यह हैडिंग पढ़कर आपको अजीब लगेगा पर महेश जोशी जी का जाना राजनीति में मित्रता एवं संबंधों को निभाने वाले युग का अंत भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी मुंहफट और फक्कड़ स्वभाव पर अपनों और अपने शहर के हित में सोचने समझने के साथ मदद भी अपनी सीमा से बाहर जाकर करने का जुनून लिए दल से ऊपर उठकर दिल
से काम करने वाला शायद ही कहीं अब देखने को मिलेगा !
जोशी जी के साथ और सामने दोनों तरह से काम करने का अवसर मुझे मिला छात्र राजनीति में कई बार जोशी जी के छात्र समूह के साथ और आमने-सामने चुनाव मैं कई किशोर के साथ आपातकाल में हमारा मीसा में बंद होना जेल से छूटकर महेंद्र हार्डिया और हमारा सार्वजनिक जीवन में काम करना आज तक आमने सामने की प्रतिद्वंदिता के साथ रिश्तो की मधुरता के कई संस्मरण आंखों के
सामने हैं !
1990 का विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 3 का चुनाव कांग्रेस की ओर से महेश भाई प्रत्याशी भाजपा की ओर से कॉलेज से निकले छात्र नेता के रूप में मैं उम्मीदवार था जनता की नजर में प्रदेश के शक्तिशाली कांग्रेस नेता जिन्होंने गत चुनावों में भाजपा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय धारकर जी एवं सुमित्रा महाजन को परास्त किया उनके सामने एक नए लड़के की उम्मीदवारी शेर के सामने बकरी के रूप में थी पर देवयोग व जन इच्छा ने मुझे चुनाव मैं विजय किया
चुनाव जीतने के बाद मैं महेश भाई से मिलने उनके घर गया उन्होंने कहा भोपाल आओ तो मेरे बंगले पर आना पहली बार भोपाल जाने पर मैं उनके बंगले गया वहां उनके मित्रों शुभचिंतकों की भीड़ लगी थी उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे पकड़ा और उपस्थित एक एक व्यक्ति से मेरा परिचय यह कह कर कराया की यह गोपी है इसने मुझे हराया है और जोर जोर से हंसते थे उनके इस व्यवहार से मुझे अटपटा लगने लगा फिर मेरे साथ के सभी लोगों को खाना खिलाया और कहां जब तक रहने की व्यवस्था नहीं हो तो यहां एक कमरे पर ताला लगा ले यही रहना यह उदारता और चुनाव को खेल की भावना मे लेकर जीने का अंदाज अब देखने को शायद ही मिले !
2004 में मेरी बेटी की शादी में सबसे पहले आना और सब के बाद में जाने वाला कोई व्यक्ति था तो वह महेश जोशी थे कुर्सियों का घेरा बनाकर वहां बैठ गए हर आने जाने वाले से बात कर खाने का पूछना उनके साथ वाले बोले चलो महेश भाई बहुत टाइम हो गया तो उन्होंने जवाब दिया गोपी के यहां पहली लड़की की शादी है कोई काम होगा तो ? मैं तो विदाई तक रुकूंगा तुम को जाना है तो जाओ संबंधों को निभाने का या अंदाज अब कहां❓
महेश भाई लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे मैं उनके खिलाफ जगह-जगह भाषण देता था कभी मिल जाते तो कहते वह वाला किस्सा भी सुना दो 1000 – 500 वोट तुम्हारे और बढ़ जाएंगे उन्हीं चुनाव के दिनों में वह मिल जाते तो मैं उनसे कहता महेश भाई भूख बहुत लग रही है तो स्वयं की जेब से 100 500 रुपए मुझे देते कुछ खा पी ले बीमार पड़ जाएगा यह फिक्र रखने वाले अब राजनीति में मिल पाएंगे क्या❓
इस तरह मेरे साथ महेश भाई के कई संस्मरण है मेरी गलती या गलत बयानी पर सुबह सुबह फोन पर डांटने का हक भी उनको रहता था डांटने में उन्होंने मुझे कभी विधायक या भाजपा नेता नहीं माना एक भाई की तरह कहा लंबे समय काम करना है प्रतिद्वंदिता रखो पर व्यक्तिगत प्रतिशोधआत्मक मत बनो यह सीख कौन विरोधी दल के लोगों को अब देगा❓
इसलिए मैंने ऊपर लिखा राजनीतिक विचारों के विरोध के बाद अपनेपन से संबंध निभाने के एक युग का अंत महेश भाई के साथ हुआ है जो आने वाले समय में शायद ही देखने को नसीब हो
हम परमपिता से प्रार्थना करते हैं की महेश भाई की आत्मा को अपने चरणों में स्थान प्रदान करें और हम जैसे स्नेही जनों में उनके गुण ग्रहण करने की सद्बुद्धि प्रदान करें ओम शांति शांति शांति………….. गोपीकृष्ण नेमा पूर्व विधायक