नई दिल्ली। अन्य समय से तुलना की जाये तो धरती पिछले 50 सालों से किसी भी समय से ज़्यादा तेज़ घूम रही है, इसे कैसे मैनेज किया जाये इस बात से अब वैज्ञानिक भी परेशान हैं। धरती सामान्य गति से तेज़ चल कर अपनी धूरि(केंद्र बिंदु) का एक चक्कर 24 घंटो से पहले ही पूरा कर रही है। ये बदलाव धरती में पिछले साल के मध्य में आया था।
धरती अपनी धूरि 24 घंटों में एक बार लगाती है,लेकिन धरती अपनी धूरि पर पिछले साल जून से अब तक ज़्यादा तेज़ी से घूम रही है जिस वजह से सभी देशों का समय बदल जाता है, इसके चलते साइंटिस्ट अपनी-अपनी जगहों पर मौजूद एटॉमिक क्लॉक का समय बदलना पड़ेगा यानी साइंटिस्ट्स को अपनी घड़ियों में नेगेटिव लीप सेकंड जोड़ना पड़ेगा, 1970 से अब तक 27 लीप सेकंड जोड़े जा चुके हैं।
धरती के घूमने का एकदम सही आकड़ा पिछले 50 सालों से निकाला जा रहा है, 24 घंटे में 86,400 सेकेंड्स होते हैं, यानी 86,400 सेकण्ड्स में धरती अपना एक चक्कर पूरा करती है, लेकिन पिछले साल जून से इन 86,400 सेकण्ड्स में 0.5 मिलिसेकण्ड्स कि कमी आ रही है बता दें कि 19 जुलाई 2020 का दिन 24 घंटे से 1.4602 मिलीसेकेंड कम था।
2020 से पहले सबसे छोटा दिन 2005 में था, लेकिन ये रिकॉर्ड पिछले 12 महीनों में 28 बार टूट चूका है। सिर्फ एटॉमिक क्लॉक पर ही समय का ये बदलाव देखा जा सकता है, लेकिन इसकी वजह से हमारे संचार व्यवस्था में कई दिक्कतें आ सकती हैं, क्योकि हमारे सेटेलाइट और सांचारयंत्र का समय सोलर टाइम के अनुसार सेट किये जाते है। ये समय चाँद और तारों की पोज़ीशन के हिसाब से सेट किये जाते हैं।
पेरिस में स्थित इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन सर्विस (International Earth Rotation Service) के वैज्ञानिक के साथ यथार्थता रखने के लिए 70 के दशक से अब तक 27 लीप सेकेंड जोड़े जा चुके हैं। आखरी लीप सेकंड 2016 में जोड़ा गया था, लेकिन इस बार समय आ गया है कि इन लीप सेकंड को हटा दिया जाये और नेगेटिव लीप सेकंड जोड़ दिया जाये।
नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी के सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट पीटर व्हिब्बर्ली ने कहा कि यह बात तो सही है कि धरती अपने तय समय से कम समय में एक चक्कर पूरा कर रही है. ऐसा पिछले 50 सालों में पहली बार हुआ है. ऐसा हो सकता है कि धरती पर रहे लोगों को समय के साथ चलने के लिए निगेटिव लीप सेकेंड जोड़ना पड़े।