शहर के सुगम ट्रैफिक के लिए हमें कस्बाई मानसिकता से बाहर आकर एक शहरी नागरिक की तरह सोचना होगा – अनिल कुमार पाटीदार एडिशनल डीसीपी ट्रैफिक इंदौर

Suruchi
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इंदौर। हमें अपनी कस्बाई मानसिकता से बाहर निकलकर एक शहर की तरह सोचना होगा। इंदौर के बेहतर ट्रेफिक के लिए हमें एक शहरी नागरिक की तरह सोचना पड़ेगा, दुकान के सामने बोर्ड रखना और बाइक कार पार्क करना कस्बों में होता है, शहरों में नही, हमें इससे बाहर आना होगा। यह बात अनिल कुमार पाटीदार एडिशनल डीसीपी इंदौर ने कही।

वह शहर के ट्रैफिक विभाग में एडिशनल डीसीपी के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे है। इसी के साथ उन्होंने कहा कि ट्रैफिक नियमों का पालन करना सभी के लिए लाभदायक है, आप नियमों का पालन ट्रेफिक पुलिस, कोर्ट के लिए मत कीजिए, अपने परिवार और अपनों के लिए कीजिए। जिस दिन दुर्घटना होगी इस क्षति की भरपाई आप नहीं कर पाएंगे। अगर इंदौर की बात की जाए तो पिछले साल ग्रामीण, शहरी क्षेत्र मिलाकर लगभग 459 लोगों की जान चली गई, वहीं कई लोग अपाहिज हो गए।

लालटेन में पढ़ाई की, आर्थिक स्थिति कमजोर होने से पिताजी बिजली कनेक्शन नहीं ले पाए थे

उन्होंने बताया कि में कुक्षी के ग्रामपुरा गांव से हूं, जहां आज भी सड़क नहीं बनी है। गांव के सरकारी स्कूलों में अपनी शिक्षा पूरी की, स्कूल अक्सर पैदल जाया करते थे। जब में एक साल का था तब पिताजी ने नौकरी छोड़ दी थी, घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से बिजली कनेक्शन भी नही ले पाए थे, पढ़ाई तो लालटेन जलाकर करता था। स्कूल के बाद बीएससी मैथ्स में ग्रेजुएशन की पढ़ाई बड़वानी से पूरी की, फिर एमएससी करने के लिए खरगोन चला गया। एमएससी करने के बाद वापस गांव आ गया, पिताजी काफी एक्टिव थे, उन्होंने कहा कि आप गांव से निकल जाओ कुछ बेहतर करो, और हमने भी यही देखा था कि गांव में एक पुलिस कांस्टेबल की काफी इज्जत होती थी। इसके बाद पिताजी ने सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए 1993 में इंदौर विद्या नगर भेज दिया।

जिस टीचर ने पढ़ाया वो पीएससी में फेल हो गए, और में पास हो गया।

इंदौर आने के बाद पीएससी करने वाले रूम के पड़ोसी से परिचित हुआ, जब मिला तो पता चला की हिस्ट्री तो हमें कुछ आता ही नहीं, बिल्कुल जीरो हैं। हिस्ट्री के लिए क्लास ज्वाइन कर पीएससी प्री क्लियर कर लिया। जिस टीचर ने हमें पढ़ाया वो फेल हो गए, और हम पास हो गए। तीसरी बार में इंटरव्यू क्लियर कर डीएसपी के पद पर चयन हुआ। सागर में एक साल ट्रेनिंग के बाद 1998 में होशंगाबाद पोस्टिंग हुई, ज्वाइनिंग से पहले भिंड ट्रांसफर हो गया। उस समय उस क्षेत्र के रमेश कुशवाह नामक डकैत ने 15 लोगों का अपहरण कर लिया था। वहां डाकुओं की समस्या खत्म करने के लिए पदस्थ रहे।

नौकरी को दृढ़ संकल्प के साथ करने के लिए गुस्सैल मिजाज होंने की जरूरत नहीं है।

शहर और ग्रामीण क्षेत्रों की परिस्थिति और चुनौतियां भिन्न होती है। पुलिस विभाग में सभी क्षेत्रों का नॉलेज होना चाहिए, अपनी नौकरी को दृढ़ संकल्प के साथ करने के लिए गुस्सैल मिजाज होंने की जरूरत नहीं है। आप अपना काम कीजिए, हर किसी को पुलिस से अपेक्षाएं होती है। मैने कई क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दी, भिंड के बाद सागर में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर पोस्टिंग हुई। इसके बाद एसडीओपी पद पर एमपी के सैलाना, तराना, सेंधवा, सीतामऊ, सांवेर में अपनी सेवाएं दी। एडिशनल एसपी के रूप में प्रमोशन के बाद उज्जैन, आगर, देवास में पदस्थ रहा। वहीं इंदौर में पुलिस के अन्य विभागों में सेवाएं देने के बाद पिछले कुछ सालों से ट्रैफिक विभाग में एडिशनल डीसीपी के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे है।