गज़ल

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मेरा जिस्म जैसे कब्रिस्तान हो गया
नश्वर शरीर मे अमर आत्मा लिए हूँ

सांसे ही भारी लगने लगी है अब तो
फिर भी रिश्तों का बोझ लिए लिए हूँ

किसी से मिलने को जी नही करता
मैं हर किसी के कदम चुम लिए हूँ

तेरे लिए जान दे देंगे वो कहा करते
वो सिर्फ बातें ही थी परख लिए हूँ

अपनी परेशानी को खुद कंधा देना है
वक़्त और तजुर्बे से मैं सिख लिए हूँ

दर्द बताएगा तो लोग तुझ पर हँसेंगे
इसीलिए मैं होठों पर मुस्कान लिए हूँ

धैर्यशील येवले इंदौर ।