सामाजिक समरसता, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परंपरा के साथ संस्था सार्थक द्वारा मनाया जाएगा गुड़ी पड़वा

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बड़ा गणपति चौराहे पर होगा नववर्ष का भव्य आयोजन

शंख ध्वनि एवं स्वस्ति-वाचन के साथ सूर्यदेव को दिया जाएगा अर्घ्य 

संतों के सानिध्य में होगा समारोह

आयोजन में प्रसिद्ध नृत्यांगना दमयंती जी द्वारा अवध के राम, गाथा रघुनंदन की, राम स्तुति, काली स्तवन, शिव ध्रुपद, पर विशेष प्रस्तुति भी होगी

इंदौर. 07 अप्रैल 2024। परंपराओं के प्रति प्रतिबद्धता मां अहिल्या की नगरी की पुरातन परिभाषा है। इस परिभाषा को नया अर्थ दे रही है संस्था सार्थक। पारंपरिक लोक नृत्य, वैदिक मंत्रोच्चार एवं शंख ध्वनि के साथ गुड़ी पड़वा के स्वागत की यह अनूठी पहल साकार होगी मंगलवार, 09 अप्रैल को। भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य के साथ प्रातः 6:15 बजे संस्था सार्थक एवं हिंदू नववर्ष आयोजन समिति के तत्वाधान में बड़ा गणपति चौराहे पर, नववर्ष गुड़ीपड़वा का आयोजन नव्य-भव्य आयोजन किया जाएगा।

आयोजक और भाजपा प्रदेश के सह मीडिया प्रभारी व पूर्व पार्षद दीपक जैन “टीनू” ने बताया कि इंदौर संस्कार और सरोकार की धरती है। यहां धार्मिक परंपराओं के साथ सांस्कृतिक प्रतिबद्धता का सम्मान भी सर्वोपरि रहा है। इसी क्रम में हिंदू नववर्ष अभिनंदन का यह 7वां विनम्र प्रयास है। सामूहिक सूर्य अर्घ्य, पारंपरिक लोकगीत एवं लोकनृत्य को भी इसलिए प्रमुखता से आयोजन में शामिल किया जाता है, ताकि नई पीढ़ी को शास्त्रीय एवं पौराणिक परंपराओं से संस्कारित किया जा सके।

आयोजन का एक और विशेष आकर्षण होगा, पद्मश्री डॉ. पुरू दाधीच जी एवं डॉ. सुचित्रा हरमलकर जी की शिष्या प्रसिद्ध नृत्यांगना दमयंती जी भाटिया मिरदवाल की कथक एवं लोक नृत्य प्रस्तुति। वे अपने साथी कलाकारों के सहयोग से अवध के राम, गाथा रघुनंदन की, राम स्तुति, कृष्णायन, काली स्तवन, शिव ध्रुपद, राम स्तुति एवं सूर्य आराधना पर विशेष प्रस्तुतियां देंगी।

इस अवसर पर बटुकों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार व शंख ध्वनि के साथ पवित्र नदियों के जल से सूर्यदेव को अर्घ्य भी दिया जाएगा। आयोजकों ने बताया कि सौरमंडल में सूर्य को निडर और निर्भीक ग्रह माना गया है। इस आधार पर सूर्य को अर्घ्य देने वाले व्यक्ति को भी ये विशेष गुण स्वाभाविक रूप से प्राप्त होते हैं। धार्मिक मान्यतानुसार भी, नववर्ष पर सुबह उठकर सूर्य देवता के दर्शन करने एवं जल अर्पित करने से व्यक्ति की आत्मा और मन को अक्षय ऊर्जा मिलती है। यदि यह प्रक्रिया नियमित रूप से की जाए तो भी मनुष्य का सौभाग्य बना रहता है। न सिर्फ धार्मिक, बल्कि ज्योतिष और विज्ञान में भी इस क्रम को पुण्य और प्रारब्ध प्रबल करने वाला माना गया है।