मुक्ति का अनुष्ठान
मुक्ति का बंधन हो गया
जिससे कभी न है अलग
जुड़ने को बेचैन हो गया ।
स्वप्न से जागते ही
काया का भान हो गया
जो कभी खोया नही
खोजने में परेशान हो गया ।
क्या भर रहा है अपने भीतर
सोचता है बुद्धिमान हो गया
पाखंड से आती है जड़ता
चैतन्य गतिमान हो गया ।
कुछ मत कर देख भर
कैसे मन खाली हो रहा
जैसे ही रीता होगा देह घट
समझो साक्षत्कार हो गया ।
धैर्यशील येवले इंदौर