Indore: बहुत हुआ अनुरोध, अब सीधे आंदोलन! नर्मदा आंदोलन की तरह सर्वदलीय समिति के बैनर तले जोड़ा जाएगा जन-जन

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कीर्ति राणा

इंदौर: इंदौर का मास्टर प्लान कैसा हो, जल-मल बोर्ड का गठन कितना जरूरी है।विकसित होते शहर हित के ऐसे सारे मुद्दों पर लंबे समय से ज्ञापन, अनुरोध और सीएम से लेकर सांसद तक मेल मुलाकात के बावजूद कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिलने के बाद अब विभिन्न जन संगठनों के प्रतिनिधियों ने मैदानी आंदोलन का निर्णय लिया है।अगली बैठक मंगलवार को होगी जिसमें चरणबद्ध आंदोलन की रूपरेखा तय की जाएगी।

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इंदौर उत्थान अभियान के अनुरोध पर प्रेस क्लब में एकत्र हुए विभिन्न जन संगठनों के प्रतिनिधियों का कहना था अगले 25-50 साल के विजन मुताबिक इंदौर का मास्टर प्लान अच्छा और सुविधाजनक बने हम सब इसके लिए संकल्पित हैं। इस संबंध में बीते वर्षों में निरंतर ज्ञापन देने, भोपाल में सीएम सहित विभागीय अधिकारियों से मिलने प्रस्तावित मास्टर प्लान में इंदौर के लिए क्या जरूरी है इस संबंध में प्रारूप सौंपने के बावजूद राज्य सरकार की तरफ से ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं कि मास्टर प्लान संबंधी प्रारूप को शहर की चिंता करने वालों से कोई पहल हो रही है। अत: अब अपनी बात जन आंदोलन के माध्यम से सरकार तक पहुंचाना जरूरी हो गया है।दशकों पहले जिस तरह नर्मदा का जल इंदौर लाने के लिए गैर राजनीतिक आंदोलन चलाया गया था, अब वैसा ही आंदोलन इंदौर के समुचित विकास के लिए मास्टर प्लान की मंजूरी के लिए चलाना जरूरी है।

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ऐसा नहीं कि सरकार मास्टर प्लान लागू नहीं करना चाहती लेकिन तैयार किए जाने वाले मास्टर प्लान में न तो इंदौर को प्रेम करनेवाले जागरूक नागरिकों की भागीदारी को जरूरी समझा गया है और न ही इस दिशा में लंबे समय से सक्रिय इंदौर उत्थान समिति सहित अन्य जन संगठनों से चर्चा ही की गई है।बैठक में शामिल प्रतिनिधियों का मानना था कि योजना बनाते समय शासकीय अधिकारियों के लिए शहर हित से अधिक यह देखा जाता है कि किसके कितने हित लाभ पूरे होंगे।इस उद्देश्य से बनाई जाने वाली योजनाओं में भारी बजट स्वीकृत किए जाने के बाद भी शहर के विकास और रहवासियों की जरूरतें पूरी नहीं हो पाती हैं।अब यह जरूरी होता जा रहा है कि वल्लभ भवन मास्टर प्लान की घोषणा करे उससे पहले इंदौर के आमजन की भागीदारी मुताबिक योजनाएं तैयार करे।

इंदौर उत्थान अभियान की बैठक में शामिल प्रतिनिधियों के सुझावों के बाद यह सहमति बनी कि धरना आंदोलन तो होते ही रहते हैं लेकिन शहर के सभी लोगों की भागीदारी नहीं हो पाती, लिहाजा इंदौर के मास्टर प्लान के लिए संपूर्ण जिले के लोगों को जोड़ने के लिए बड़ा गणपति से खजराना गणेश मंदिर तक रैली आयोजित की जानी चाहिए। रैली में शामिल सदस्य इंदौर मास्टर प्लान की आवश्यकता को दर्शाती टी शर्ट पहन कर चलेंगे।समिति अध्यक्ष अजित सिंह नारंग का कहना था अभी मिनी मेगासिटी बन चुके इंदौर में जिस तरह मेडिकल, एजुकेशन, ट्रासपोर्ट, मेट्रो आदि की सुविधाएं बढ़ती जा रही हैं तो भविष्य में मेगा सिटी बनने वाले इंदौर में आधी आबादी तो फ्लोटिंग पापुलेशन हो जाएगी, इनकी जरूरतों के हिसाब से सभी तरह की सुविधाओं की उपलब्धता नहीं रही तो शहर में अपराध भी बढ़ जाएंगे, सरकार ने इंदौर को पुलिस कमिश्नरी की सुविधा तो दी है लेकिन संसाधनों में वृद्धि पर नहीं सोचा जा रहा है।

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2008 में लागू मास्टर प्लान पर ही 60 प्रतिशत अमल हो पाया है

बैठक का संचालन कर रहे अशोक कोठारी ने पूर्व में लागू मास्टर प्लान का आधा-अधूरा पालन होने पर चिंता जाहिर की।अन्य सदस्यों का कहना था 2008 में जो मास्टर प्लान लागू किया था, 2021 तक उस पर 60 प्रतिशत ही अमल हो सका है, सुविधाओं की दृष्टि से इस पर कोई काम नहीं हुआ।पूरे जिले में पेयजल की सुलभता आज तक नहीं हो पाई है।15 में से एक भी जोनल प्लान आज तक लागू नहीं हुआ। मास्टर प्लान में बताई गई 12 मेजर रोड में से जो 2008 में अधूरी थी, वह आज भी हैं। और अब 2035 के मान से मास्टर प्लान की तैयारी चल रही है। जिस लक्ष्य के साथ 2008 में यह बनाया गया था, उसका मात्र 41 प्रतिशत पालन हुआ है। नया स्टेडियम और बड़े खेल मैदान की आज भी कमी महसूस की जा रही है।

शहर में समय के साथ आवासीय लैंडयूज तो भर गया, वाहनों की संख्या 30 लाख की आबादी में 19 लाख हो गई लेकिन उस गति से नई सड़कें नहीं बनी। हां पुरानी कुछ सड़कें चौड़ी जरूर की गई, लेकिन उनको भी बतौर मुआवजा न तो टीडीआर, न ही बढ़ा हुए एफएआर का फायदा मिला। शहर के पुराने बाजारों को जो समय के साथ शहर के बाहर जाने थे, वे भी नहीं गए, जो गए उन्होंने दोनों जगह आज भी व्यापार चालू कर रखा है।

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बैनर सर्वदलीय समिति का रहेगा

इस बैठक में यह सर्व सम्मति भी बनी कि जिस तरह नर्मदा इंदौर लाओ के लिए सर्वदलीय समिति के बैनर तले आंदोलन किया जाए। बैठक में शामिल पद्मश्री जनक पलटा, भालू मोंढे के साथ देअविवि के पूर्व कुलपति, प्रीतमलाल दुआ, शिक्षाविद डॉ रमेश मंगल, इंजी राकेश बम, अजय सिंह नरुका, दिनेश गुप्ता, पंकज अग्रवाल, दीपक भंडारी, अजय अग्रवाल, जितेंद्र सिंह भाटिया, गौरव अग्रवाल, बुरहानुद्दीन शकरुवाला, शिवाजी मोहिते, हेमंत मेहतानी, मिर्जा हबीब बेग, प्रो संजीव बम, ओपी भामा, धनजंय चिंचालकर, किशोर कोडवानी, रोहित कालरा, महेश गुप्ता, निर्मल वर्मा, कमलेश खंडेलवाल, जगमोहन वर्मा, सुरेश उपाध्याय, ईश्वरचंद बाहेती, नरेंद्र सिंह नारंग, विष्णु गुप्ता, दीप्ति गौर, गजेंद्र, डॉ पीयूष जोशी आदि का कहना था मास्टर प्लान शहर की आत्मा है और इससे शहर के जन-जन को जोड़ने के लिए यह जरूरी है कि हर वार्ड में टीम तैयार की जाए।

इंदौर का मास्टर प्लान तैयार करने के लिए सिरेमल बाफना लेकर आए थे पेट्रिक गिडीज को रियासतकाल में एकमात्र होल्कर स्टेट ऐसा था जिसने अपना मास्टर प्लान तैयार किया था।होल्कर रियासत के तत्कालीन महाराजा तुकोजीराव के प्रधानमंत्री सिरेमल बाफना ने करीब छह महीने यूरोप घूम कर आर्किटेक्ट की अपेक्षा सोशलाजिस्ट सर पेट्रिक गिडीज को मास्टर प्लान बनाने के लिए 1925 में इंदौर लाए थे।तीन साल तक शहर का अध्ययन करने के बाद उन्होंने मास्टर प्लान तैयार किया था।इसी का परिणाम था कि तब से मुंख्य मार्ग तो चौड़े थे ही, नालिया भी चौड़ी और व्यवस्थित थी, वर्षाजल निकासी की व्यवस्था के साथ ही शहर में प्रमुख बाजार के साथ ही कार्य दृष्टि के लिहाज से बसाहट की व्यवस्था ऐसी थी कि दैनंदिन जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए लोगों को आसपास ही सब कुछ उपलब्ध हो जाए।