निर्लज्ज सियासत के चश्मदीद

Akanksha
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निर्मल उपाध्याय

हमारी पीढ़ी निश्चय ही उस निर्लज्ज सियासत के चश्मदीद होने का दुर्भाग्य जी रही है,जिसे आने वाला समय सिर्फ कलंक की तरह ही अपनी चढ़ी भृकुटियों पर आश्रय देगा।लोग कोरोना के नाम पर जैसे मौतों को साथ लिए घूम रहे हैं।, पूरा देश अपनी एक एक साँस को दाव पर लगा कर ज़िन्दगी का मोल भाव कर रहा है।सभ्यता और सभ्यता के चलन घने अँधेरे में अपनी अस्मिता के ठौर खोज रहे हैं, लेकिन हमारी सियासत लड़खड़ाती मदहोश आस्था की उंगली पकड़कर ऐसे चल रही है जैसे कृष्ण को सारथी बना कर अर्जुन उन्माद लिए समर में आगे बढ़ रहे हों।अच्छी भली बहुमत की चलती हुई सरकारें तिनकों की तरह बिखर रहीं हैं।जब आदमी को हौसले की दरकार है,सरकारों से ,सरकार दिखाई देने की आशा है तब पद,महत्व और प्रभुत्व के नशे की दुकानों पर टूट पड़ते,धक्का मुक्की करते नेतागण लंबे लाकडाउन के बाद खुली कलाली का मंज़र जी रहे हैं।जिन्हें ऐसे कठिन समय में सत्ता की भूमिकाओं का हर औचित्य धर्म की तरह जीना है वे समय के धर्म का आसुरीकरण करने को व्याकुल हैं।उनकी व्याकुलता ठीक वैसी लगती है जैसे कोई असुर घनघोर साधना कर वरदान प्राप्त होते ही विध्वंस के मनचाहे सपने बुन रहा हो।जो अपने दल को नर्क सा समझकर उसे छोड़ कर भाग रहे हैं या जो अपने दल ्की ऐशगाहों को शरणस्थली बता कर स्वर्ग जैसे आमन्त्रण दे रहे हैं दोनों अपने अपने भ्रमों के इष्ट को सहलाते फिर रहे।अपने मूल्यों, सिद्धांतों को नगर वधू की भूमिका में घुमाते लोगों के अलावा क्यों कोई विकल्प दिखाई नहीं देते, या सामने नहीं आते,उसका कारण भी हमारे ये ही महान नेतागण हैं जो अपने अपने इलाके में अपने विरासत में मिले वैभव के साथ ऐसे जमे हैं कि कोई त्यागी समर्पित हिम्मत ही नहीं जुटा पाता।कोई भूले भटके तैश में आ भी जाए तो बेचारा अन्ना हजारे बन जाता है या बना दिया जाता है।कोरोना की दहशत से जूझते लोगों को ऐसे नाटक,ज़ख्मों पर तेजाब की तरह कष्ट दे रहे हैं।यह वेदना क्रूर इसलिए लग रही है क्योंकि इस आवाजाही में केवल और केवल स्वार्थ के अलावा और कुछ दिखाई नहीं दे रहा।मूल्यों को दर किनार कर,जनताके सामने रखे सिद्धांतों और दायित्वों को ठोकरों में आश्रय देकर,नेतागण जैसे अपने ईमान से खेल रहे हैं।उस ईमान से खेल रहे हैं जिसे मतदाताओं ने अपना आसरा समझ कर अपनी साँसों में पूरे विश्वास से उकेर रखा था।खैर जनता की क्या बात करें उसकी फिक्र होती ये नेतागण राजनीति में अपने जन्म की सार्थकता ढूँढते,मगर मगर वो जो ढूँढ रहे हैं वह जनता के दुर्भाग्य और त्रासदी के सिवा और कुछ नहीं है।थोड़े दिन पहले सिंधिया जी को अपना महाराजत्व याद आया था।आब पायलट जी को अपने वजूद का देवत्व याद आ गया।इन महानुभावों को पता नहीं मोदी जी के दल ने या किसी और विचार ने आराधनाओं का कौन सा स्त्रोत बता दिया है कि तत्काल अवतार हो जाने का सपना देखने लगे । जबकि सच्चाई यह है कि उन्हीं के दल के कई स्वयंभू अवतार, अपनी अवतारी शक्तियों के सामने उनके निरर्थक हो जाने का आत्मीय विलाप कर रहे हैं।मैंने पहले भी उद्घरत किया है कि इस माहौल में काँग्रेस किसी राजनीतिक दल का नाम नहीं दिखता बल्कि संपूर्ण नेताओं की जमात के चरित्र का नाम दिखाई देता है।पता नही मोदी जी के मुखौटे लगा लगा कर लोग क्यों फिज़ूल ही शंखनाद करते फिर रहे हैं।सवाल यह नहीं है कि कांग्रेसी क्यों भा,ज,पा,को आदर्श मानने लगे हैं, महत्वपूर्ण सवाल यह है कि ये आदर्श के लाड़ले उन कांग्रेसियों में किस अप्रत्याशित देवत्व से प्रभावित हो गए जो कल तक उन्हें उल्लेखनीय आसुरी आस्था का ध्वज निरुपित करते थे।कृपया अपने अपने दल के महान विचारकों बैठाईए चाहे तो जड़ ख़रीद विद्वानों को बैठा लीजिए और उन्हें उनके सबसे प्रिय की शपथ दिलाकर यह पूछिए कि आज ज़िन्दगी और मौत के बीच खड़े होकर क्या यह नौटंकी जायज़ है,या क्या यह हालाकान, पीड़ित जनता के प्रति पाप नहीं है।किसी को प्रभुत्व का सुख नहीं मिल रहा, किसी को सत्ता का सुख नहीं मिल रहा, किसी को वैमनस्य के सीमान्त पर खड़े होकर किसी राजनीतिक दल का नामो-निशान मिटा देना है इसलिए वे जाने कब से अपने अग्रजों, पूर्वजों के सपने जैसे हिंद महासागर में पूरे विधि विधान से ठंडे कर आए हैं।ये सत्ता, प्रभुत्व,के उन्माद,ये राजनीतिक मूल्यों की लज्जा के सीमान्त राजनीति के तीर्थ कैसे हो गए जबकि हमारा समृद्ध अतीत, हमारी प्रेरणाऐं,हमारे पूर्वजों के पद-चिन्ह कहीं धुँधले नहीं हुए हैं।यदि अनदेखी हुई है तो उसका कारण वह उन्माद है जिसने दृष्टि से जैसे औचित्य ही छीन लिया है।
कहना यह है यह वह समय नहीं है जब आप मौत से जूझती मासूम जनता को छोड़ कर झंडो की अदला-बदली के समारोहों में व्यस्त रहें।यह पाप तो न हो,क्योंकि जिन दायित्वों की शपथ लेकर आप आए थे वे तो ऐशगाहों में पहुँचते ही विस्मृत हो गए।निवेदन है कि आपके ये मनोरंजन कुछ समय के लिए बढ़ा दीजिए जब आप हौसला होकर रेत की तरह बिखर बिखर कर दिखते रहेंगे तो बेचारी जनता अपने असहाय होने का एक अतिरिक्त रोग पाल कर कैसे जी पाएगी, रिसोर्ट में अपने अपने अनुचरों की सेवा के बजाय कोरोना जैसे संकट के लिए कुछ करिए तो बड़ी कृपा होगी।