गोविन्द मालू
इंग्लैंड की पेंटोविल्ले जेल के बाहर वीर सावरकर एक 25 वर्ष के नवयुवक के शव जको लेने की प्रतीक्षा कर रहे थे, फांसी पर लटकाने के बाद वह शव ब्रिटिश सरकार ने किसी को नहीं सौंपा था।
ये शव था महान क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा का एक धनी और सम्पन्न परिवार का वह बेटा जिसे उसके ब्रिटिश सरकार में कार्यरत सिविल सर्जन पिता ने इंग्लैंड पढ़ने भेजा था।उन पर क्रांति की ज्वाला ऐसी सवार थी की, वीर सावरकर के साथ मिलकर मदन लाल जी ने 1901 मे भारत पर अत्याचार कर के इंग्लैंड लौटे एक ब्रिटिश आर्मी ऑफिसर कर्ज़न वाईली को सीखाने की सोची।
1 जुलाई 1909 को मदन लाल ढींगरा ने इंपेरियाल इंस्टीट्यूट इंग्लैंड में हो रही एक सभा में कर्ज़न वाईली को गोलियो से भून दिया, जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर के 17 अगस्त 1909 को फांसी दे दी।
मदन लाल में हौंसला और निडरता इतनी थी की जब अदालत में इन पर कार्रवाई हुई तो इन्होंने साफ कह दिया कि ब्रिटिश सरकार को कोई हक़ नहीं है मुझ पर मुकदमा चलाने का… जो ब्रिटिश सरकार भारत में लाखों बेगुनाह देशभक्तों को मार रही है और हर साल 10 करोड़ पाउंड भारत से इंग्लैंड ला रही है, उस सरकार के कानून को वो कुछ नहीं मानते, इसलिए इस कोर्ट में वो अपनी सफाई भी नहीं देंगे, जिसे जो करना है कर लो…”
और जब उन्हे मृत्यु दंड देने के लिए ले जाने लगे तो उन्होंने जज को शुक्रिया अदा करते हुए कहा था “शुक्रिया आपने मुझे मेरी मातृभूमि के लिए जान न्योछावर करने का मौका दिया”।
ऐसे महान क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा की आज पुण्यतिथि है।
।।कृतज्ञ राष्ट्र का नमन है इस शूरवीर को।।