चेहरे की राजनीति?

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शशिकांत गुप्ते

कोई भी शख़्स खुद का चेहरा स्वयं नहीं देख पाता है।चेहरा देखने के लिए दर्पण की आवश्यकता होती है।
फिल्मों में चेहरे पर बहुत से गीत लिखे गए हैं।चेहरे को चांद की उपमा दी गई है।चेहरे पर बहुत कुछ लिखा गया है,और लिखा जा रहा है।चेहरे पर प्रकट होते भाव व्यक्ति की मानसिक स्थिति बता देते हैं।
इनदिनों राजनीति में चेहरा महत्वपूर्ण हो गया है।लोकतंत्र में चुनाव, चेहरे पर होने लगे हैं।यह व्यक्तिकेंद्रीत राजनीति का द्योतक है।लोकतांत्रिक प्रक्रिया विरुद्घ भी है।
राजनीति में संगठन के कार्यकर्ताओं पर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कौन होगा?यह अलोकतांत्रिक तरीके से थोपा जा रहा है।
किसी भी दल के हाई कमान के द्वारा चुनाव पूर्व किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया जाता है,तो यह प्रक्रिया दल के सक्रिय कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय है।
राजनीतिक दल तो यह गलती कर ही रहे हैं।दुर्भाग्य से बहुत से न्यूज चैनल के पत्रकार भी राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं से यह सवाल पूछतें है आपकी पार्टी का कौन चेहरा है?
इस तरह के सवाल पूछने वाले पत्रकार लोकतंत्र के चौथे खम्बे को अप्रत्यक्ष रूप से खोखला करते हैं,और अलोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रश्रय देते हैं। ऐसे ही पत्रकारों को गोदी मीडिया के पत्रकार कहते हैं।
यह सारी प्रक्रिया एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत चल रही है।धीरे धीरे लोकतंत्र को कमजोर करने की साज़िश है।
इतिहास गवाह है,जर्मनी में क्रूर शासक हिटलर ने भी चुनाव जीत कर ही सत्ता प्राप्त की थी।सबसे पहले उसने जर्मनी में चमचमाते रोड बनाएँ, सुंदर सड़कें देख लोग खुश हुए।जब हिटलर ने लोगों को गैस चेम्बर में ठुसा तब लोगों को समझ आया।
हिटलर मुसोलिनी, हलाकू आदि जितने भी तानाशाह हुए उनका अंत बहुत वीभस्त तरीके से हुआ है।ऐसे व्यक्तियों का लोग चेहरा देखना भी पसंद नहीं करते है।
भारत में ऐसे तानाशाह हो ही नहीं सकते हैं।यदि कोई तानाशाही प्रवृत्ति को भी अपनाने की कौशिश करेगा,वह अपने मंसूबों में कभी भी कामयाब नहीं हो पाएगा।
भारत भूमि की माटी में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता मजबूती से रची बसी है।
उपर्युक्त मुद्दों पर गम्भीरता से सोचने की बात है।यह चेहरे वाली राजनीति का घोर विरोध होना चाहिए।इसका मुख्य कारण है,अपने देश में मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का चुनाव डायरेक्ट नहीं होता है।अपने देश के मतदाता मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को मत नहीं देते हैं।विधायक और संसद को वोट देते हैं।
चेहरे को प्रस्तुत करने की अलोकतांत्रिक परंपरा रूढ़ न हो जाए यह हमें ध्यान में रखना चाहिए।
देश के सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को इस प्रक्रिया का पुरजोर तरीके से विरोध करना चाहिए।
यदि यह प्रक्रिया परम्परा बन गई तो यह सोचने पर बाध्य होना पड़ेगा कि,दल में सारी योग्यता एक ही व्यक्ति के पास है।पार्टी के बाकी सारे सदस्य अयोग्य हैं।
चुनांव पूर्व किसी व्यक्ति का चेहरा प्रस्तुत करना बहुत ही गलत है।
यह परंपरा दल के कार्यकर्ताओं का मोनबल कमजोर करेगी।कार्यकर्ता कब तक बेमन से अपने ऊपर थोपे गए व्यक्ति के लिए कार्य करेगा।
कोई भी दल मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के लिए चुनाव पूर्ण किसी भी चेहरे को प्रस्तुत करता है अर्थात थोपता है,उस व्यक्ति में अहंकार पैदा होना संभव है,कारण वह भी सोचेगा की उसके अलावा दल कोई भी अन्य व्यक्ति योग्य है ही नहीं।
यह लोकतंत्र के लिए उचित नहीँ है।
इस प्रक्रिया का व्यापक विरोध होना चाहिए।