब के माध्यम से देशभर के पत्रकारों को अपनी बात कहने का मौका मिला है एक जमाना था जब न्यूज़ चैनल के माध्यम से ही समाचारों का प्रसारण होता था लेकिन 4G टेक्नोलॉजी आने के बाद यूट्यूब के माध्यम से देश भर में लाखों ऐसे चैनल खुल गए जिनका संचालन व्यक्ति विशेष ही करते हैं ये खुद ही अपने संपादक हैं, खुद ही रिपोर्टर और खुद ही उसके प्रसारण करता भी है ।
न्यूज़ के साथ-साथ दुनिया भर के विषयों पर यूट्यूब में लाखो चैनल खुल गए जिनके कारण लोगों तक अलग अलग ढंग से सूचनाएं और जानकारी पहुंचने लगी बड़े शहरों से लेकर छोटे गांव और तहसील स्तर तक यूट्यूब के न्यूज़ चैनल खुल गए और इसका नतीजा यह निकला कि स्थानीय लोगों को यूट्यूब के माध्यम से भी खबरें मिलने लगी उनके वीडियो बनने लगे हालत यह है कि बड़े न्यूज़ चैनल से जुड़े हुए पत्रकारों ने जब अपनी नौकरी छोड़ी तो उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल स्थापित कर लिए और आज उनको सुनने वालों की संख्या लाखों में पहुंच चुकी है ।
यूट्यूब के माध्यम से एक बात स्पष्ट हो गई की न्यूज़ अब न तो अखबारों की मोहताज है और ना ही न्यूज़ चैनल की । यूट्यूब ने देश के लाखों लोगों को अपनी अभिव्यक्ति का न केवल मौका दिया बल्कि पैसा कमाने का भी अवसर दे दिया यूट्यूब खुद भी पैसा देता है अगर आपके पास दर्शक वर्ग की संख्या लाखों में है ।
लेकिन इसके साथ ही एक गैर जिम्मेदार पत्रकारिता की भी शुरुआत हो गई जिन लोगों ने अपने यूट्यूब चैनल खोलें उन्हें पत्रकारिता के एथिक्स से कोई लेना-देना नहीं था उन्होंने इसे ब्लैक मेलिंग का माध्यम भी बनाया है यूट्यूब चैनल के माध्यम से लोगों को डराया धमकाया भी जाने लगा हालांकि इस बड़ी कमी के बावजूद यूट्यूब के माध्यम से जो हिंदी पत्रकारिता को एक नया आयाम मिला वह 4G टेक्नोलॉजी की ही देन है इसमें कोई दो मत नहीं है कि हिंदी पत्रकारिता आज बहुत अधिक विस्तार पा चुकी है सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्म उसके विस्तार की वजह बने हैं इसलिए यह मानकर चला जाना चाहिए आने वाले दिनों में यह माध्यम और भी अधिक शक्तिशाली बन जाएंगे ।