पिता पुत्री संवाद

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डर नही लगता मुझे
अंधेरे से
ना डरती हूँ मैं
भालू या शेर से ,
फिर क्यो मुझे
रोकते हो
टोकते हो
मैं उड़ना चाहती हूँ
खुले आसमान में
अपने पंख पसार ,
मुझे अच्छा लगता है
भटकना तितली सा ,
मैं बहना चाहती हूँ
निर्मल नीर नदी सी
नही तोड़ूंगी मैं
तटबंध ।
बाबा ,सुन रहे होना बाबा
मैं तेरी गुड़िया प्यारी सी ।

हा मेरी गुड़िया हा
सुन रहा हूँ
तेरे काँपते होंठो की गुहार
तू नही डरती
बहादुर जो ठहरी
पर मैं डरता हूँ ,
उन अंधेरो से
जो तुझे डसना चाहते है
मैं डरता हूँ
उन आँखों से
जो तुझे घूरती रहती है ,
मैं डरता हूँ उन अपवित्र हाँथो से
जो तुझे छूना चाहते है ।
मैं भी चाहता हूँ
तू आसमान छू ले
उड़ती फिरे उपवन में तितली सी
चाहता हूँ ,तू जा मिले अपने सागर से
वेगवती सरिता सी ।
पर मैं डरता हूँ
हा मैं डरता हूँ
तुम कही जल न जाओ
घुल न जाओ
असमय बिखर न जाओ
इसीलिए
मैं तुझे नज़रबंद रखना चाहता हूँ
सुन रही हो न तुम
समझ रही हो न तुम
बाबा की दुलारी
बाबा की प्यारी
बाबा की गुड़िया
दूर देश से आई
परी सी

धैर्यशील येवले इंदौर ।