अर्जुन राठौर
बात उन दिनों की है जब इंदौर से दैनिक भास्कर का प्रकाशन प्रारंभ हुआ था, संपादकीय विभाग में नए नए साथियों की टीम बनी थी, सिटी रिपोर्टर के रूप में मैंने भी अपना कार्य दैनिक भास्कर में प्रारंभ किया और मेरे पास की टेबल पर खेल का कवरेज करने वाली टीम बैठती थी, इस टीम के इंचार्ज थे अशोक कुमट और उनके सहयोगी के रुप में सीमांत सुवीर काम करते थे, नया अखबार था और सभी साथियों में नया जोश भी था खेल के पेज पर सीमांत के कवरेज अक्सर छपते थे और देखते ही देखते सीमांत ने खेल पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना एक अलग ही स्थान बना लिया ।
सीमांत सुबीर की सबसे बड़ी विशेषता यह देखी कि वे काम के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहते थे भास्कर का खेल पेज उन दिनों लगातार लोकप्रिय होता जा रहा था सीमांत सुबीर से जब भी बात करने का मौका मिलता तो काम के प्रति उनका जोश देखते ही बनता था, उनका सीधा सीधा मुकाबला नई दुनिया के खेल पेज से था कुछ ही सालों में सीमांत ने हिंदी पत्रकारिता में अपनी एक अलग जगह बना ली यही वजह है कि बाद में वे वेबदुनिया से जुड़ गए और आखिरी समय तक वेब दुनिया के साथ ही उनका रिश्ता रहा सीमांत से मेरी पिछली मुलाकात इंदौर प्रेस क्लब के चुनाव के दौरान हुई थी तब वे अच्छे खासे स्वस्थ नजर आ रहे थे कोई गंभीर बीमारी का लक्षण उनमें दिखाई नहीं दे रहा था वे बड़े उत्साह से सभी पुराने साथियों से मिल रहे थे लेकिन आज जब यह दुखद समाचार सामने आया तो पता चलता है कि सीमांत अपने पुराने दोस्तों को किस शिद्दत से याद किया करते थे । वेबदुनिया में कार्यरत होने के बाद उनसे अक्सर फोन पर बातें होती थी जब भी वे बड़े उत्साह से अपने काम के बारे में बात किया करते थे । सीमांत सुधीर के जाने की यह उम्र नहीं थी लेकिन पता नहीं कैसे यह दुखद स्थिति बन गई ।