बाढ़ पीड़ितों को मकान बनाने के लिए ढाई लाख रुपए दे सरकार: दिग्विजय सिंह

Akanksha
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भोपाल। मध्यप्रदेश में इस बार मोनसून तबाही लेकर आया था प्रदेश के कई जिले भारी बारिश से बुरी तरह प्रभावित हुए है। इसी कड़ी में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह बीते दिनों एमपी के गवालियर-चम्बल संभाग में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने बाढ़ की वजह से होने वाली हानि को बड़े नज़दीक से देखा। श्योपुर, शिवपुरी, ग्वालियर, भिंड व दतिया जिलों में 4 दिवसीय दौरे के बाद दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा।

इस पत्र में उन्होंने कहा कि प्रदेश के ग्वालियर और चंबल संभाग के जिलों में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के दौरे के दौरान स्थानीय लोगों ने बताया कि विगत सौ वर्षों में उन्होंने बाढ़ की ऐसी विभिषिका नहीं देखी। जहाँ तक नजर जाती है उजड़े गांव और बदहाल लोग नजर आते हैं। अनेक गांव, कस्बे, टोले-मंजरे सहित हजारों परिवार पूरी तरह से बर्बाद हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि तबाह हुए इन गांवों में राहत राशि तो दूर अभी तक प्रभावितों का सर्वे लगभग दस दिनों तक नहीं हो पाया था। सिंह ने कहा कि पीडि़तजनों से मुलाकात के बाद शासन और प्रशासन द्वारा की गई लापरवाही और अकर्मण्यता साफ नजर आ रही है, जबकि प्रशासन को युद्ध स्तर पर राहत और पुनर्वास के काम प्रारंभ करना चाहिए था जो विपदा के 10 दिन बाद तक शुरू नहीं हो सके थे।

पूर्व मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री को बताया कि चंबल संभाग के श्योपुर और भिण्ड जिलों के अनेक गांवों में आई बाढ़ से सब कुछ खत्म होने जैसे हालात है और ग्वालियर संभाग में ग्वालियर, दतिया और शिवपुरी में भी असीमित जन-धन की हानि हुई है। उन्होंने कहा कि वे श्योपुर जिले के दौरे पर 12 अगस्त को पहुंचे तब तक पीडि़तों का सर्वे प्रारंभ नहीं हुआ था बल्कि उन्हें ऐसा लगा कि जैसे सर्वे और राहत पहुँचाने का काम प्रशासन की प्राथमिकता में ही नहीं है जबकि मध्यप्रदेश शासन, राजस्व विभाग द्वारा 1 मार्च 2018 को जारी परिपत्र में ’’RBC 6.4’’ में प्रावधान है कि प्राकृतिक प्रकोप से पीडि़त लोगों के लिये तत्काल अस्थायी राहत कैंप प्रारंभ किये जाने चाहिए, जिनमें शासन की ओर से उन्हे दोनों वक्त का खाना और रहने की व्यवस्था की जानी थी और राहत राशि तत्काल देने का प्रावधान है। विडंबना यह है कि महिलाएँ, बच्चे और वृद्धजन भूखे भटकते रहे पर जिला प्रशासन ने राहत केम्प नहीं चलाये।

पूर्व मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री को आगे बताया कि पड़ोसी राज्य राजस्थान के बाराँ और सवाई माधोपुर जिले के समाज सेवियों ने काबिल ए तारीफ काम करते हुए। अपने राज्य की सीमा से लगे मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में पहुँचकर स्थानीय समाज सेवियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया और बाढ़ पीडि़तों को रहने, ठहरने और खाने के लंगर चलाये। विभिन्न संस्थाएँ यदि पीडि़त मानवता की सेवा करने आगे नहीं आती तो लोग भूख से मर जाते। विगत एक शताब्दी की इस भीषणतम बाढ़ में लोगों के घर में रखा खाने का अनाज बह गया। पहनने, ओढ़ने, बिछाने तक के कपड़े व घर गृहस्थी का सामान तक नहीं बचा।

दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री से बाढ़ और अतिवृष्टि से ग्रामीण जनों को हो रही समस्याओं का उल्लेख करते हुए कहा कि ग्रामवासियों द्वारा रबी की फसल में मेहनत मजदूरी कर सालभर के लिये एकत्र किया गया अनाज बह गया, वहीं दूसरी तरफ लगभग हर परिवार से पालतू मवेशी गाय, भैंस, बैल, बकरी, मुर्गा-मुर्गी बह गये। मवेशियों के खाने का भूसा बह गया और जो बहने से बच गया वो सड़ गया। उन गांवों में भूसे की तत्काल व्यवस्था की जाये। संकट में फंसे लोगों से आपदा राहत में लगे शासकीय कर्मचारी, पशुओं की पोस्टमार्टम रिर्पोट मांगकर पीडि़तों को परेशान कर रहे है। सिंह ने इस संबंध में मुख्यमंत्री को सुझाव देते हुए कहा है कि किसानों को शपथ पत्र के साथ ग्राम पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर पशुपालकों को तत्काल मुआवजा दिया जाना चाहिये।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि ग्वालियर, चंबल संभाग में हजारों परिवारों के मकान पूर्ण रूप से ध्वस्त हो चुके हैं। ऐसे समस्त गांवों को नये सिरे से काॅलोनी बनाकर बसाया जाये और उन्हे मकान बनाने के लिये एक लाख बीस हजार रूपए के स्थान पर ढाई लाख रूपये प्रति परिवार मकान बनाने के लिये दिए जाएं। साथ ही जिन परिवारों में बालिग सदस्य हैं उन्हे पृथक परिवार मानते हुए प्लाट और मकान के लिये ढाई लाख रूपये दिये जाएं।

सिंह ने कहा कि दोनों संभागों के पांचों जिलों के भ्रमण के दौरान प्रशासन की असंवेदनशीलता स्पष्ट तौर से नजर आई। उन्होंने कहा कि आश्चर्य है कि आदिवासी वर्ग की सहरिया जाति बाहुल्य वाले श्योपुर और शिवपुरी जिले का प्रशासन बिना तहसीलदारों के कैसे चल रहा था? इतनी बड़ी विभिषिका के बाद ताबड़तोड़ तबादले कर तहसीलदार, नायब तहसीलदार तैनात किये गये। इस घटना से पता चलता है कि विशेष पिछड़ी सहरिया जनजाति के प्रति सरकार कितनी संवेदनशील है। कई गांवों में बाढ़ पीडि़तों ने पटवारियों और ग्राम पंचायत सचिवों द्वारा किये जा रहे पक्षपातपूर्ण कार्यवाही की भी जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि वे अपने पत्र के साथ इन जिलों से प्राप्त उल्लेखनीय जानकारी संलग्न कर मुख्यमंत्री को प्रेषित कर रहे हैं।

दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री से अनुरोध करते हुए कहा है कि बाढ़ की तबाही का प्रभाव सामान्य जनजीवन पर सब ओर पड़ा है। ऐसी स्थिति में घर-परिवार की क्षति के आंकलन के लिये राजस्व विभाग, फसलों के बर्बाद होने के लिये कृषि विभाग, पशुओं के खत्म होने या बह जाने के लिये पशु चिकित्सा विभाग सहित अन्य संबंधित विभागों के संयुक्त दल गठित कर युद्धस्तर पर राहत राशि वितरण की कार्यवाही की जानी चाहिये। सर्वे में विलंब करने और राहत केम्प समय पर प्रारंभ नहीं करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों पर भी कार्यवाही की जानी चाहिये।

सिंह ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के भ्रमण के दौरान सामने आए एक महत्वपूर्ण बिन्दु को इंगित करते हुए मुख्यमंत्री को लिखा कि मड़ीखेड़ा डेम के सभी 12 गेट एक साथ खोल दिये गये। जिससे अचानक डेम के नीचे बसे गांवों में पानी घुस गया और सब कुछ बहा ले गया और अपने पीछे हजारों परिवारों को सदा के लिये बर्बाद कर गया। उन्होंने आगे कहा कि उनका मानना है कि शासन स्तर पर बैठे जल संसाधन के अधिकारियों से लेकर जिला स्तर तक के अधिकारियों पर इस लापरवाही जन्य आपदा के लिये जिम्मेदारी तय कर कार्यवाही की जानी चाहिए। सिंह ने कहा कि बाढ़ और घनघोर बारिश की वजह से बिजली के तार, खम्बे टूटने और डीपी नष्ट होने से बिजली की समस्या सामने आ रही है। युद्ध स्तर पर बिजली आपूर्ति सुनिश्चित कराने के लिये कदम उठाने चाहिये।

सिंह तेज बारिश की वजह से आई बाढ़ के कारण पांच जिलों में स्थित करोड़ों की लागत से बने 6 बड़े पुल टूट जाने का ज़िक्र करते हुए मुख्यमंत्री से कहा है कि दतिया में रतनगढ़ के पास बना पुल तो 7 साल पुराना ही था, ऐसे गुणवत्ता विहीन पुलों के निर्माण की उच्चस्तरीय जांच कराई जाना चाहिए और दोषी अभियंताओं के विरूद्ध सख्त कार्यवाही करना चाहिए पुलों के साथ इन जिलों के अनेक राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य मार्ग और अन्य सड़कें बह गई। इन सड़कों के निर्माण में हुए भ्रष्टाचार की विशेष जांच दल गठित कर जांच कराई जानी चाहिए।

इसके साथ ही सिंह ने बाढ़ की वजह से जनता को आ रही एक और समस्या को बताते हुए कहा कि तेज़ और लगातार बारिश और बाढ़ से लोगों के घरों में पानी भर गया जिससे लोगों के आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, मनरेगा का जाॅब कार्ड, जमीन की बही, रजिस्ट्री की कापी आदि महत्वपूर्ण दस्तावेज पानी में बह गए या खराब हो गये। इसीलिए सभी प्रभावित ग्रामों में विशेष शिविर लगाकर अति आवश्यक दस्तावेज पुनः तैयार करवाकर पीडि़त परिवारों को सौंपे जाये।

सिंह ने मुख्यमंत्री को बताया कि उनके दोनों संभागों के दौरे के दौरान उन्होंने हजारों बाढ़ पीडि़तों से मुलाकात की उनके दुखदर्द को जाना। बाढ़ से ऊपजे हृदयविदारक हालातों को देखते हुए इस विभिषिका को केन्द्र सरकार से राष्ट्रीय आपदा घोषित किये जाने के प्रयास करने चाहिये और केन्द्र सरकार को भी इस राष्ट्रीय आपदा में भरपूर मदद देनी चाहिये। उन्होंने कहा कि लोगों को राहत दिये जाने और पुनर्वास किये जाने के लिये यदि राजस्व पुस्तक परिपत्र की नीति 6-4 में भी बदलाव करना पड़े तो नियमों को संशोधित कर हर पीडि़त परिवार के आंसू पौछें जाने चाहिये।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से कहा कि सैकड़ों गांवों में सब कुछ तबाह होने से प्रभावितों के जख्म बहुत गहरे हैं। राहत व पुनर्वास का काम पूरी ईमानदारी व ’समयसीमा’ में तय करते हुए राज्यशासन संवेदनशीलता का परिचय दे।