भारत सरकार द्वारा लाये गये कृषि सुधार बिल से उपजे किसान आन्दोलन को चलते पोने दो माह होगये किसान बिल वापसी की मांग को लेकर दिल्ली बार्डर की सड़को पर कड़कड़ाती ठंड मे जमे हुवे है। सरकर भी बिल वापस नही लेने की जीद पर अड़ी है । किसान बिल के नुकसान गिना रहे हैं तो सरकार फायदे। बामुश्किल शुरु हुई चर्चा के भी कई दौर हो चुके है किन्तु नतीजा कुछ नही निकला।लम्बे समय तक चले किसान आन्दोलन से दिल्ली ही नही वरन् समूचा देश प्रभावित एवं चिन्तित है। सरकार बिल में संसोधन के लिये तैयार है लेकिन किसान बिल वापसी की मांग मनवाना चाहते हैं। सरकार ने भी किसानो की मांग मंजूर नही करना अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। प्रश्न यह नही है कि किसानो की मांग वाजिब है या नहीं लेकिन जिस वर्ग के हित में बिल लाया गया है वह वर्ग ही बिल से चिन्तित हैं तो उनकी चिन्ताओ का समाधान भी जरुरी है। आगे चर्चा की तारिखे भी तय की जारही है। पहले भी सरकारे बिल लाती व लागू करती रही है अनुपयोगी होने पर रद्द भी करती रही है।. वर्तमान सरकार संसद के सदनो में पूरण बहुमत में है वह जब चाहे तब जो चाहे बिल ला व पास करा सकती है। किसान यदि आन्दोलनरत है और चर्चा करने को भी तैयार है तो सरकार को भी कृषि सुधार बिल ततकाल स्थगित करने की घोषणा कर आन्दोलन समाप्त करवाने की पहल करना चाहिए फिर किसान संगठनो के प्रतिनिधियों, कृषि एवं व्यापार विशेषज्ञों के साथ तसल्ली से बैठके कर निर्णय करना चाहिए। सरकार और किसानो की सहमति से बिल मे वांछित संसोधनों के साथ बिल को लागू करना अथवा रद्द करना चाहिये। फिर सरकार चाहे तो जस का तस बिल भी लागू करने में सक्षम समर्थ तो है ही। प्राकृतिक न्याय के इस सिद्धान्त को कि विचारण के दौरान व अंतिम निर्णय होने तक क्रियान्वन को स्थगित किया जाना सभी पक्षो के द्वारा मान्य किया जाना चाहिए ।सरकर बिल का क्रियान्वन व किसान आन्दोलन तत्काल स्थगित करे।
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