6 जनवरी 2021 को जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इंदौर दौरे पर आए तो उन्होंने मध्यप्रदेश इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया जहां उन्होंने भूमि अधिग्रहण के लिए किसानों को चैक बांटे। सामान्य तौर पर इस कार्यक्रम को भी एक सरकारी कार्यक्रम की तरह देखा गया और ना ही इसकी ज्यादा चर्चा हुई। लेकिन सही मायनों में लैंडपूलिंग पद्धति से किया गया भूअर्जन एक क्रांतिकारी कदम है जिससे भारत में उद्योगों और किसानों का साथ-साथ विकास हो सकता है। सबसे बड़ी बात ये है कि इस प्रकिया से किसान बेहद खुश है और वे खुद ही इसके लिए आगे आ रहे हैं।
आमतौर पर देश में इंडस्ट्री की ग्रोथ होनी चाहिए, किसान समृद्ध होने चाहिए, नई फैक्ट्रियां लगनी चाहिए ये बातें कही जाती है लेकिन सबसे बड़ी चुनौती भूमि अधिग्रहण ही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने में भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना और पूरी दुनिया के ग्रोथ इंजन के रुप में विकसित करना सबसे प्रमुख है। चाहे भारतीय कंपनियों के लिए कारोबार के लिए जमीन चाहिए हो या फिर चीन से बाहर जाने वाली कंपनियों को भारत में बुलाना हो, इन सबके लिए जमीन चाहिए लेकिन भारत में उद्योगों और किसानों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा पाया है। किसानों को हमेशा लगता है कि उनसे जमीन छीन ली जाएगी और वे भूमिहीन हो जाएंगे और उनके बच्चों के लिए रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा।
लेकिन मध्यप्रदेश के पीथमपुर में लैंडपूलिंग प्रकिया से किए गए भूमि अधिग्रहण ने एक नया रास्ता दिखाया है। जहां किसान खुद सरकार से पूछ रहे हैं कि आपको जमीन चाहिए तो हमें बताएं, हम तैयार है। आखिर ये ‘चमत्कार’ कैसे हुआ?
दरअसल, पीथमपुर मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है और यहां 2010 से किसानों और शासन के बीच भूमि अधिग्रहण को लेकर विवाद न्यायालय पहुंच गए थे। ऐसे में भूमि अधिग्रहण एक बड़ी चुनौती बन गया था। साल 2013 में भूमि अधिग्रहण के लिए लैंड पूलिंग को भी जोड़ा गया और अब इस योजना के तहत 320 हैक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया गया है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस प्रकिया को क्रातिकारी बताते हुए कहा कि ये पूरे देश के लिए उदाहरण बन सकती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उद्योग के लिये जमीन चाहिये लेकिन इसके लिये मॉडल ऐसा चाहिये कि किसान भाइयों को नुकसान न हो। जमीन अगर लेंगे तो जमीन के पूरे दाम भी किसान को देंगे और विकास में किसानों को भागीदार बनाया जायेगा।
मध्यप्रदेश के उद्योग मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव ने इस योजना के तहत ली गई जमीन के 121 भूस्वामियों और कृषकों का धन्यवाद करते हुए बताया कि इस प्रकिया से किसान को 20 प्रतिशत राशि नगद दे जाती है और जमीन को विश्वस्तरीय मानकों पर आधारित सर्वसुविधायुक्त औद्योगिक, सार्वजनिक, अर्द्ध सार्वजनिक और एवं आवासीय उपयोग के लिए विकसित किया जाता है।
शेष विकसित भूमि से मुआवजे की राशि का 80% भाग विकसित भूखंड के रुप में वापिस भूस्वामी को लौटा दी जाएगी। इससे सरकार को भी भूअर्जन पर कम खर्च करना पड़ता है और किसानों को भी फायदा होता है।
इंदौर के सांसद शंकर लालवानी ने कहा कि मध्यप्रदेश में शुरू हुई ये प्रकिया किसानों और उद्योगों दोनों के हित में है और इससे देश तेजी से आत्मनिर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ सकता है।
इस योजना की शुरुआत इंदौर के वर्तमान कलेक्टर और तत्कालीन एकेवीएन एमडी मनीष सिंह ने इस योजना की शुरुआत की थी। बाद में कुमार पुरुषोत्तम नेे अपने कार्यकाल में इस योजना को आगे बढ़ाया। वर्तमान में विभाग के प्रमुख सचिव संजय शुक्ला ने लैंड पूलिंग योजना को अमलीजामा पहनाया। संजय शुक्ला ने विभिन्न विभागों से समन्वय स्थापित कर इसे तेज़ी से लागू करने के लिए रुपरेखा बनाई।
इस योजना को लागू करने वाले एमपीआईडीसी के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर रोहन सक्सेना ने बताया कि इस प्रकिया से अधिग्रहण के लिए हमारी टीम ने गांवों के दौरे किए, वहां पर कैंप लगाए और भूस्वातियों की शंका को दूर करने के हरसंभव प्रयास किए। आज उसी का परिणाम है कि अब किसान खुद जमीन डेवलपमेंट से जुड़े प्रस्ताव एमपीआईडीसी को दे रहे हैं।
रोहन सक्सेना ने बताया कि इस योजना से औद्योगिकरण के लिए शासन के खर्च में कमी आई है और किसान भी प्रसन्न है और हमारी योजना इसे प्रदेश के अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में लागू करने की भी है।
इस योजना के तहत पीथमपुर में अधिग्रहित जमीन पर 200 नए उद्योग स्थापित होंगे और 25,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा।
इस प्रकिया को अब मध्यप्रदेश के देवास और रतलाम जिलों में भी लागू किया जा रहा है। मध्यप्रदेश के इस मॉडल से देश को भूमि अधिग्रहण के क्षेत्र में नई राह मिल सकती है और देश तेजी से दुनिया भर के मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की दिशा में आगे बढ़ सकता है।