‘हमें भारत में शरण दो या मार दो’, बांग्लादेश विरोध के बीच बंगाल सीमा पर गहराया शरणार्थी संकट

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उत्तर दिनाजपुर जिले, पश्चिम बंगाल में हालात चिंताजनक हो गए हैं। बांग्लादेशी शरणार्थी एक बार फिर सुर्खियों में हैं, जिन्होंने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) से बेहद सख्त अपील की है। इन शरणार्थियों ने कहा है, “या तो हमें भारत में शरण दी जाए, या यहीं हमें मार दिया जाए। यदि हम वापस गए, तो बांग्लादेश में भी हमें मार दिया जाएगा।”

‘बांग्लादेश में राजनीतिक अशांति और शरणार्थी संकट’

शरणार्थियों की यह स्थिति बांग्लादेश में जारी राजनीतिक उथल-पुथल का सीधा परिणाम है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा दे दिया और ढाका से भाग गईं। हसीना का इस्तीफा उस गंभीर संकट के बीच आया है जो छात्रों द्वारा सरकारी क्षेत्र में नौकरी के कोटे में सुधार की मांग को लेकर शुरू हुआ था। इस आंदोलन ने बांग्लादेश में व्यापक विरोध और अशांति को जन्म दिया है।

हसीना के इस्तीफे के बाद, देश में कई जगहों पर खुशी की लहर देखी गई, लेकिन इसके साथ ही अल्पसंख्यकों और अवामी लीग के सदस्यों के खिलाफ लक्षित हिंसा की घटनाएं भी बढ़ गई हैं। बांग्लादेश में बढ़ती अशांति और विरोध प्रदर्शनों के कारण, सीमावर्ती क्षेत्रों में शरणार्थियों की संख्या में भी नाटकीय वृद्धि हुई है।

‘नागरिक सुरक्षा की गुहार’

उत्तरबंग संवाद के अनुसार, उत्तर दिनाजपुर की सीमा पर स्थित नो-मैन्स लैंड पर सैकड़ों शरणार्थी इकट्ठा हो गए हैं। ये शरणार्थी, जिनमें बुजुर्ग और बच्चे भी शामिल हैं, बांग्लादेश से नागर नदी को तैरकर पहुंचे हैं, ताकि भारत में सुरक्षा प्राप्त कर सकें।

बीएसएफ ने शरणार्थियों को शरण देने से इंकार कर दिया है और उन्हें वापस लौटने के निर्देश दिए हैं। रिपोर्टों के मुताबिक, 500 से अधिक शरणार्थी एक ही मांग के साथ नो-मैन्स लैंड पर खड़े हैं—”भारत से शरण।” भारत की कूटनीतिक रणनीतियों की जटिलताओं और बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को शरण देने के प्रयासों के बीच, बीएसएफ शरणार्थियों को कड़े तरीकों से निपट रही है।

‘सुरक्षा चिंताएं…’

इस संकट ने भारत और बांग्लादेश की सीमा पर सुरक्षा और मानवीय स्थिति को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। बांग्लादेश के अंदर चल रहे राजनीतिक संकट के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में शरणार्थियों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, जिससे दोनों देशों के बीच रिश्तों और सुरक्षा प्रबंधन पर गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं।

समाज और राजनीति के इस परिवर्तनशील परिदृश्य में, बांग्लादेशी शरणार्थियों की समस्याओं का समाधान ढूंढना भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए एक चुनौतीपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा बन गया है।