प्रसिद्ध संगीतकार वनराज भाटिया का दुखद निधन

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लिरिल साबुन का विज्ञापन में मॉडल्स बदलती रहीं पर उसकी धुन आज भी वही है जो सबसे पहले वनराज भाटिया ने बनाई थी, भारत एक खोज का वह अभूतपूर्व टाइटल ट्रेक रचने वाले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता संगीतकार वनराज भाटिया का निधन हो गया है, उन्होंने मुंबई में अपने आवास पर अंतिम सांस ली।

हिंदुस्तानी और पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत पर बराबर की पकड़ रखने वाले प्रसिद्ध संगीतकार वनराज भाटिया का शुक्रवार सुबह मुंबई में अपने आवास पर निधन हो गया। वह 93 वर्ष के थे। भाटिया दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत के पांच साल तक रीडर भी रहे। श्याम बेनेगल की फिल्म ‘अंकुर’ से अपने फिल्मी करियर की शुरूआत करने वाले वनराज भाटिया देश के पहले संगीतकार रहे जिन्होंने कमर्शियल फिल्मों के लिए अलग से संगीत रचने की शुरूआत की।

‘जाने भी दो यारों’ के संगीतकार

काफी अरसे से बीमार चल रहे संगीतकार वनराज भाटिया ने सुबह दक्षिण मुंबई स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। ‘मंथन’, ‘भूमिका’, ‘जाने भी दो यारों’, ’36 चौरंगी लेन’ और ‘द्रोहकाल’ जैसी फिल्मों से वह हिंदी सिनेमा में लोकप्रिय हुए। लेकिन, उनकी संगीत साधना के बारे मे लोग कम ही जानते हैं। भाटिया को 1988 में टेलीविजन पर रिलीज हुई फिल्म ‘तमस’ के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। इसके अलावा सृजनात्मक व प्रयोगात्मक संगीत के लिए 1989 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने उन्हें 2012 में पद्मश्री पुरस्कार दिया था।

हिंदुस्तानी और पाश्चात्य शास्त्रीय संगीतज्ञ

एक गुजराती परिवार में जन्मे वनराज भाटिया ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद देवधर स्कूल ऑफ म्यूजिक में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखा। चाइकोवस्की को पियानो बजाते देखने के बाद उनकी रुचि पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत में हुई और उन्होंने चार साल लगातार फिर पियानो ही सीखा। मुंबई के एलफिन्स्टन कॉलेज से संगीत में एमए करने के बाद भाटिया ने हॉवर्ड फरगुसन, एलन बुशऔर विलियम एल्विन जैसे संगीतकारों के साथ रॉयल अकादमी ऑफ म्यूजिक, लंदन में संगीत की रचना करनी सीखी। यहीं उन्हें सर माइकल कोस्टा स्कॉलरशिप मिली और यहां से गोल्ड मेडल के साथ शिक्षा पूरी करने के बाद उन्हें फ्रांस की सरकार ने रॉकफेलर स्कॉलरशिप प्रदान की।

भारत एक खोज’ से घर घर पहुंचा नाम

वनराज भाटिया का नाम घर घर पहुंचाने का काम दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक ‘भारत एक खोज’ ने किया। इसके अलावा उन्होंने दर्जनों वृत्तचित्रों का संगीत दिया और ‘खानदान’, ‘वागले की दुनिया’ और ‘बनेगी अपनी बात’ जैसे धारावाहिकों का संगीत भी उन्होंने ही दिया।

सादर श्रद्धाजंलि!