कभी राहत साहब ने कहा था-लवें दीयों की हवा में उछालते रहना…गुलों के रंग पे तेज़ाब डालते रहना। मैं नूर बनके ज़माने में फैल जाऊँगा…तुम आफ़ताब में कीड़े निकालते रहना। अब किसने कितने कीड़े निकाले, नहीं पता, लेकिन राहत इंदौरी ज़रूर नूर बन के जमाने में फैल गए हैं और हर उस जमाने में सुनाई दे रहे हैं जहां शेर समझे जाते हैं,हिंदी-उर्दू बोली जाती है।
सिलसिला आज का नहीं है, जिस बरस को हम ख़त्म करने जा रहे हैं, बस यहीं उनकी शायरी के 50 बरस हो रहे हैं, यानी पचास साल पहले उन्होंने इंदौर की बज़्म-ए- अदब लाइब्रेरी में नशिस्त पढ़ी थी और अपने शायराना सफ़र की शुरुआत की थी। ‘सिलसिला यारी का’,’अदबी-कुनबा’ और ‘निनाद’ उनकी ‘गोल्डन-जुबली’ बनाने जा रहा है। उम्र की नहीं है, ग़ज़ल की है, शेर की है और वैसे भी शायर कितने बरस का है, इसकी कोई हैसियत नहीं है, उसकी शायरी की उम्र क्या है, बस यही असल है।
पचास साल से सिर्फ पढ़ नही रहे हैं, मुशायरे के डायस पर हुक़ूमत कर रहे है और अल्लाह से दुआ है सिलसिला यूँ ही चलता रहे। राहत साहब के एजाज़ या सम्मान में 4 दिसंबर 19 को इंदौर के अभय प्रशाल में जलसा है, जिसको ‘जश्न -ए-राहत’ या ‘शब-ए-राहत’ नाम दिया गया है।’शब-ए-सुख़न’ तो रहेगा ही। अब चूँकि राहत साहब का एजाज़ है, सम्मान है तो मुशायरा-कवि सम्मेलन होना ही हैं।
हिंदुस्तान के नामचीन शोअरा-कवि तशरीफ ला रहे हैं। ‘जग्गा’ ने उन पर किताब लिखी है, उसका इजरा (विमोचन) है, इसके अलावा SOUVENIR (स्मारिका) बन रहा है, जिसमें उनके इंदौरी साथियों ने मोहब्बत पेश की है।सम्मान सिर्फ निनाद-अदबी कुनबा नहीं कर रहे हैं, इंदौर कर रहा है,आप कर रहे हैं। असल में हम सब राहत साहब के बहाने अपना सम्मान कर रहे हैं,क्योकि वो जहां हैं, वहां हम उनकी इज़्ज़त में कोई फीता नही टाक सकते। दुआ है इंदौर का सूरज इसी तरह जगमगाता रहे।
इस महत्वपूर्ण जलसे का लाइव पार्टनर भारत का तेजी से बढ़ता हिंदी न्यूज़ पोर्टल घमासान डॉट कॉम है