इंदौर। वर्तमान समय में हमारी लाइफ में पिछले कुछ सालों में बहुत ज्यादा बदलाव आए हैं वही कोविड के बाद काम का स्ट्रेस बढ़ गया है और इसका पैटर्न भी बदल गया है। जिसके चलते डिप्रेशन और एंग्जाइटी के केस में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। प्रजेंट में हर तीन में से एक व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान हैं। कई बार यह रोग जेनेटिक रूप से भी सामने आते है। कोविड के दौरान वर्क फ्रॉम होम के चलन ने लोगों को मेंटली डिस्टर्ब किया है। वही कोविड के दौरान हमारी लाइफ में ऐसा पहली बार हुआ है कि 2 साल तक बच्चे स्कूल नहीं गए जिसके करण ऑनलाइन पढ़ाई के चलते बच्चों में मोबाइल और लैपटॉप इस्तेमाल बढ़ गया है। पहले की जरूरत अब हानिकारक हो गई है। मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल के दुष्परिणाम के रूप में अब बच्चों में डिप्रेशन और एंग्जाइटी संबंधित समस्या देखी जाती है। एक स्टडी के अनुसार मोबाइल स्क्रीन के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों के दिमाग में उस प्रकार के रसायनिक बदलाव होते हैं जो आमतौर पर एक शराबी के दिमाग में होते है।वही पहले के मुकाबले बच्चों के खेल कूद में कमी तो कंपटीशन बढ़ गया है जिसने कई प्रकार की समस्याओं को जन्म दिया है।
यह बात डॉ. राहुल माथुर ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही वह शहर के प्रतिष्ठित एमवायएच एंड गवर्नमेंट मेंटल हॉस्पिटल में साइकेट्रिस्ट के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
सवाल. वर्तमान समय में किस प्रकार की जॉब सबसे ज्यादा स्ट्रेसफुल है?
जवाब. अगर बात एडल्ट साइकाइट्री की करी जाए तो आजकल लोगों में बिज़ी लाइफस्टाइल के चलते स्ट्रेस लेवल बहुत ज्यादा बढ़ गया है जिसके कारण एंग्जाइटी और डिप्रेशन के कैस देखने को सामने आते हैं। वर्तमान समय में सेल फोन के बढ़ते इस्तेमाल के चलते लोक सोशली डिस्कनेक्ट हो रहे हैं अपनी बातें अपनी फैमिली और फ्रेंड सर्कल के साथ साझा नहीं कर पाते हैं। वह किसी प्रकार की समस्या होने पर नशे के आदी हो जाते हैं या मानसिक रूप से परेशान होते रहते हैं। वर्तमान समय में अगर बात स्ट्रेसफुल जॉब की करी जाए तो इसमें आईटी सेक्टर, बैंकिंग और टीचिंग प्रोफेशन शामिल है। बैंकिंग अब टारगेट बेस्ट जॉब हो गया हैं इसमें टारगेट पूरे करने के लिए कई बार एंप्लॉय को ओवरटाइम टाइम भी करना पड़ता हैं और इसके चलते वह स्ट्रेस का शिकार होते हैं ।वही टीचिंग प्रोफेशन में भी कॉविड के बाद किसी प्रकार का बैरियर नहीं रहा है। टीचर और स्टूडेंट के बीच गैप खत्म हो गया है हर स्टूडेंट और पेरेंट्स के पास टीचर के नंबर होते हैं और वह दिन में कई बार उन्हें कॉल या मैसेज करते हैं जिसके चलते उनकी सोशल लाइफ अफेक्ट होती है
सवाल. नशा क्या है सबसे ज्यादा नशा किस चीज में होता है?
जवाब. नशे से संबंधित समस्या में ऐसा देखा गया है कि यह हर व्यक्ति को अलग ढंग से प्रभावित करता है। कई लोग हमेशा नशा करते हैं और बीच में छोड़ भी देते हैं वहीं कई ऐसे भी होते हैं जो कुछ समय के बाद इसके आदि हो जाते हैं। जब व्यक्ति नशा करता है तो यह हमारे शरीर में ऑब्जर्व होकर हमारे दिमाग में जाता है जोकि हर इंसान में अलग-अलग तरह से बदलाव पैदा करता है। हमारे दिमाग में डोपामाइन नामक एक केमिकल होता है जिस पर सारे नशे जाकर अपना प्रभाव छोड़ते हैं और ऐसे चेंजस पैदा कर देते हैं कि व्यक्ति को वह लिए बगैर दूसरी चीजों में मजा नहीं आता है। उसका दूसरी चीजों से इंटरेस्ट पूरी तरह खत्म हो जाता है। और जब तक वह वापस यह नशा नहीं करते हैं तब तक उनमें बेचैनी बनी रहती है। सबसे ज्यादा खतरनाक नशा ब्राउन शुगर का होता है इसे एक बार लेने पर व्यक्ति की दुनिया सामान्य नहीं रहती है। उसके बाद उसे दूसरी चीजों में मजा नहीं आता है। वही शराब तंबाकू और अन्य नशे भी डोपामाइन रिलीज़ करते हैं और इनकी भी लत इंसान को हो जाती है। हमारे पास कई लोग आते हैं जो यह कहते हैं कि हमें इसके दुष्परिणाम तो पता है लेकिन हम छोड़ नहीं पाते हैं फिर उनकी हम काउंसलिंग करते हैं और इसका इलाज करते हैं।
सवाल. वर्तमान समय में बच्चों में किस प्रकार की समस्या देखने में सामने आ रही है?
जवाब. लगभग पिछले 30 सालों में बच्चों में ऑटिज्म नामक एक समस्या देखने को सामने आ रही है। यह समस्या आमतौर पर 3 से 4 साल की उम्र के बच्चों में देखी जाती है। इस समस्या की अगर बात की जाए तो ग्रसित बच्चा बाहर अन्य बच्चों और लोगों से मिलजुल नहीं पाता है जिसके चलते बच्चे की लैंग्वेज इतनी इंप्रूव नहीं हो पाती है। आमतौर पर इस प्रकार के बच्चे खुद में गुमसुम खोए रहते हैं। उन्हें किसी और से मिलना और बातें करना पसंद नहीं होता है। ऐसे बच्चों का इंटेलिजेंस तो नॉर्मल होता है लेकिन उनकी लर्निंग डिले हो जाती है।आमतौर पर बच्चे एक दूसरे से और सराउंडिंग से बहुत कुछ सीखते हैं जब इस तरह से बच्चे गुमसुम रहते हैं तो वह कई चीजें सिख नहीं पाते हैं। आगे चलकर ऐसे बच्चों की सोशल लाइफ अफेक्ट होती है। यह समस्या कई कारणों से सामने आती है जिसमें जेनेटिक, बाहरी खाने में एमएसजी की मात्रा होना और बिजी लाइफस्टाइल के चलते बच्चे का मां बाप के साथ अटैचमेंट कम होना शामिल है। ऐसे बच्चों को शुरुआत में ही इनके लक्षणों को पहचानकर बच्चों की कम्युनिकेशन स्किल और ट्रेनिंग पर ध्यान देकर काफी हद तक इसे ठीक किया जा सकता है।
सवाल. आपने-अपनी मेडिकल फील्ड की पढ़ाई किस क्षेत्र में और कहां से पूरी की है?
जवाब. मैंने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई शहर के प्रतिष्ठित एमजीएम मेडिकल कॉलेज से पूरी की इसके बाद मैंने एमडी इन साइकेट्री गुवाहाटी के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज से पूरा किया। अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद मैंने केईएम हॉस्पिटल मुंबई, पीजीआई चंडीगढ़ मैं ड्रग डी एडिक्शन सेंटर में एसआरशिप की वही और देश के कई हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दी है इंदौर आने के बाद मेरा सिलेक्शन एमजीएम मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में हुआ। वर्तमान में मैं शहर के प्रतिष्ठित एमवायएच हॉस्पिटल एंड गवर्नमेंट मेंटल हॉस्पिटल में साइकेट्रिस्ट के रूप में अपनी सेवाएं दे रहा हूं। साथ ही में हमारे न्यूरोसाइकाइट्रिक हॉस्पिटल स्वाध्याय मैं भी अपनी सेवाएं देता हूं।